अररिया : बिहार में एक ऐसी नदी है जिसकी वजह से सरकार भी परेशान है और लोग भी. जब इस नदी पर पहली बार पुल बना तो स्थानीय लोगों को लगा कि पुल निर्माण के बाद उनके इलाके की सूरत बदल जाएगी. लेकिन बकरा नदी ने यहां के लोगों को ऐसा गच्चा दिया कि सरकार के बड़े से बड़ा इंजीनियर भी फेल हो गया. हुआ ये कि, अररिया के सिकटी में बकरा नदी पर साल 2012 में पुल बना. जितनी नदी की चौड़ाई थी उसके मुताबिक पुल 2019 में बनकर तैयार भी हो गया. जैसे ही पुल बनकर तैयार हुआ नदी ने अपना रुख मोड़ लिया और नदी पूरब की और खिसक कर बहने लगी.
रास्ता बदलने में माहिर है बकरा नदी: सरकार भी हार मानने वाली नहीं थी. उसने दूसरी बार 11 करोड़ खर्च करके 200 मीटर तक पुल का निर्माण किया. फिर स्थानीय लोगों के मुरझाए चेहरे खिल उठे. कुछ दिन की समस्या मानकर, लोगों में पुल बनते ही सारे दुख दूर होने की उम्मीद जग गई. लेकिन सभी के अरमानों को रौंदकर बकरा नदी ने फिर रास्ता बदल दिया. नदी इस बार इस पुल के पश्चिम में बहने लगी. पुल के दोनों ओर बहती नदी के बीच ग्रामीण चचरी पुल बनाकर आर-पार होते हैं.
इंजीनियर्स को चकमा दे रही नदी : पुल के दोनों हिस्से अब सूखे में खड़े हैं. हर कोई बिहार के इंजीनियर की इंजीनियरिंग की दाद दे रहा है. इधर बकरा नदी है कि इंजीनियरों की 'औकात' से बाहर हो चुकी है. गांव वाले बता रहे हैं कि बकरा नदी एक बार फिर अपना रास्ता बदल रही है. बार-बार मार्ग बदले जाने की वजह से 31 करोड़ की लागत से तैयार खड़ा पुल अब किसी काम का नहीं रहा. लोगों के अरमान फिर एक बार नदी की धारा में गुम हो गए हैं. अगर ये पुल निर्माण पूरा हो जाता तो इस रास्ते के कुर्साकांटा और सिकटी प्रखंड से लेकर नेपाल सीमा तक के लाखों लोगों को इसका फायदा मिलता.
नदी का मार्ग बदलने से कई घरों की जल समाधि: स्थानीय ग्रामीण ने बताया कि बकरा नदी के धारा बदलने से सिर्फ पुल का ही नहीं बल्कि कई घरों को भी नुकसान पहुंचा है. इसकी धारा में कई घर विलीन हो गए. एक पूरी की पूरी बस्ती ही बकरा नदी के बदले रास्ते में आ गई. लोगों को काफी दिक्कते उठानी पड़ रही है. सरकार उनकी सुध नहीं ले रही है.