पटना : पटना साहिब सीट पर इस बार पूरे देश की नजर है. इसका मुख्य कारण है यहां के प्रत्याशियों का बड़ा कद. एक तरफ हाल ही में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले अभिनेता और वर्तमान सांसद शत्रुघ्न सिन्हा हैं, तो दूसरी तरफ बीजेपी के दिग्गज नेता और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद.
लोकसभा चुनाव के सातवें चरण के लिए 8 सीटों पर बेहद दिलचस्प मुकाबला है. इन सभी सीटों पर NDA और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर है. हालांकि सभी सीटों से अलग पटना साहिब, बिहार की सबसे वीआईपी सीट बनी हुई है. यहां से कांग्रेस के शत्रुघ्न सिन्हा का मुकाबला बीजेपी के रविशंकर प्रसाद से है.
पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र की विशेष बातें. पटना साहिब लोकसभा सीट को बीजेपी का गढ़ माना जाता है. लगातार यहां से बीजेपी के उम्मीदवारों ने जीत का परचम लहराया है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या शत्रुघ्न सिन्हा इस बार इस मिथक को तोड़ पाएंगे? क्या वे कांग्रेस के टिकट पर बीजेपी का किला भेद पाएंगे?
छह विधानसभा सीटों का समीकरण
पटना साहिब लोकसभा सीट में छह विधानसभा सीटें आती हैं. इन विधानसभा सीटों में बख्तियारपुर, बांकीपुर, कुम्हरार, पटना साहिब, दीघा और फतुहा सीटें शामिल हैं. इनमें पांच सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. सिर्फ फतुहा सीट आरजेडी के पास है.
छह विधानसभा सीटों का समीकरण
पटना साहिब लोकसभा सीट में छह विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें बख्तियारपुर, बांकीपुर, कुम्हरार, पटना साहिब, दीघा और फतुहा सीटें शामिल हैं. इनमें पांच सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. सिर्फ फतुहा सीट आरजेडी के पास है.
मतदाताओं की संख्या
इस लोकसभा सीट पर कुल मतदाताओं की बात करें तो यहां 19 लाख 46 हजार 249 मतदाता हैं. इनमें महिला मतदाताओं की संख्या 8 लाख 93 हजार 971 है. वहीं, पुरुष मतदाताओं की संख्या 10 लाख 52 हजार 278 है.
परिसीमन में बना पटना साहिब लोकसभा
पटना साहिब सीट 2008 में नए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया. इसके पहले ये सीट पटना लोकसभा के नाम से जानी जाती थी. पटना और बाढ़ लोकसभा सीट को नए परिसीमन में खत्म कर दिया गया. वर्ष 2008 में पटना साहिब और पाटलिपुत्र लोकसभा का गठन हुआ. पटना और बाढ़ के हिस्से को ही पटना साहिब और पाटलिपुत्र लोकसभा के बीच बांटा गया.
ये है इस सीट का जातीय समीकरण
जातीय समीकरण की बात करें तो पटना साहिब सीट पर कायस्थ मतदाताओं का वर्चस्व रहा है. इसके अलावा यादव और राजपूत मतदाता भी अच्छी खासी संख्या में हैं. शत्रुघ्न सिन्हा दो बार से सांसद हैं और इसी जाति से आते हैं. कांग्रेस के टिकट से चुनाव मैदान में आने से शत्रुघ्न को महागठबंधन के तहत यादव, मुस्लिम, दलित मतों का समर्थन मिल सकता है. इसके अलावा कायस्थ के वोटों में भी शत्रुघ्न सेंधमारी कर सकते हैं.
शत्रुघ्न सिन्हा की चुनौतियां
हालांकि इस बार पटना साहिब लोकसभा सीट की परिस्थितियां 2014 के मुकाबले बिल्कुल बदल गई है. 2009 और 2014 में बीजेपी के टिकट से संसद पहुंचे बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा ने इस बार बीजेपी से नाता तोड़ लिया है और कांग्रेस के टिकट पर किस्मत आजमा रहे हैं. ऐसे में उनके लिए चुनौती बहुत कठिन हैं. क्योंकि इस बार न केवल पार्टी का निशान बदला है बल्कि कार्यकर्ता भी बदल गए हैं. अटल-आडवाणी के समय से ही कमल निशान थामे 'शॉटगन' इस बार 'हाथ' के साथ हैं.
वहीं, दूसरी ओर रविशंकर प्रसाद बीजेपी के दिग्गज नेता, जाने-माने वकील और कुशल वक्ता हैं. वह मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी हैं. हालांकि ये भी सच है कि रविशंकर प्रसाद अपने 45 साल के लंबे राजनीतिक कैरियर में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में उनके लिए भी रास्ता आसान नहीं होगा. उनके सामने जातिगत समीकरण को साधने के साथ-साथ बीजेपी के परंपरागत वोटों को भी साधने की बड़ी चुनौती होगी.
चुनाव प्रचार में अपना-अपना अंदाज
चुनाव प्रचार की बात करें तो रविशंकर प्रसाद के समर्थन में बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. खुद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पटना की सड़कों पर रोड शो किया. इधर, शत्रुघ्न सिन्हा खुद सिने स्टार हैं. लोगों में उनकी दिवानगी अब भी बरकरार हैं. हालांकि उनके समर्थन में आरजेडी और कांग्रेस के नेता लगातार सभाएं कर रहे हैं. इन सब के बीच शत्रुध्न अपनी छवि के दम पर रविशंकर प्रसाद बेहद कड़ी चुनौती देते दिख रहे हैं.
कांग्रेस और बीजेपी के लिए नाक का सवाल
पटना साहिब सीट पर सिर्फ दो दिग्गजों की लड़ाई नहीं है. यहां देश के दो सबसे बड़े दलों बीजेपी और कांग्रेस और के लिए नाक का सवाल भी है. शत्रुघ्न सिन्हा के लिए जहां सीट बचाने की चुनौती है वहीं, रविशंकर के प्रतिष्ठा का सवाल. हालांकि रविशंकर प्रसाद के लिए चिंता की वजह एक और है. राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा का नाराज होना. अगर पार्टी उन्हें मना पाई तो कमल खिलना आसान हो सकता है वरना हाथ भारी भी पड़ सकता है.