पटना: बिहार के लिए यह चुनावी साल है. अक्टूबर-नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव होना है. जनप्रतिनिधियों के सामने समय पर विकास योजनाओं को पूरा करने की चुनौती थी, लेकिन कोरोना वायरस ने विकास योजनाओं पर भी असर डाला है. फंड में कटौती से एमपी और एमएलए पहले की तरह विकास योजनाओं की अनुशंसा नहीं कर पाएंगे.
चुनावी साल में विकास योजनाओं पर लग सकता है ग्रहण
अक्टूबर-नवंबर महीने में बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं. कोरोना वायरस के खतरे ने नेताओं की चिंता बढ़ा दी है. विधायक विशेष तौर पर विकास योजनाओं को लेकर चिंतित हैं. हर साल विधायक 3 करोड़ राशि की योजनाओं की अनुशंसा कर सकते थे, लेकिन इस बार 50 लाख रूपये कोरोना फंड में डाले जा चुके हैं. नतीजतन विधायक अब सिर्फ ढाई करोड़ के राशि की अनुशंसा कर पाएंगे.
ढाई करोड़ के अंदर ही योजनाओं की अनुशंसा
बिहार विधानसभा के कुल 243 सदस्य हैं और विधान परिषद के 75 सदस्य. बदली परिस्थितियों में विधायक अब मुख्यमंत्री क्षेत्रीय विकास योजना के तहत ढाई करोड़ के अंदर ही अनुशंसा कर पाएंगे. एमएलए फंड में कमी की वजह से बिहार विधानसभा के सदस्य 25 सौ योजनाओं की अनुशंसा नहीं कर पाएंगे. साथ ही विधान परिषद सदस्य भी लगभग साढ़े सात सौ योजनाओं की अनुशंसा नहीं कर पाएंगे.
सांसद भी दो साल तक नहीं कर पाएंगे योजनाओं की अनुशंसा
सांसद निधि में हर सांसद को दो किश्त में विकास के लिए 5 करोड़ निर्गत किए जाते रहे हैं. लेकिन कोरोना काल में 2 साल के लिए सांसद निधि को फ्रीज कर दिया गया है. ऐसे में सांसद भी दो साल तक योजनाओं की अनुशंसा नहीं कर पाएंगे.
बिहार में विधायकों की चिंता
एमएलए फंड और विकास योजनाओं को लेकर बिहार में विधायकों को चिंता है. कोरोना फंड में 50 लाख दिए जाने के बाद विधायक खुश तो हैं, लेकिन विकास योजनाओं को लेकर उनकी चिंता भी जायज है. विपक्ष का आरोप है कि योजनाओं की अनुशंसा करने के बाद भी 6 महीने से 1 साल का वक्त काम शुरू होने में लग जाता है.