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महाशिवरात्रि पर बन रहा अद्भुत संयोग, जानें कब और कैसे करें शिव की आराधना

आज महाशिवरात्रि पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. इसको लेकर सभी प्रमुख शिवालयों और मंदिरों में तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि के पर्व को बेहद खास माना जाता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है. महाशिवरात्रि के दिन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी और चतुर्दशी दोनों तिथि मिल रही हैं. ऐसे में इन दोनों तिथियों के मिलन को शिव और सिद्धि योग के रूप में जाना जाएगा.

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Published : Mar 11, 2021, 7:04 AM IST

mahashivratri
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वाराणसी/पटना: सनातन धर्म में तीन रात्रियों का विशेष महत्व माना गया है. काल रात्रि, मोहरात्रि और महारात्रि. कालरात्रि यानी दिवाली, मोहरात्रि यानी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और महारात्रि यानी महाशिवरात्रि और आज इसी महारात्रि का पर्व महाशिवरात्रि पूरे धूमधाम के साथ मनाया जाएगा. भोलेनाथ के विवाह के इस खास दिन को पूरा ब्रह्मांड एक अलग और अनोखे अंदाज में मनाता है.

इन सबके बीच यह जानना जरूरी है कि इस बार महाशिवरात्रि क्यों खास है और कैसे की जानी चाहिए शिव की उपासना. बता दें इस बार महाशिवरात्रि पर कई वर्षों के बाद वह अद्भुत संयोग बन रहा है, जिसमें शिव और सिद्धि दोनों का योग मिलेगा. यानी महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर शिव और सिद्धि के मिलन की बेला में यह दोनों आपकी जिंदगी को बदल देंगे.

शिवलिंग.

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है
इस बारे में पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि 11 मार्च यानी गुरुवार को महाशिवरात्रि के पावन पर्व को धूमधाम के साथ मनाया जाएगा. इस महाशिवरात्रि का विशेष महत्व इसलिए भी है कि इस दिन से जुड़े दो कथाएं अपने आप में प्रचलित हैं. महाशिवरात्रि को देवाधिदेव महादेव और माता पार्वती के विवाह के दिन के रूप में जाना जाता है. यही वजह है कि इस दिवस को महारात्रि के नाम से जाना जाता है. जिसे तंत्र साधना और सिद्धि के लिए विशेष फलदाई माना जाता है. इसके अलावा ऐसी भी मान्यता है कि आज के ही दिन भगवान शिव की ज्योतिर्लिंग के रूप में उत्पत्ति हुई थी ब्रह्मा और विष्णु के बीच कौन बड़ा है की लड़ाई को समाप्त करने के लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए भगवान शिव की उत्पत्ति के दिवस के रूप में भी महाशिवरात्रि को मनाया जाता है.

पंडित पवन त्रिपाठी

सुबह 8:23 तक होगा शिवयोग
ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि इस बार महाशिवरात्रि का पर्व बेहद कल्याणकारी होने वाला है, क्योंकि 11 मार्च गुरुवार को कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी और चतुर्दशी दोनों तिथि मिल रही हैं. ऐसे में इन दोनों तिथियों के मिलन को शिव और सिद्धि योग के रूप में जाना जाएगा. शिव और सिद्धि योग अपने आप में इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि शिव अपने आप में महादेव का नाम है और इस योग में पूजन पाठ और ॐ नमः शिवाय का जाप करना विशेष फलदाई माना जाएगा. सुबह 8:23 तक शिव योग मान्य रहेगा.

पूरे दिन से मध्य रात्रि तक रहेगा सिद्धि योग
ज्योतिषाचार्य पंडित पवन तिवारी ने बताया कि शिविर योग की समाप्ति के बाद 11 मार्च को 8:23 के बाद सिद्धि योग की शुरुआत हो जाएगी. इसके बाद पूरा दिन मध्यरात्रि के बाद तक सिद्धि योग मिल रहा है. सिद्धि योग किसी भी मंत्र को सिद्ध करने तंत्र साधना को करने और अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए सर्वोत्तम योग माना जाता है. इसलिए इस महाशिवरात्रि इन दोनों का एक साथ मिलना आपके समस्त दुखों का नाश करेगा, लेकिन इसके लिए आपको बाबा भोलेनाथ की विशेष कृपा पानी होगी.

बाबा काशी विश्वनाथ का शिवलिंग.

कैसे करें शिव को प्रसन्न और पूजा पाठ
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि इस खास दिन पर बाबा भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए आपको महाशिवरात्रि का व्रत रखना होता है, जिनके विवाह में अड़चनें आ रही हों वह इस दिन जरूर व्रत रखें और विधिवत पूजन पाठ भी करें, लेकिन अनुष्ठान, रुद्राभिषेक और भोलेनाथ की पूजा का सही विधान भी पता होना चाहिए. महाशिवरात्रि के मौके पर रुद्राभिषेक कराए जाने का विशेष महत्व माना जाता है.

कहा जाता है रुद्राभिषेक बाबा को अतिप्रिय है, लेकिन भोलेनाथ अत्यंत भोले हैं और शिव पुराण से लेकर हर शास्त्र में वर्णित है कि भोलेनाथ जो सिर्फ एक लोटा जल अर्पित करने मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं, क्योंकि कहा गया है कि जलधारा प्रियो शिवा, यानी जल की धारा भगवान शिव को अत्यंत प्रिय होती है. इसलिए ओम नमः शिवाय का जाप करते हुए भगवान शिव को यदि आप सिर्फ एक लोटा जल की अर्पित करते हैं तो वह भी आज के दिन सर्वोत्तम माना जाता है.

भगवान शंकर और माता पार्वती.

इन चीजों से होंगे शिव प्रसन्न
इसके अलावा यदि आप भगवान शिव का विशेष पूजन करना चाहते हैं तो 1 से लेकर 21 ब्राह्मण या जितनी भी क्षमता हो उसके अनुसार ब्राह्मणों की मौजूदगी में आप रुद्राभिषेक का अनुष्ठान संपन्न करा सकते हैं. इसके लिए भगवान शिव को अति प्रिय दूध, जल, भस्म, तिल, मदार की माला और भांग धतूरा चढ़ाकर बाबा भोलेनाथ की अनुकंपा पाई जा सकती है.

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