पटना: बिहार में पूर्ण शराबबंदी कानून और न्याय व्यवस्था के समक्ष बड़ी चुनौती बन गई है. बिहार सरकार ने बगैर इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप किए हुए कानून को लागू कर दिया. जिसका नतीजा है कि लोगों को न्याय पाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है. दूसरी तरफ राजस्व की कमी के चलते विकास की रफ्तार में ब्रेक लग गई है. हाईकोर्ट में शराबबंदी कानून के केस की संख्या काफी बढ़ गई (Liquor Prohibition Law Cases increased in High Court) है.
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साल 2016 में बिहार में शराबबंदी कानून लागू है. 5 साल बीत जाने के बाद भी नीतीश कुमार शराबबंदी कानून को पूरी तरह लागू करने में नाकामयाब साबित हुए हैं. पूर्ण शराबबंदी कानून को लेकर बराबर सवाल भी उठते रहे हैं. बिहार में शराबबंदी कानून बगैर किसी तैयारियों के लाया गया था. उसके साइड इफेक्ट आज भी देखने को मिल रहे हैं. न्यायिक व्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ बढ़ा है. लोगों को न्याय के लिए सालों इंतजार करना पड़ रहा है.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने बिहार की शराबबंदी कानून पर चिंता व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि बिहार में शराबबंदी कानून के केसों की बाढ़ आ गयी है. पटना हाईकोर्ट में जमानत की याचिका एक साल पर सुनवाई के लिए आती है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि बिहार में शराबबंदी कानून का मसौदा तैयार करने में दूरदर्शिता की कमी दिखी. ऐसा लगता है कि विधायक काफी लोगों की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए संसद की स्थाई समिति प्रणाली का उचित उपयोग करने में सक्षम नहीं हैं.
बता दें कि पटना उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कमी है. उच्च न्यायालय में 55 न्यायाधीश होने चाहिए, जबकि आज की तारीख में आधे से अधिक न्यायाधीशों के पद खाली पड़े हैं. शराबबंदी कानून के तहत बिहार में 2 लाख 25 हजार के आसपास मामले लंबित हैं. सिर्फ शराबबंदी के मामलों को निपटाने में न्यायालय को वर्षों लग जाएंगे.