पटनाःडॉक्टरों को धरती के भगवान का दर्जा हासिल है. कोरोना महामारी के बाद लोगों का डॉक्टरों के प्रति आस्था और बढ़ गया है. महामारी के विषम स्थिति में चिकित्सकों ने जिस सेवा भाव से मरीजों का इलाज किया है, यह समाज के प्रति उनके सेवा भाव को दर्शाता है. डॉक्टरों के समाज में योगदान के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करने के उद्देश्य से 1 जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे (National Doctors Day On 1st July) मनाया जाता है. इस बार डॉक्टर्स डे के मौके पर IGIMS के अधीक्षक डॉ मनीष मंडल (IGIMS Superintendent Dr Manish Mandal) ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया कि चिकित्सकों के लिए मानवता की सेवा भावना रखना सबसे जरूरी है. चिकित्सक मरीज से धैर्य पूर्वक अच्छे व्यवहार से बात करें क्योंकि चिकित्सकों से बात करने के बाद मरीज की आधी बीमारी दूर हो जाता है.
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कोरोना ने डॉक्टरों की महत्ता बतायाःडॉक्टर मनीष मंडल आईजीआईएमएस के सबसे यंगेस्ट मेडिकल सुपरिटेंडेंट के तौर पर जाने जाते हैं. इसके अलावा आईजीआईएमएस में कई प्रकार की आधुनिक चिकित्सा पद्धति को शुरू करने में उनका विशेष योगदान रहा है. डॉक्टर बीएन सिंह मेमोरियल बेस्ट रिसर्च पेपर के सम्मान से भी पूर्व में सम्मानित हो चुके हैं. इसके अलावा कोरोना काल के दौरान उत्कृष्ट और उल्लेखनीय कार्य के लिए आईएमए और कई संस्थाओं की तरफ से भी सम्मानित किए जा चुके हैं. डॉक्टर मनीष ने बताया कि कोरोना के समय चिकित्सकों की उपयोगिता के बारे में लोगों को बखूबी पता चला. कई लोगों को गंभीर स्थिति से चिकित्सकों ने बाहर निकाला है और स्वस्थ किया है.
'जो भी दुख में आता है उससे ये मतलब नहीं है कि वहां कितने डॉक्टर्स हैं? उसे इलाज से मतलब है और जल्दी इलाज से मतलब होता है. हम उनकी उम्मीदों पर खरा उतरें तभी हम आज डॉक्टर्स डे मना रहे हैं. यही हमारी उपलब्धि भी है. लोगों में ये विश्वास है कि मैं डॉक्टर के पास गया तो ठीक हो जाऊंगा. मरीजों की सेवा सबसे बड़ी मानवता की सेवा है. इस पेशे के सिवाय दूसरी जगह ये देखने को नहीं मिलता'-मनीष मंडल, अधीक्षक, IGIMS
मरीजों के अनुपात में चिकित्सकों की संख्या कम हैः डॉक्टर मनीष मंडल ने बताया कि विगत वर्षों में प्रदेश में मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल की संख्या भी बढ़ी है और सरकार हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने की योजना पर भी काम कर रही है. लेकिन समय के साथ साथ बीमारियों की भी संख्या बढ़ी है और बीमार लोगों की भी संख्या बढ़ी है. पहले की तुलना में चिकित्सकों की संख्या जरूर बढ़ी है, लेकिन मरीजों के अनुपात में इनकी संख्या अभी भी कम है. उन्होंने कहा कि जो भी मरीज आता है दुख में रहता है और उसे सिर्फ इतना ही मतलब होता है कि उसे जल्द ठीक कर दिया जाए और उसे इस बात से कोई मतलब नहीं रहता कि अस्पताल में डॉक्टर कम है या अधिक है. ऐसे में चिकित्सकों को पूरी सेवा भावना के साथ अपना शत-प्रतिशत मरीजों के ट्रीटमेंट के लिए देना चाहिए.
कोरोना के ट्रीटमेंट में आईजीआईएमएस का रिकॉर्ड अच्छा रहाः कोरोना के समय जब लोग अस्पताल से डर रहे थे और चिकित्सक लगातार अस्पताल में ड्यूटी कर रहे थे और कई संक्रमित भी हो रहे थे. डॉ मनीष मंडल ने कहा कि ऐसे में इस विकट स्थिति में बतौर मेडिकल सुपरिटेंडेंट अस्पताल में पुणे चिकित्सीय टीम का हौसला अफजाई करना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य रहा. उन्होंने कहा कि उन्होंने सभी को पूरी सेवा भावना के साथ मरीजों के बेहतर इलाज के लिए प्रेरित किया जिसका प्रतिफल हुआ कि कोरोना के ट्रीटमेंट में आईजीआईएमएस का रिकॉर्ड अच्छा रहा. इसके अलावा उन्होंने जिनोम सीक्वेंसिंग लैब के स्थापना के लिए भी पहल की जिसके कारण अब कोरोना के कोई नमूना का सीक्वेंसिंग करने के लिए प्रदेश से सैंपल को बाहर नहीं भेजना पड़ता है और इस बात का आसानी से पता लगा लिया जा रहा है कि कोरोना के पॉजिटिव सैंपल का वैरिएंट क्या है.
आईजीआईएमएस में ऑर्गन ट्रांसप्लांट पर काफी कामःडॉक्टर मनीष मंडल ने बताया कि वह जब से अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट बने हैं उसके बाद से ऑर्गन ट्रांसप्लांट के दिशा में काफी काम किए हैं और सबसे पहले उन्होंने कॉर्निया ट्रांसप्लांट का यूनिट शुरू किया जिसमें अब तक 600 से अधिक ट्रांसप्लांट किए जा चुके हैं. लगभग 3-4 वर्ष पहले किडनी ट्रांसप्लांट शुरू किया गया जिसमें अब तक 80 से अधिक सफल ट्रांसप्लांट किए जा चुके हैं इसके साथ ही इसके बाद बहुत महत्वकांक्षी ट्रांसप्लांट यूनिट लिवर ट्रांसप्लांट का शुरू किया गया. अब तक 2 लिवर ट्रांसप्लांट अस्पताल में हुए हैं. यह ट्रांसप्लांट एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें 12 से 14 घंटे सर्जरी में लग जाते हैं और इसके एक ट्रांसप्लांट ऑपरेशन के लिए तीन से चार चिकित्सकों की अलग अलग टीम बनाई जाती है. उन्होंने बताया कि लिवर ट्रांसप्लांट को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी है और वह लगातार लोगों को जागरूक करते रहते हैं कि किसी मरीज को अपने लीवर का एक हिस्सा काट कर दे देंगे तो आपकी जान जाने का इसमें कोई खतरा नहीं होगा और दूसरे मरीज की जान भी बच जाएगी.
राज्य का पहला बायो बैंक आईजीआईएमएस में ःडॉ मनीष मंडल ने बताया कि इन सबके अलावा पहला बायो बैंक के भी अस्पताल में ही उन्होंने शुरू कर आया है और यह बिहार में पहला है जिसमें लोग अपने टिश्यू, हार्ट का वाल्व, हड्डी जैसे कई प्रकार के अंग को डोनेट कर सकते हैं ताकि यह अंग दूसरे व्यक्ति की जान बचाने में उपयोग किया जा सके. उन्होंने कहा कि स्टेट ऑर्गन टिशू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन के वह चेयरमैन है और इस नाते वह स्कूल कॉलेज और मीडिया के माध्यम से लोगों को ऑर्गन डोनेशन के लिए लगातार प्रेरित करते रहते हैं. डॉ मनीष पांडे ने बताया कि मेडिकल के छात्र और सामान्य छात्र में फर्क यह होता है कि लोगों को जैसे ही पता चलता है कि यह छात्र मेडिकल का छात्र है तो उसे वह एक अलग सम्मान की नजर से देखते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि यह आगे चलकर एक डॉक्टर बनेगा और मानवता की सेवा के कार्य में लगेगा. उन्होंने कहा कि डॉक्टर्स डे के मौके पर वह मेडिकल की पढ़ाई कर रहे तमाम छात्रों से अपील करेंगे कि अपनी पढ़ाई को गंभीरतापूर्वक बारीकी से पूर्ण करें. खुद के अंदर मानवता की सेवा भावना जागृत करें और शत प्रतिशत इमानदारी और विनम्रता के साथ मरीजों का ट्रीटमेंट करें. कई बार डॉक्टर के व्यवहार से ही मरीज का आधा दुख दूर हो जाता है.
क्यों मनाया जाता है नेशनल डॉक्टर्स डेः पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री रहे डॉ बीएन रॉय का जन्म 1 जुलाई 1982 को हुआ था. वहीं उनका निधन 1 जुलाई 1962 को हुआ था. डॉ बीएन रॉय का चिकित्सा सेवा में अमूल्य योगदान के साथ-साथ वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी और कुशल राजनीतिज्ञ थे. 1961 में उन्हें भारत रत्न की उपाधि से भी सम्मानित किया गया था. सभी क्षेत्रों में उन्होंने मानवता के क्षेत्र में योगदान को देखते हुए उनकी याद में नेशनल डॉक्टर्स डे मनाया जाता है. चूंकि 1 जुलाई को ही डॉ बीएन रॉय का जन्म और पुण्य तिथि दोनों एक ही दिन था, इसलिए 1 जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है. पहला बार 1991 में नेशनल डॉक्टर्स डे मनाया गया था. इसके बाद से लगातार 1 जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जा रहा है.
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