बिहार

bihar

ETV Bharat / city

लॉकडाउन में घर बैठीं दाई, काम छिनने से जिंदगी मुश्किल में आई

कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए देश में इन दिनों लॉक डाउन लागू है. जिस वजह से लगभग सभी काम ठप हैं. ऐसे में दैनिक कामगारों के सामने जीवन यापन की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. काम छिनने के कारण राजधानी में दाईयों की स्थिति और मुश्किल होती जा रही है.

Domestic workers
Domestic workers

By

Published : May 1, 2020, 7:18 PM IST

पटना: ये है राजधानी के बांकीपुर के सिपाही घाट स्थित स्लम बस्ती. यहां की सैकड़ों महिलाएं घरेलू कामगार के तौर पर काम कर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करती हैं. लेकिन इन दिनों इनके पास कोई काम नहीं है. वजह है कोरोना काल में जारी लॉकडाउन. कोरोना का संक्रमण न फैले, लिहाजा जिनके घरों में ये महिलाएं काम करती थीं, उन लोगों ने इन्हें काम पर आने से मना कर दिया है.

असल में 25 मार्च को लॉकडाउन लगने के बाद धीरे-धीरे इन्हें काम पर आने से मना किया जाने लगा. हालांकि मार्च के पैसे तो मिले, लेकिन अप्रैल में काम पर नहीं जाने के कारण पैसे नहीं मिले हैं. 3 मई के बाद पता चलेगा कि मई में भी काम पर जा पाएंगे या नहीं.

काम नहीं होने से घर बैठे कामगार

पैसे नहीं मिलेंगे तो कैसे चलेगी जिंदगी

हालांकि घरेलू कामगार सोनी कहती है कि उनकी मालकिन ने मार्च में लॉक डाउन के कारण 10 दिन का पैसा काट लिया. 1500 प्रति महीने पर काम करती थी, हजार रुपए ही मिले. वहीं, मगध महिला कॉलेज की हॉस्टल में दाई का काम करने वाली रिंकू देवी की शिकायत है कि प्रिंसिपल मैडम ने एक बार भी उसकी खबर नहीं ली.

भविष्य को लेकर चिंतित दाई

खुद से घर के काम कर रहे हैं लोग

दाई को काम पर नहीं बुलाना लोगों की भी मजबूरी है. स्थानीय पार्वती देवी कहती हैं कि कोरोना संक्रमण के डर से फिलहाल दाई को काम पर आने से रोक दिया है, खुद से घर के कामकाज कर रही हैं. तो क्या उन्हें इस दौरान दाई को तनख्वाह दे रही हैं, जवाब सुनिए.

सैंकड़ों घरेलू कामगारों का काम छिना

राजधानी में सैंकड़ों घरेलू कामगारों का काम छिन गया है. एक आंकड़े के तहत राजधानी पटना में करीब 15 हजार लोग ऐसे में हैं, जो दूसरों के घरों या दफ्तरों में चूल्हा-चौकी और साफ-सफाई का काम कर अपना गुजारा करते हैं. हालांकि श्रम विभाग में मात्र 300 दाईयों का ही निबंधन है. जबकि घरेलू कामगारों के बीच काम करने वाली संस्था बिहार घरेलू कामगार यूनियन के यहां भी मात्र 3000 घरेलू कामगार ही रजिस्टर्ड हैं.

काम छिनने के कारण चूल्हा-चौकी पर भी आफत

एसोसिएशन से मिल रही सहायता नाकाफी

बिहार घरेलू कामगार एसोसिएशन की संयोजक सिस्टर लीमा कहती हैं कि यूनियन की ओर से थोड़ी-बहुत मदद की जा रही है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. लिहाजा सरकारी स्तर पर इनकी आर्थिक मदद की जानी चाहिए.

ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

सरकार से मदद की आस

जाहिर है, कोरोना काल में जारी लॉकडाउन के कारण दूसरों के घरों में चूल्हा-चौकी और साफ-सफाई का काम करने वाली दाईयों की स्थिति काफी दयनीय है. काम है नहीं और पहले के पैसे भी खत्म हो रहे हैं. ऐसे में अब इन्हें सरकार से ही आर्थिक मदद की उम्मीद बची है ताकि आने वाली मुश्किल घड़ी में घर चल सके.

ABOUT THE AUTHOR

...view details