पटना:बिहार नगर निकाय चुनाव पर फिलहाल ग्रहण लग गया है. हाईकोर्ट के फैसले के बाद चुनाव आयोग (Bihar Stat Election Commission) ने चुनाव पर फिलहाल रोक लगा दी है. हालांकि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्णय लिया है. इसको लेकर बीजेपी बिहार सरकार पर हमलावर है. पूर्व कानून मंत्री प्रमोद कुमार ने सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) से इसको लेकर इस्तीफे की मांग की है. उन्होंने कहा कि अति पिछड़ों को वो छल रहे हैं. प्रमोद कुमार भाजपा (BJP Senior Leader Pramod Kumar) के वरिष्ठ नेता हैं और नीतीश सरकार में कानून मंत्री थे.
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'मैं जब सरकार में था तो उन दिनों सरकार के फैसले का विरोध किया था. नीतीश कुमार को महाअधिवक्ता और सरकार के अधिकारियों ने समझाया भी था कि जो आप कर रहे हैं, वह गलत है. लेकिन हठधर्मिता के कारण नीतीश कुमार ने नियम-कानून को ताक पर रखकर अधिकारियों से जबरदस्ती आरक्षण के फार्मूले पर मुहर लगवा ली. नगर निकाय चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिलने वाली थी और नीतीश कुमार को इस बात का आभास हो गया था लिहाजा उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाकर आरक्षण दिया और चुनाव को लटकाने का काम किया.'- प्रमोद कुमार, पूर्व कानून मंत्री
पूर्व कानून मंत्री ने सीएम नीतीश कुमार पर साधा निशाना :पूर्व कानून मंत्रीने बिहार सीएम पर तंज कसते हुए (Pramod Kumar Target CM Nitish Kumar) कहा कि नगर निकाय चुनाव को लेकर जिस तरीके से पटना हाई कोर्ट का फैसला आया और फिर चुनाव आयोग को चुनावी प्रक्रिया पर रोक लगानी पड़ी, उससे सरकार के फैसले को लेकर सवाल उठने लगे हैं. नीतीश कुमार को नैतिकता के आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए. उन्होंने कहा कि वो अति पिछड़ा विरोधी हैं और उनके इस फैसले से पिछड़ा अति पिछड़ा समुदाय का नुकसान हुआ है.
नगर पालिका चुनाव 2022 स्थगित :गौरतलब है कि बिहार राज्य निर्वाचन आयोग ने अगले आदेश तक के लिए नगर पालिका चुनाव 2022 को स्थगित कर दिया (Bihar Municipal Election Postponed) है. पटना हाई कोर्ट के निर्देश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने यह फैसला लिया है. नगर पालिका आम निर्वाचन 2022 के पहले और दूसरे चरण के लिए 10 अक्टूबर और 20 अक्टूबर को होने वाले मतदान की तिथि को तत्काल स्थगित कर दिया है. जानकारी दी गयी है कि स्थगित निर्वाचन की अगली तिथि जल्द ही सूचित की जाएगी.
तीन जांच की अर्हता पूरी होने के बाद फैसला :बता दें कि दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि स्थानीय निकायों में ईबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक कि सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्धारित तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं कर लेती. तीन जांच के प्रावधानों के तहत ईबीसी के पिछड़ापन पर आंकड़ें जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग के सिफरिशों के मद्देनजर प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत है. साथ ही ये भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि एससी/एसटी/ईबीसी के लिए आरक्षण की सीमा कुल उपलब्ध सीटों का पचास प्रतिशत की सीमा को नहीं पार करे.