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बिहार में जातीय जनगणना कराने को लेकर सर्वदलीय बैठक आज - मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) आज जातीय जनगणना पर सर्वदलीय बैठक करने जा रहे हैं. इस बैठक में बीजेपी का क्या रुख होता है इसपर सबकी निगाह टिकी रहेगी...

जातीय जनगणना पर सर्वदलीय बैठक
जातीय जनगणना पर सर्वदलीय बैठक

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Published : Jun 1, 2022, 6:53 AM IST

पटना :बिहार में सरकार अपने संसाधन से जातीय जनगणना कराएगी. प्रदेश में जातीय जनगणना (Caste Census In Bihar) कराने को लेकर आज सर्वदलीय बैठक (All Party Meeting On Caste Census) होगी. शाम चार बजे मुख्यमंत्री सचिवालय के संवाद कक्ष में यह बैठक निर्धारित की गयी है. इसमें विभिन्न दलों के नेता शामिल होंगे. इस संबंध में सभी दलों के नेताओं की सुविधा को ध्यान में रखकर तिथि तय किया गया है.

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जातीय जनगणना पर बीजेपी का रुख क्या होगा? : जातीय जनगणना कैसे हो इसको लेकर ही सभी दल के नेताओं को ससमय बैठक में उपस्थित होने का आग्रह किया गया है. इधर इस बैठक को लेकर मंगलवार को आरजेडी ने विधानमंडल दल की बैठक की. इसके अलावा सभी पार्टियां तैयारी कर चुकी है. हालांकि जातीय जनगणना पर बीजेपी का रुख क्या रहता है इसपर सबकी नजर टिकी रहेगी.

केंद्र नहीं करायेगी जातीय जणगणना :यहां उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि सरकार जातीय जनगणना नहीं कराने जा रही है. वहीं राज्यों को ये छूट मिली है कि अगर वो चाहें तो अपने खर्चे पर सूबे में जातीय जनगणना करा सकते हैं. वहीं बिहार में लगभग सभी दल एकमत हैं कि प्रदेश में जातीय जनगणना होनी चाहिए. भाजपा ने इसे लेकर केंद्र के फैसले के साथ खुद को खड़ा रखा है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हाल में ही इस मुद्दे पर मुलाकात की थी. सीएम लगातार जातीय जनगणना के पक्ष में बयान देते रहे हैं.

नीतीश कुमार के नेतृत्व में पीएम से मिला था शिष्टमंडल : जातीय जनगणना को लेकर तेजस्वी यादव की पहल पर ही पिछले साल 23 अगस्त को नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से शिष्टमंडल मिला था लेकिन केंद्र सरकार ने साफ मना कर दिया है. अब नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक कर इस पर फैसला लेने की बात कही है. ऐसे में इसमें क्या होता है इसपर सबकी निगाह टिकी रहेगी.

दरअसल, बिहार में जातियों में बड़ी संख्या में उपजातियां हैं और जातीय जनगणना में सबसे बड़ी चुनौती यही है. जानकार भी कहते हैं कि बिहार में डेढ़ सौ के करीब ओबीसी जातियां हैं तो वहीं 60 से अधिक दलित जातियां और सवर्ण जातियों की संख्या भी अच्छी खासी है. 1931 के जातीय जनगणना के आंकड़ों का अभी भी इस्तेमाल होता है. बिहार की आबादी 12 करोड़ के आसपास है, ऐसे में जातीय जनगणना कराने में बड़ी राशि खर्च होना तय है. इसके अलावा लंबा वक्त भी लगेगा. विशेषज्ञ भी कहते हैं कि एक बड़ी चुनौती होगी.

जातीय जनगणना को लेकर सरगर्मी तेज: बिहार में वोट के लिहाज से ओबीसी और ईबीसी बड़ा वोट बैंक है. दोनों की कुल आबादी 52 फीसदी के आसपास माना जाता है. और इसमें सबसे अधिक यादव जाति का वोट है जो 13 से 14% के आसपास अभी मान जा रहा है. जहां तक जातियों की बात करें तो 33 से 34 जातियां इस वर्ग में आती है. ऐसे तो जातीय जनगणना सभी जातियों की होगी लेकिन जेडीयू और आरजेडी की नजर ओबीसी और ईबीसी जाति पर ही है. दोनों अपना वोट बैंक इसे मानती रही है.

1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुआ: 1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुआ है. इसलिए अनुमान पर ही बिहार में जातियों की आबादी का प्रतिशत लगाया जाता रहा है. बिहार में ओबीसी में 33 जातियां शामिल है तो वही ईबीसी में सवा सौ से अधिक जातियां हैं. ओबीसी और ईबीसी की आबादी में यादव 14 फीसदी, कुर्मी तीन से चार फीसदी, कुशवाहा 6 से 7 फीसदी, बनिया 7 से 8 फीसदी ओबीसी का दबदबा है. इसके अलावा अत्यंत पिछड़ा वर्ग में कानू, गंगोता, धानुक, नोनिया, नाई, बिंद बेलदार, चौरसिया, लोहार, बढ़ई, धोबी, मल्लाह सहित कई जातियां चुनाव के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं.

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