मुजफ्फरपुर: गुरुवार को गोवा की पूर्व राज्यपाल पदमश्री डॉ. मृदुला सिन्हा (Mridula Sinha) की प्रथम पुण्यतिथि मनाई गई. बिहार की डिप्टी सीएम रेणु देवी (Deputy CM Renu Devi), श्रम मंत्री जीवेश मिश्रा (Labor Minister Jivesh Mishra) और मुजफ्फरपुर सांसद अजय निषाद (Muzaffarpur MP Ajay Nishad) ने उन्हें श्रद्धांजलि दी.
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मुजफ्फरपुर के अटल सभागार में बीजेपी (BJP) की ओर से डॉ. मृदुला सिन्हा की प्रथम पुण्यतिथि (Mridula Sinha Death Anniversary) मनाई गई. जहां रेणु देवी, जीवेश मिश्रा, अजय निषाद और पूर्व मंत्री सुरेश शर्मा समेत तमाम नेताओं ने उनकी तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया. साथ ही दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की.
पद्मश्री मृदुला सिन्हा की प्रथम पुण्यतिथि इस दौरान उन्हें याद करते हुए बिहार की डिप्टी सीएम रेणु देवी ने कहा कि मृदुला सिन्हा ने अपने जीवनकाल में भारतीय संस्कृति और साहित्य के लिए अनेकों काम किया. ये मौका है, जब हम उन्हें याद कर उनके दिखाए रास्ते पर चलने का संकल्प लें.
वहीं, श्रम मंत्री जीवेश मिश्रा ने कहा कि डॉ. मृदुला सिन्हा को मिथिला से काफी लगाव था. उन्होंने कई किताबों के जरिए भारतीय संस्कृति को वैश्विक स्तर पर लाने का काम किया था.
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मृदुला सिन्हा का जन्म अनुपा देवी और बाबू छबीले के यहां 27 नवंबर 1942 को मुजफ्फरपुर जिले के छपरा गांव में हुआ था. मनोविज्ञान में एमए करने के बाद उन्होंने बीएड किया. साहित्य के साथ-साथ राजनीति की सेवा शुरू कर दी. उनकी शादी औराई के मटियानी में डॉ. रामकृपाल सिन्हा के साथ हुई थी. शहर में भी उनका गन्नीपुर में आवास है. गोवा की राज्यपाल बनने से पहले वह प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष भी रही थीं.
अगर हम मृदुला सिन्हा के साहित्यिक योगदान की बात करें तो उन्हें कई किताबें लिखी थीं. राजपथ से लोकपथ पर (जीवनी), नई देवयानी (उपन्यास), ज्यों मेंहदी को रंग (उपन्यास), घरवास (उपन्यास), यायावरी आंखों से (लेखों का संग्रह), देखन में छोटे लगें (कहानी संग्रह), सीता पुनि बोलीं (उपन्यास), बिहार की लोककथाएं-एक (कहानी संग्रह), बिहार की लोककथाएं-दो (कहानी संग्रह), ढाई बीघा जमीन (कहानी संग्रह), मात्र देह नहीं है औरत (स्त्री-विमर्श), विकास का विश्वास (लेखों का संग्रह), साक्षात्कार (कहानी संग्रह) अहिल्या उपन्यास प्रमुख हैं। वह पांचवां स्तंभ पत्रिका की संपादक भी रहीं.