मुजफ्फरपुर:जिले में तेज गर्मी और उमस बढ़ने के साथ ही एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी चमकी बुखार का कहर तेज हो गया है. चमकी बुखार को लेकर हालात बदले नहीं हैं, लेकिन कहा जा सकता है कि थोड़ा सुधार हुआ है.
अब तक 7 बच्चों की हुई मौत
साल 2020 में अब तक चमकी बुखार से जुड़े 48 मामले आए हैं. इनमें से 7 बच्चों की मौत का आंकड़ा भी रिकॉर्ड में दर्ज हुआ है. हालांकि अच्छी खबर ये है कि 35 बच्चे ठीक होकर अपने घर लौट चुके हैं. वहीं पिछले साल 150 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई थी, जिसमें से अकेले मुजफ्फरपुर के 111 बच्चे शामिल हैं. इस बार चमकी बुखार से प्रभावित इलाकों को चिन्हित कर गहन जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. प्रभावित 300 गांव को अधिकारियों ने गोद लिया है. कुपोषित बच्चों पर विशेष ध्यान देने की पहल भी की जा रही है. इस कारण चमकी बुखार से जुड़े मामलों में काफी कमी आई है.
चमकी के दौरान परेशान परिजन कई स्तरों पर हुई ठोस पहल
चमकी बुखार से निपटने को लेकर बिहार सरकार की भूमिका पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं. पिछले साल 150 से अधिक बच्चों की मौत के बाद राष्ट्रीय स्तर पर बिहार सरकार की काफी फजीहत हुई. इसके बाद चमकी से निपटने को ना सिर्फ प्रशासनिक कवायद काफी तेज हो गई है बल्कि उसका प्रभावी असर भी नजर आने लगा है. शायद यही वजह है कि पिछले 1 वर्ष के भीतर सरकार ने चमकी बुखार की चुनौती से निपटने को लेकर कई स्तरों पर ठोस पहल की है. जिसमें जागरुकता से लेकर बेहतरीन मेडिकल फैसिलिटी की उपलब्धता को सुनिश्चित किया गया है.
चमकी बुखार को लेकर जागरुकता 100 बेड के पीकू वार्ड की शुरुआत
इस कड़ी में एक बड़ी उपलब्धि रहा मुजफ्फरपुर के श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 100 बेड के पीकू वार्ड का शुरू होना. विश्व स्तरीय मानकों के अनुसार वहां अब चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों आधुनिकतम इलाज की सभी सुविधाएं मिलने लगी है. वही इस बीमारी को लेकर जिले में चलाए जा रहे जागरूकता अभियान और पोषण से जुड़े कार्यक्रम के संचालन से भी जमीनी स्तर पर चमकी से निपटने में काफी मदद मिल रही है. इन कोशिशों के बाद जिले में इस बार चमकी का प्रकोप काफी हद तक नियंत्रण में है.
एसकेएमसीएच से आती रही हैं भयावह तस्वीर
इससे पहले तक एसकेएमसीएच में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे चमकी पीड़ित बच्चों की बेहद भयावह तस्वीर नजर आती थी. एक बेड पर दो से तीन बच्चों का इलाज करना डॉक्टरों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था. यहां तक कि हालात बिगड़ने के बाद कई बार अस्पतालों की जमीन पर लिटाकर बच्चों का इलाज किया गया. इन सब तस्वीरों से सड़क से लेकर सदन तक काफी शोर-गुल और चर्चाओं का सिलसिला देखने को मिला था.
चमकी से बच्चे की मौत पर रोते-बिलखते परिजन चमकी से प्रभावित 196 गांवों को अधिकारियों ने लिया गोद
चमकी बुखार को लेकर चलाए जा रहे गहन जागरुकता अभियान का असर धीरे-धीरे ही सही लेकिन दिखने लगा है. इस बार मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन ने चमकी बुखार से प्रभावित गांवों की पहचान कर एक ठोस कार्ययोजना बनाकर काम किया है. इसके तहत जिले के 196 चमकी बुखार से प्रभावित गांवों को जिले के 196 अधिकारियों ने गोद लिया है. सप्ताह में एक दिन संबंधित अधिकारी गांव का दौरा कर जरुरी दिशा-निर्देश देकर लोगों को जागरूक करते हैं.
चमकी बुखार से पीड़ित बच्चे का इलाज करते डॉक्टर इंसेफ्लाइटिस मस्तिष्क से जुड़ी एक गंभीर समस्या
एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम को बोलचाल की भाषा में लोग चमकी बुखार कहते हैं. इस संक्रमण से ग्रस्त रोगी का शरीर अचानक सख्त हो जाता है और मस्तिष्क और शरीर में ऐंठन शुरू हो जाती है. आम भाषा में इसी ऐंठन को चमकी कहा जाता है. इंसेफ्लाइटिस मस्तिष्क से जुड़ी एक गंभीर समस्या है. दरअसल मस्तिष्क में लाखों कोशिकाएं और तंत्रिकाएं होती हैं, जिसकी वजह से शरीर के सभी अंग सुचारू रूप से काम करते हैं. लेकिन जब इन कोशिकाओं में सूजन आ जाती है तो उस स्थिति को एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम कहा जाता है.
एंबुलेंस से ले जाया जाता बच्चा शरीर का 'सेंट्रल नर्वस सिस्टम' होता है प्रभावित
चमकी बुखार के वायरस शरीर में पहुंचते ही खून में शामिल होकर अपना प्रजनन शुरू कर देते हैं. शरीर में इस वायरस की संख्या बढ़ने पर ये खून के साथ मिलकर मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं. मस्तिष्क में पहुंचने पर ये वायरस कोशिकाओं में सूजन पैदा कर देते हैं. इस वजह से शरीर का 'सेंट्रल नर्वस सिस्टम' खराब हो जाता है.