गया:शहर की गलियां इन दिनों तिलकुट कूटने की आवाज से गुलजार हैं. इन गलियों में मकर संक्रांति को लेकर तिलकुट बनाया जा रहा है. गया के रमणा रोड का तिलकुट बिहार ही नहीं पूरे देश मे प्रसिद्ध हैं. कहा जाता है तिलकुट बनाने की शुरुआत गया के रमणा रोड से हुई थी.
डेढ़ सौ साल पहले शुरु हुई थी तिलकुट बनाने की प्रक्रिया
मकर संक्रांति का त्योहार नजदीक आ गया है,जिसको लेकर गया के रमणा रोड और टिकारी रोड में कई दुकानों पर तिलकुट बनाने का काम दिन रात हो रहा है. मान्यता हैं कि मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ खाया जाता है, गया के रमणा रोड में तिलकुट बनाने की शुरुआत डेढ़ सौ साल पहले गोपी साव नामक हलवाई ने की थी. उसके बाद से लेकर अब तक उनके वंशज और उनके करगीर पारंपरिक तरीके से तिलकुट बनाने का काम कर रहे हैं.
तिल और चीनी के मिश्रण से बनता है तिलकुट
रमणा रोड में कारीगरों को तिलकुट बनाने में महारथ हासिल है. यहां कारीगर अपने हाथों से तिलकुट को खस्ता बना देता है. कारीगर ने बताया कि तिल और चीनी के मिश्रण को कोयले की आग में मिश्रित होने तक मिलाया जाता है. उसके बाद लोइयां तैयार कर सावधानी पूवर्क उसकी कुटाई की जाती है. तब जाकर एक खास्ता तिलकुट बन पाता है. गया के रमणा रोड में पटना से तिलकुट खरीदने आये ग्राहक ने बताया गया कि यहां के तिलकुट की पहचान अनूठे स्वाद के लिए भी की जाती है. तिलकुट काफी खास्ता होता है.
तिलकूट पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट गया में निर्मित तिलकुट के स्वाद का मुकाबला कहीं नहीं
तिलकुट व्यवसाय से जुड़े व्यवसायियों का कहना है इस साल चार से पांच तरह के तिलकुट बनाए जा रहे हैं. मुख्यतः चीनी और गुड़ के बने तिलकुट की मांग ज्यादा होती है. तिलकुट की कीमतों में भी पहले की तुलना में ज्यादा बढ़ गई है, और इसके पीछे महंगाई सबसे बड़ा कारण हैं. हालांकि गया में निर्मित तिलकुट और उसके स्वाद का मुकाबला कहीं नहीं है. गया के तिलकुट देश में झारखंड, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, नई दिल्ली, मुंबई सहित पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों में भी भेजे जाता है.