By Pradeep Karuturi
एनटीपीसी ने हाल ही में एक बड़ी योजना की घोषणा की है, जिसमें वे हरित हाइड्रोजन यानी ग्रीन हाइड्रोजन (Green Hydrogen) बनाने के लिए ₹1.85 लाख करोड़ का निवेश करेंगे. एनटीपीसी का यह ग्रीन हाइड्रोजन प्रॉजेक्ट भारत की एनर्जी ट्रांजिशन वाले फेज़ के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकती है. अगर आप नहीं जानते हैं, तो हम आपको बता दें कि ग्रीन हाइड्रोजन एक ऐसा ईंधन है, जो पर्यावरण के लिए काफी अच्छा होता है क्योंकि यह किसी भी प्रकार का प्रदूषण पैदान नहीं करता है. इस योजना के तहत आंध्र प्रदेश के पुडिमडाका में एक बहुत बड़ा प्लांट बनाया जाएगा, जहां पर बड़ी मात्रा में ग्रीन हाइड्रोजन का निर्माण कार्य चलेगा. यह प्रॉजेक्ट भारत को ग्रीन हाइड्रोजन के मामले में टॉप देशों में से एक बना सकता है. आइए जानते हैं कि ग्रीन हाइड्रोजन का इतना महत्व क्यों है और यह प्रॉजेक्ट भारत की सुरक्षा के लिए क्यों एक माइलस्टोन बन सकता है?
ग्रीन हाइड्रोजन क्यों महत्वपूर्ण है?
ग्रीन हाइड्रोजन (Green Hydrogen) को रिन्यूबेल एनर्जी (हवा, सूरज और पानी आदि द्वारा प्रॉड्यूस की गई बिजली) को तोड़कर यानी इलेक्ट्रोलिसिस (Electrolysis) करके बनाया जाता है. ग्रे हाइड्रोजन और ब्लू हाइड्रोजन जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuels) पर निर्भर करती है और इसलिए काफी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड रिलीज़ करती है, जो पर्यावरण के लिए काफी हानिकारक होता है, लेकिन ग्रीन हाइड्रोजन लगभग पूरी तरह से ही प्रदूषण मुक्त है और इसलिए यह पर्यावरण के लिए काफी साफ और सुरक्षित भी है. यही कारण है कि ग्रीन हाइड्रोजन हमारे पर्यावरण को बचाने और खुद को सेहदमंद रखने के लिए काफी जरूरी है.
ग्रीन हाइड्रोजन की जरूरत उन जगहों पर सबसे ज्यादा होती है, जहां कार्बन उत्सर्जन को रोकना या कम करना काफी मुश्किल होता है. उदाहरण के तौर पर स्टील फैक्ट्रियों में, खाद बनाने वाली फैक्ट्रियों में, तेल शुद्ध करने वाली रिफाइनरी फैक्ट्रियों में और ट्रांसपोर्टेशन यानी गाड़ियों और बसों के लिए ग्रीन हाइड्रोजन काफी जरूरी है. भारत ने 2070 तक प्रदूषण मुक्त होने का संकल्प लिया है और उसके लिए ग्रीन हाइड्रोजन एक बढ़िया तरीका है. ऐसे में भारत जैसे देशों के लिए ग्रीन हाइड्रोज़न प्रॉजेक्ट काफी महत्वपूर्ण हैं. ग्रीन हाइड्रोज़न जीवाश्म ईंधनों (कोयला, तेल आदि) पर निर्भरता को कम करने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन (Climate change) को भी कम करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है.
NTPC का प्रॉजेक्ट होगा गेम चेंजर
एनटीपीसी का यह ग्रीन हाइड्रोजन प्रॉजेक्ट हब 1,600 एकड़ के क्षेत्र में फैला होगा. इसमें रिन्यूएबल एनर्जी प्रॉजेक्ट, इलेक्ट्रोलिसर (Electrolysers), ग्रीन केमिकल प्रोडक्शन (Green Chemical Production) और सपोर्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे डिसैलिनेशन प्लांट (Desalination Plant) और ट्रांसमिशन कॉरिडोर (Transmission Corridor) शामिल होंगे. इसका वार्षिक लक्ष्य 1,500 टन ग्रीन हाइड्रोजन और 7,500 टन डेरिवेटिव्स (Derivatives) जैसे ग्रीन मिथेनॉल (Green Methanol) और सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (Sustainable Aviation Fuel) का उत्पादन करना है.
नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन
भारत का नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन 2023 में शुरू हुआ था और यह भारत की उर्जा परिवर्तन (Energy Transition) यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इस मिशन का लक्ष्य 2030 तक हर साल पांच मिलियन मीट्रिक टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना, ₹8 लाख करोड़ से ज्यादा इन्वेस्टमेंट को आकर्षित करना, करीब 6 लाख नौकरियां पैदा करना और ₹1 लाख करोड़ के जीवाश्म ईंधन आयात को कम करना है. इस मिशन को सफल बनाने के लिए SIGHT (Strategic Interventions for Green Hydrogen Transition) फंड की स्थापना की गई है, जिसमें 13,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. इसका मकसद ग्रीन हाइड्रोजन की मांग को बढ़ाना और इसकी लागत को कम करना है, ताकि भारत को ग्रीन हाइड्रोजन प्रॉडक्शन के मामले में ग्लोबल लीडर बनाया जा सके. इसे आसान शब्दों में समझें तो ग्रीन हाइड्रोजन प्रॉजेक्ट सिर्फ पर्यावरण को साफ और सुरक्षित बनाने के लिए ही नहीं बल्कि आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी भारत के भविष्य को बेहतर, सुरक्षित और समृद्ध बनाने के लिए भी महत्वपूर्ण है.
ग्रीन हाइड्रोजन मिशन में आने वाली बधाएं
ग्रीन हाइड्रोजन भारत और विश्व के भविष्य के लिए काफी जरूरी तो है और एनटीपीसी ने इसके लिए एक बड़े प्रॉजेक्ट का ऐलान भी कर दिया है, लेकिन जरिए तय किए गए मिशन्स और लक्ष्यों को पूरा करना आसान नहीं है. इसमें कुछ बाधाएं भी हैं.
ज्यादा कीमत: वर्तमान में, ग्रीन हाइड्रोजन को बनाने के लिए लगने वाली लागत काफी ज्यादा है, जो $3.5 से $5.5 (₹305 से ₹480) प्रति किलोग्राम तक हो सकती है, जबकि ग्रे या ब्लू हाइड्रोजन की लागत $1.9 से $2.4 (₹166 से ₹209) प्रति किलोग्राम तक होती है.
इलेक्ट्रोलिसर टेक्नोलॉजी: इलेक्ट्रोलिसर (Electrolyser) टेक्नोलॉजी के लिए भी काफी ज्यादा पैसे खर्ज करने पड़ते हैं, जो ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए काफी जरूरी है. वर्तमान में, इलेक्ट्रोलिसर टेक्नोलॉजी की कीमत $500 से $1,800 (₹43,690 से ₹1,57,286) प्रति किलोवाट तक हो सकती है.
घरेलू उत्पादन क्षमता: इलेक्ट्रोलिसर और अन्य जरूरी कंपोनेंट्स जैसे कि मेम्ब्रेन, कंप्रेसर और कंट्रोल यूनिट्स के घरेलू उत्पादन (Domestic Manufacturing) की कमी भी, ग्रीन हाइड्रोजन प्रॉजेक्ट के लिए एक बड़ी समस्या है. भारत में इन चीजों का उत्पादान काफी कम होता है और इसलिए हमें इनके आयात पर निर्भर रहना पड़ता है.
निवेशकों की चुनौतियां: ऐसे में इस प्रॉजेक्ट में पैसा लगाने वाले निवेशकों को बड़ा रिस्क उठाने की जरूरत होगी, क्योंकि उन्हें बड़े नुकसान का भी सामना करना पड़ सकता है. ऐसा भी हो सकता है कि उनके द्वारा निवेश किया गया बहुत सारा पैसा अव्यवसायिक संपत्तियों में फंसा रह जाए. ऐसे में निवेशकों को इस प्रॉजेक्ट के लिए आकर्षित करना भी एक बड़ी चुनौती है.
पहले करने में आने वाली समस्या
किसी को भी किसी भी चीज की सबसे पहले शुरुआत करने पर कुछ ऐसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है, जिनकी उन्हें उम्मीद भी नहीं होती है. इसका मतलब है कि हमें प्रदूषण मुक्त पर्यावरण बनाने के लिए सावधानीपूर्वक नीति योजना और रिस्क मैनेजमेंट की जरुरत है. हालांकि, जो लोग किसी चीज की पहल करते हैं तो उनके पास उसके बारे में जल्दी और तेजी से नई बातों को जानने और सीखने का भी मौका है, जिसके कारण उस पहल की अधिक सुविधाएं उन्हें मिल सकती है. ऐसे में अगर भारत ग्रीन हाइड्रोजन की पहल कर रहा है तो निश्चित तौर पर कई तरह की चुनौतियों और जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है लेकिन उससे होने वाली सुविधाओं का सबसे ज्यादा फायदा भी भारत को ही हो सकता है.
इन समस्याओं का समाधान क्या है?