लखनऊ :सियासत के लिहाज से साल 2024 बहुजन समाज पार्टी के लिए बेहद खराब साबित हुआ. बीएसपी सुप्रीमो मायावती लगातार कोशिशें में जुटी रहीं कि कैसे भी पार्टी की स्थिति बेहतर हो जाए, लेकिन ऐसा हो न सका. पार्टी की स्थिति और भी खस्ताहाल हो गई. पहले देश भर में लोकसभा चुनाव लड़ी बसपा एक भी सीट नहीं जीत पाई और इसके बाद नवंबर में उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में भी पार्टी का खाता नहीं खुला. हर चुनाव बहुजन समाज पार्टी के लिए अग्निपरीक्षा साबित हो रहा है और इसमें पार्टी लगातार फेल ही हो रही है. उत्तर प्रदेश ही नहीं, अन्य राज्यों में भी पार्टी ने विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन वहां भी कामयाबी नहीं मिली. लगातार गिरते मत प्रतिशत से अब तो बहुजन समाज पार्टी पर राष्ट्रीय स्तर का दर्जा भी छिनने का खतरा मंडरा रहा है.
चार बार सत्ता पर सवार, अब सियासी गलियारों में दरकिनार :उत्तर प्रदेश में जिस पार्टी की मुखिया चार बार सत्ता पर काबिज हुई हों, उस पार्टी का ग्राफ चढ़ने के बाद इस कदर उतरा कि चुनाव दर चुनाव इसमें गिरावट ही आई है. बात हो रही है बहुजन समाज पार्टी की. बीएसपी मुखिया मायावती सूबे की सत्ता पर चार बार काबिज हुईं. प्रदेश में बीएसपी की ताकत का अंदाजा साल 2007 में तब हुआ जब बीएसपी ने अकेले दम प्रचंड बहुमत हासिल किया. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. कोई पार्टी नहीं कर पाई थी. उस साल बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 212 सीटों पर जीत हासिल की और उत्तर प्रदेश के सिंहासन पर कब्जा जमाया. प्रचंड बहुमत के साथ मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. वर्ष 2012 से लेकर 2017 तक उन्होंने सत्ता पर बसपा का वर्चस्व कायम रखा, लेकिन बीएसपी ने यह कभी उम्मीद नहीं कि होगी कि जब 2017 में फिर से विधानसभा चुनाव होंगे तो पार्टी की स्थिति इस कदर बिगड़ जाएगी कि मुख्य विपक्षी दल की स्थिति तक न रह जाएगी. 2017 से बहुजन समाज पार्टी का ढलान शुरू हुआ और 2024 तक यह सिलसिला लगातार जारी है. साल 2024 तो हर लिहाज से बहुजन समाज पार्टी के लिए बुरा ही साबित हुआ है. चाहे इस साल हुआ लोकसभा चुनाव हो या फिर उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर संपन्न हुए उपचुनाव. दोनों में ही पार्टी का सूपड़ा साफ हुआ.
गठबंधन होता तो बदल सकती थी स्थिति :बहुजन समाज पार्टी ने एलान किया था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में किसी से भी गठबंधन नहीं होगा. बीएसपी मुखिया मायावती ने अपने वादे के अनुसार वैसा ही किया. देश भर में लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी मैदान में उतरी. जहां एक तरफ कई पार्टियों को मिलाकर इंडी गठबंधन बना, वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी नीत एनडीए गठबंधन में कई पार्टियां शामिल हुईं, लेकिन बीएसपी मुखिया ने जो फैसला लिया था उसके तहत चुनाव मैदान में पार्टी अकेले उतरी और नतीजे आए तो अन्य पार्टियों को तो खूब सीटें मिलीं पर बीएसपी अकेली ही रह गई. बसपा ने देश भर में 488 सीटों पर चुनाव लड़ा, जो राष्ट्रीय दलों में सबसे ज्यादा थीं. लोकसभा चुनाव में देश भर में बहुजन समाज पार्टी को एक सीट तक नहीं मिल पाई. पार्टी का खाता नहीं खुला तो कार्यकर्ता काफी हतोत्साहित हो गए. मायावती को भी झटका लगा. पार्टी में ही अंदरखाने चर्चा होने लगी कि अगर इंडी गठबंधन में बहुजन समाज पार्टी शामिल हो जाती तो फिर यूपी में बीएसपी को भी जरूर सीटें जीतने में सफलता मिलती. हालांकि उम्मीद पर दुनिया कायम तो बीएसपी भी ने भी उम्मीद नहीं छोड़ी. आगे आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए फिर से कमर कसनी शुरू की.
उपचुनाव में हुई अग्नि परीक्षा, फिर लगा झटका :लोकसभा चुनाव में हार के जख्म से उबर न सकने वाली बहुजन समाज पार्टी ने यूपी की नौ सीटों पर विधानसभा चुनाव में यह उम्मीद की थी कि जख्मों पर मरहम लग जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बीएसपी के जख्म भरने के बजाय और हरे हो गए. पार्टी का हाथी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया. नौ विधानसभा सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी बहुजन समाज पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली. इतना ही नहीं पार्टी का मत प्रतिशत भी औंधे मुंह आ गिरा.