वाराणसी:बनारस में देश के पहले अर्बन ट्रांसपोर्ट के रूप में रोपवे प्रोजेक्ट की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में की थी. क्योंकि पुरातन शहर बनारस में मेट्रोमैन श्रीधरन ने मेट्रो और मोनो रेल चलाने में असमर्थता जाहिर कर दी थी. इसके बाद प्रधानमंत्री ने रोपवे प्रोजेक्ट की परिकल्पना को साकार करने का बीड़ा उठाया. अधिकारियों ने उनके सपने को पूरा करने में जान लगा दी. लेकिन पीएम मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर ग्रहण लगता हुआ दिखाई दे रहा है. प्रधानमंत्री के इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने तीन सगी बहनों की याचिका पर रोक लगाने का आदेश दिया है.
तीन बहनों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोकःबनारस में रोपवे का निर्माण स्विट्जरलैंड की कंपनी की देखरेख में हो रहा है. नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया कार्यशाली संस्था के तौर पर काम कर रही है . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट को आने वाले 3 महीना में शुरू करने की भी तैयारी चल रही है. इस वक्त फर्स्ट फेज के ट्रायल के लिए गोंडोला को तारों पर दौड़ाया भी जा रहा है, लेकिन इन सारी चीजों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. क्योंकि वाराणसी की रहने वाली तीन सगी बहनों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमएम सुंदरेष और संजय करोल की पीठ ने तथ्यों पर विचार विमर्श करने के बाद संबंधित प्राधिकरण को रोपवे के निर्माण की यथा स्थिति बनाए रखते हुए उसे तत्काल रोकने और अगली सुनवाई अप्रैल में करने के आदेश दिए हैं.
पिलर नंबर 29 पर फंसा पेंचःवाराणसी की रहने वाली मंशा सिंह, उनकी बहन सुचित्रा सिंह और प्रतिमा सिंह की फ्री होल्ड प्रॉपर्टी गोदौलिया इलाके में है. तीन-तीन मंजिल के मकान के साथ ही आगे पांच दुकानें भी हैं, जिसे रोपवे प्रोजेक्ट के लिए तोड़ दिया गया है. यहां रोपवे के पिलर नंबर 29 यानी अंतिम पिलर का काम जारी था. तीनों महिलाओं ने एप्लीकेशन देकर पहले हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी कि उनकी प्रॉपर्टी का न ही अधिग्रहण किया गया है न ही मुआवजे की रकम दी गई है. जिसकी वजह से पहले हाई कोर्ट में मामला जारी है. हाई कोर्ट में सुनवाई की जा रही थी लेकिन अगली तिथि 18 मार्च मिलने की वजह से इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए तथ्यों के आधार पर तत्काल इस प्रोजेक्ट को रोकने और अगली सुनवाई 15 अप्रैल को करने के आदेश दिए हैं. इसके बाद इस प्रोजेक्ट के सुपरविजन करने वाले वाराणसी विकास प्राधिकरण के सामने कई चुनौतियां आ गई हैं.
वाराणसी प्राधिकरण ने कहां की गलतीःहालांकि इस पूरे मामले में कानूनी जानकार वाराणसी विकास प्राधिकरण की ही गलती मान रहे हैं. वरिष्ठ अधिवक्ता विनय शंकर तिवारी का कहना है कि नियम के मुताबिक जब भूमि अधिग्रहण होता है उसके 1 साल के अंदर पैसा संबंधित पक्ष के खाते में ट्रांसफर होना अनिवार्य है. यदि ऐसा नहीं होता तो अधिग्रहण रद्द कर दिया जाता है. उसके लिए भी नियम यही है कि अधिग्रहण से पहले नोटिस जारी किया जाता है. नोटिस के बाद जब डॉक्यूमेंट और सारी चीज जमा हो जाती हैं, उसके बाद ही वहां पर संबंधित विभाग या संस्था कार्य शुरू कर सकती है. अधिवक्ता का कहना है कि नियम यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्र में कृषि योग्य भूमि का चार गुना और शहरी क्षेत्र में अधिग्रहण होने वाली भूमि सरकारी सर्किल रेट के दोगुना हिसाब देना होता है, मार्केट रेट के हिसाब से नहीं.
मुआवजे की रकम बढ़ाने के लिए कोर्ट पहुंची बहनेंःवाराणसी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग का कहना है कि कोर्ट में सिर्फ पिलर नंबर 29 के लिए आदेश दिया है. जिसका हमारे पूरे प्रोजेक्ट पर कोई असर नहीं पड़ेगा. तीन महिलाओं द्वारा पहले हाई कोर्ट में एप्लीकेशन दी गई थी. जहां हमने अपना पक्ष मजबूती से रखा है. सुप्रीम कोर्ट में भी अपना पक्ष रखेंगे. यह पूरा मामला सिर्फ और सिर्फ मुआवजे की रकम को बढ़ाने के लिए है. मुआवजे की रकम नियम के मुताबिक सर्किल रेट की दोगुनी होती है, जो हम देने के लिए भी तैयार हैं.
तीनों बहनों को 6 करोड़ मुआवजा देने को तैयारःपुलकित गर्ग का कहना है कि हमने तीनों बहनों से कहा था कि रजिस्ट्री पेपर और सारी चीज जमा कीजिए और नोटिस भी उनको जारी किया गया है. लेकिन उन्होंने न ही कोई पेपर जमा किया ना ही रजिस्ट्री के लिए तैयार हुई. उन्होंने अपना मकान खुद खाली किया था, हमने कोई जोर जबरदस्ती नहीं की थी. इसकी वजह से हमने उनके मकान को हटाने के बाद ही अपना काम शुरू किया, लेकिन अब वह इसका विरोध कर नहीं है और पैसे बढ़ाने का भी दबाव बनाया जा रहा है. जिसकी वजह से हम कोर्ट से अपनी बातों को रखकर चीजों को स्पष्ट करने का अनुरोध करेंगे. वाराणसी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष का कहना है कि हम उन्हें लगभग 6 करोड़ रुपए देने को तैयार हैं, लेकिन वह उससे भी ज्यादा की डिमांड कर रहे हैं जिसके कारण अभी तक मामला फंसा हुआ है.