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माओवादी क्यों मनाते हैं शहीद सप्ताह? क्या था उनका उद्देश्य, शहीद स्थल पर सुरक्षाबल चला रहे स्कूल - Maoists Shaheed Saptah

Shaheed Saptah of Maoists. हर साल 28 जुलाई से 3 अगस्त तक माओवादियों द्वारा शहीद सप्ताह मनाया जाता है. लेकिन ये शहीद सप्ताह की शुरुआत कब हुई, और वर्तमान में इस सप्ताह को मनाने में माओवादी कितने सफल हुए हैं, जानिए इस रिपोर्ट में.

Shaheed Saptah of Maoists
ईटीवी भारत ग्राफिक्स इमेज (ईटीवी भारत)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jul 31, 2024, 6:53 AM IST

पलामू: प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी हर साल 28 जुलाई से 3 अगस्त तक शहीद सप्ताह मनाता है. इस दौरान माओवादी अपने मारे गए कमांडो को याद करते हैं. इस दौरान माओवादी कई हिंसक घटनाओं को भी अंजाम देते हैं. लेकिन अब बदली परिस्थितियों में माओवादी शहीद सप्ताह के दौरान किसी तरह का आयोजन नहीं कर पा रहे हैं. माओवादी पहले ऐसे आयोजन कर आम ग्रामीणों से जुड़ते थे और उन्हें अपनी नीतियों से अवगत कराते थे.

पिछले एक दशक में माओवादियों की स्थिति लगातार कमजोर हुई है. पुलिस और सुरक्षाबलों की पहुंच आम ग्रामीणों तक हुई है, जिससे लोगों को माओवादियों की मंशा का पता चल गया है. लोग पुलिस और सुरक्षाबलों पर भरोसा करने लगे हैं. यही वजह है कि पिछले पांच सालों में झारखंड, बिहार और झारखंड, छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती इलाकों से जन अदालत और शहीद सप्ताह से जुड़ी कोई खबर सामने नहीं आई है.

माओवादियों ने कब से मनाते हैं शहीद सप्ताह?

माओवादियों ने केंद्रीय समिति के सदस्य श्याम, मुरली और महेश की मौत के बाद शहीद सप्ताह शुरू किया था. माओवादियों का आरोप है कि मुठभेड़ में तीनों नेता मारे गए. तब से माओवादी हर साल शहीद सप्ताह मनाने का ऐलान करते हैं. इस दौरान माओवादी कई इलाकों में पोस्टर भी लगाते हैं और कई तरह के आयोजन करते रहे हैं.

एक पूर्व माओवादी ने बताया कि इस दौरान माओवादी कई तरह के आयोजन करते हैं और ग्रामीणों तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश करते हैं. कुछ मौकों पर माओवादियों का हिंसक चेहरा भी सामने आता है, लेकिन माओवादी ज्यादातर अपनी बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं. लेकिन अब धीरे-धीरे हालात बदल गए हैं, अब उनकी कोई नहीं सुनता है. संगठन में अब वैसा नेतृत्व नहीं रहा. माओवादी सिर्फ पैसे के पीछे भाग रहे हैं.

माओवादियों के शहीद स्थल पर खोला गया स्कूल

माओवादियों ने झारखंड-छत्तीसगढ़ सीमा पर बूढ़ापहाड़ के झालूडेरा और झारखंड-बिहार सीमा पर छकरबंधा में शहीद स्थल बनाया था. 2022 के बाद दोनों जगहों पर सुरक्षाबलों का कब्जा हो गया है और माओवादी पूरा इलाका छोड़कर भाग गए हैं. बूढ़ापहाड़ के झालडेरा में जिस जगह माओवादी शहीद सप्ताह मनाते थे और उसे शहीद स्थल मानते थे, वहां अब केंद्रीय रिजर्व पुलिस स्कूल चला रही है. सीआरपीएफ के अधिकारी और जवान स्थानीय ग्रामीण बच्चों को स्कूली शिक्षा दे रहे हैं.

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