लखनऊ: रेवड़ी ले लो...रेवड़ी, लखनऊ की मशहूर खुशबूदार, जायकेदार रेवड़ी...ये आवाज आप जब भी कभी लखनऊ के रेलवे स्टेशन या बस अड्डे पर पहुंचते हैं तो जरूर सुनाई देती होगी. वैसे तो लखनऊ की मशहूर रेवड़ी बारहों मास यानी पूरे साल, 365 दिन बिकती है.
लेकिन, सर्दियों में इसको खाने का अलग ही मजा है. वैसे तो इन दिनों राजनीति में 'मुफ्त की रेवड़ी...' बांटने जैसे बयानों ने इस खास मिठाई में कड़ुवाहट पैदा कर दी है. लेकिन, इसका इतिहास और बनाने का तरीका हर किसी को रोमांचित कर देता है. आईए जानते हैं रेवड़ी के पीछे छिपी कहानी और परंपरा के बारे में, जिससे इसको एक अनूठा स्वाद और खुशबू मिली.
लखनऊ की मशहूर रेवड़ी पर संवाददाता की खास रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat) रेवड़ी का इतिहास कितना पुराना:लखनऊ की रेवड़ी वाली गली के व्यवसायी संजीव ने बताया कि तिल और गुड़ से बनने वाली यह मिठाई करीब चार-पांच हजार वर्ष पुरानी है. यह संसार की सबसे पुरानी मिठाइयों में से एक है. उस दौर में इसे एक खास मिठाई के रूप में पेश किया जाता था.
रेवड़ी में खुशबू के लिए क्या मिलाते हैं:"रेवड़ी में गुलाब जल का इस्तेमाल इसे खुशबूदार बनाता है. शक्कर, तिल और गुड़ के मेल से तैयार यह मिठाई न केवल स्वादिष्ट होती है बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद मानी जाती है. हमारा यह पुश्तैनी कारोबार है, जो दादा-परदादा के समय से चल रहा है.
रेवड़ी तैयार होने के बाद उनकी की जाती है विशेष पैकिंग. (Photo Credit; ETV Bharat) रेवड़ी की अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग परंपरा:केवल लखनऊ में ही नहीं, रेवड़ी की विरासत अन्य राज्यों में भी है. वहां की परंपरा और कहानियां भी अलग हैं. कहते हैं कि गुजरात के कच्छ जिले में पुरातत्व विभाग ने जो हड़प्पा कालीन स्थल खोजा था, वहां पर तिल और गुड़ के अवशेष मिले हैं.
कारखाने में तैयार होने के बाद अलग-अलग तौल के हिसाब से रेवड़ी को किया जाता है पैक. (Photo Credit; ETV Bharat) प्राचीन भारत में तिलोदन (तिल की खीर) का उल्लेख भी मिलता है. राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात के आदिवासी इलाकों में आज भी लोग सर्दियों में तिल गुड़ और घी का बना पकवान खाते हैं. इसका नाम भी तिलकुटी है. यह तिलकुटी राजस्थान में गुजरात बॉर्डर से लेकर भीलवाड़ा-अजमेर की अरावली पहाड़ी के गांवों-कस्बों तक खाया जाता है.
रेवड़ी के कितने प्रकार:लखनऊ के व्यवसायी संजीव ने बताया कि पहले केवल एक प्रकार की रेवड़ी बनाई जाती थी. लेकिन, अब छह अलग-अलग किस्में तैयार की जाती हैं, जिनकी कीमतें भी अलग-अलग होती हैं. यह मिठाई हर वर्ग के लोगों के बीच समान रूप से लोकप्रिय है. यात्रियों के लिए तो यह खासतौर पर एक यादगार तोहफा बन चुकी है, जिसे वे अपने घर ले जाते हैं.
खूंटी पर टांगकर घंटों खींचने के बाद तैयार होती है लखनऊ की मशहूर रेवड़ी. (Photo Credit; ETV Bharat) कैसे बनती है रेवड़ी:रेवड़ी बनाने की प्रक्रिया भी उतनी ही अनोखी है. रेवड़ी मुख्यतौर पर तिल को चीनी या गुड़ की चाशनी में मिलाकर बनाया जाता है. गुड़ या शक्कर की चाशनी को ठंडा करने के बाद दीवार में लगे खूंटों से खींचा जाता है. यह खींचने की प्रक्रिया चाशनी को सफेद और लचीला बनाती है. इसके बाद इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर तिल में लपेटा जाता है. इसी प्रक्रिया से तैयार होती है लखनऊ की यह मशहूर रेवड़ी.
लखनऊ की मशहूर चीनी वाली रेवड़ी. (Photo Credit; ETV Bharat) इसके कई फ्लेवर्स हैं और उसके हिसाब से इसमें ड्राई फ्रूट्स या चॉकलेट आदि अन्य चीजों का इस्तेमाल किया जाता है. रेवड़ी का नाम आते ही मुंह में एक मिठास और मन में लोहड़ी जैसी मस्ती घुल जाती है. तिल की वजह से रेवड़ी स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक मानी जाती है.
क्या कहते हैं रेवड़ी के शौकीन:मेरठ से आए लखनऊ की रेवड़ी के शौकीन रविंद्र का कहना है कि हम जब भी लखनऊ आते हैं तो यहां की मशहूर रेवड़ी जरूर ले जाते हैं. इसकी खुशबू और जायका मुझे बेहद पसंद है. बिहार में नौकरी कर रहे रवींद्र राय कहते हैं कि जब भी हम अपने साथियों के पास होते हैं तो वह लखनऊ की रेवड़ी की जरूर चर्चा करते हैं. यही वजह है कि अब जब हम बिहार वापस जा रहे हैं तो रेवड़ी खरीदने आए हैं. ताकि अपने दोस्तों को खिला सकें.
सरदार जी रेवड़ी वालों ने बताया इस खास मिठाई का इतिहास. (Photo Credit; ETV Bharat) अब तो रेवड़ी विदेश भी जा रही:सरदार जी रेवड़ी वाले कहते हैं कि युवा वर्ग रेवड़ी पसंद नहीं कर रहा है. वह चाइनीस फूड को पसंद कर रहा है. लेकिन, अभी भी इसके शौकीन मौजूद हैं. हमारे यहां से विदेश भी रेवड़ी भेजी जाती है. हमने खुद कनाडा और अमेरिका में लखनऊ की मशहूर रेवड़ी भिजवाई है. उत्तर प्रदेश सरकार ने लखनऊ की रेवड़ी को GI टैग (Geographical Indication) प्रदान किया है, जिससे इसका निर्यात संभव हो गया है.
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