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बनारस के इन बूथों से जुड़े हैं सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे लोग, वोटिंग 25 प्रतिशत से भी कम; जानिए पूर्वांचल की 12 सीटों का हाल - lok sabha election 2024

बनारस में पढ़े-लिखों का बूथ कहे जाने वाले केंद्रों पर वोटिंग प्रतिशत निराश करने वाला है. वहीं पिछले दो चुनावों में पूर्वांचल की 12 सीटों का यही हाल रहा. जानिए पिछले चुनावों में कहां कितना हुआ मतदान, और क्या रही वजह.

पूर्वांचल में वोटिंग प्रतिशत का हाल.
पूर्वांचल में वोटिंग प्रतिशत का हाल. (PHOTO CREDIT ETV BHARAT)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 26, 2024, 5:55 PM IST

पूर्वांचल में वोटिंग प्रतिशत का हाल. (VIDEO CREDIT ETV BHARAT)

वाराणसी : पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी पर हर चुनाव में सबकी नजरें टिकी रहती हैं. पीएम के साथ विपक्षी दलों के दिग्गज नेताओं का भी बराबर बनारस आना लगा रहता है. राजनीतिक सरगर्मी इतनी कि रोज ही सभाएं और रोड शो निकलते हैं. ऐसे में माना जा सकता है कि यहां लोगों में राजनीतिक चेतना भी उतनी ही जागृत होगी और बढ़ चढ़कर मतदान होता होगा, लेकिन ऐसा है नहीं. खासकर उन बूथों पर जहां सबसे ज्यादा शिक्षित वर्ग आता है. बनारस में पढ़े-लिखों का बूथ कहे जाने वाले 35 ऐसे मतदान केंद्र हैं, जहां पर 25 फीसदी से भी कम वोट पड़ते हैं. पूरे बनारस में कम मतदान वाले बूथों की संख्या लगभग 700 है.

साल 2014 हो या फिर 2019 का लोकसभा चुनाव, दोनों में ही पूर्वांचल के लगभग 1200 बूथों पर 40 फीसदी से भी कम वोट पड़े हैं. रिकॉर्ड देखें तो साल 2014 में 'मोदी लहर' के बाद भी कुछ ऐसे बूथ थे, जहां पर कम वोटिंग हुई थी. इसके बाद साल 2019 के चुनाव में लगभग यही हाल देखने को मिला था. लोगों में उत्साह की कमी के कारण भी वोटिंग प्रतिशत कम देखने को मिला था. पूर्वांचल की 12 लोकसभा सीटों के 1200 बूथों पर बीते दो लोकसभा चुनावों में वोट प्रतिशत में कमी देखी गई है. इनमें ग्रामीण और शहरी दोनों शामिल हैं.

पढ़े-लिखे लोगों के बूथ पर कम हुई वोटिंग

वाराणसी की बात करें तो साल 2014 और 2019, दोनों ही लोकसभा चुनावों में कुछ बूथों पर वोटिंग प्रतिशत कम रहा है. वहीं दोनों ही बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से जीत दर्ज की है, जिसमें एक बड़े अंतर से उन्हें जीत मिली थी. इसके बावजूद भी साल 2014 में 708 बूथों पर 40 फीसदी से भी कम वोट पड़े थे, जबकि साल 2019 में बूथों की संख्या 693 थी. दोनों ही चुनावों में 35 बूथों पर 25 फीसदी से भी कम वोटर पहुंचे थे. साल 2019 में बीएचयू कला संकाय कक्ष-2 में 21.24 प्रतिशत, पूर्वोत्तर रेलवे जू. हाईस्कूल में 24.40 प्रतिशत, बरेका केंद्रीय विद्यालय में तीन बूथों पर 34.82, 31.44, 26.28 प्रतिशत वोट पड़े थे. ये बूथ प्रबुद्ध लोगों के बूथ माने जाते हैं.

पूर्वांचल के इन बूथों पर 25 फीसदी से कम मतदान

पिछले लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल की 12 लोकसभा सीटों पर कई ऐसे बूथ रहे, जिनपर महज 25 फीसदी ही मतदान हुआ था. कई बूथों पर मतदान इससे भी कम हुआ था. बलिया के दो बूथों पर 20 प्रतिशत से कम, गाजीपुर के पंचायत भवन सराय बूथ पर 19.98 प्रतिशत, भदोही विधानसभा क्षेत्र के कुढ़वा क्षेत्र में 25 फीसदी से कम, आजमगढ़ में जूनियर हाईस्कूल इब्राहिमपुर के बूथ संख्या 11 पर 17.5 प्रतिशत और प्राथमिक विद्यालय आराजी महलपुरवा में 23.30 प्रतिशत, जौनपुर में छानबे विधानसभा क्षेत्र के कामापुर क्षेत्र में 25 फीसदी से कम मतदान हुआ था.

'मोदी लहर' में भी पूर्वांचल के बूथों पर ये हाल

साल 2014 का जब लोकसभा चुनाव आया उस समय 'मोदी लहर' की बात कही जा रही थी, जो रिजल्ट के बाद सही साबित हुई. मगर उस दौर में भी पू्र्वांचल की कुछ ऐसी सीटें थीं, जिनपर बुरा हाल था. सोनभद्र में 190 बूथों पर 40 फीसदी से कम मतदान हुआ था. राबर्ट्सगंज और ओबरा नगर भी इसमें शामिल हैं. यहां पर शिक्षित मतदाताओं की संख्या 70 फीसदी से अधिक है. वहीं, अन्य जिलों की बात करें तो जौनपुर में करीब 60 बूथों, चंदौली में 69 बूथों, भदोही में 5, मऊ में 13 बूथों पर 40 फीसदी से कम वोट पड़े थे.

2019 में इन बूथों पर पड़े 40 फीसदी से कम वोट

साल 2019 में भी कम वोटों का मामला देखने को मिला था. पूर्वांचल में ऐसे कई बूथ थे, जिनपर 40 फीसदी से कम मतदान हुआ था. लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में 693 बूथ, सोनभद्र में 200, बलिया में 100, चंदौली में 87, लालगंज में 54, आजमगढ़ में 30, गाजीपुर में 22, जौनपुर-मछलीशहर में 22, घोसी में 17, भदोही में 5 और मिर्जापुर में 5 बूथों पर 40 फीसदी से कम वोट पड़े थे. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मऊ विधानसभा क्षेत्र (सबसे अधिक साक्षर) के बूथ संख्या 13 सनेगपुर में सबसे कम 1.56 फीसदी मतदान हुआ था. यहां 1282 मतदाताओं में से 20 लोगों ने ही मतदान किया था.

'आज के शिक्षकों में नहीं है वैसा रुझान'

राजनीतिक विश्लेषक रवि प्रकाश पांडेय कहते हैं कि, एक समय था जब शिक्षक शिक्षा दान के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण और समाज निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता था. मगर हाल के दशकों में लगभग तीन दशक में देखा जाए तो शिक्षकों के बीच ऐसा रुझान आया है कि वे दूसरों की आलोचना करना ही अपना अधिकार समझते हैं. कर्तव्य निर्वाह में वे सबसे पीछे हैं. ड्राइंग रूम में बैठकर पूरी दुनिया की व्यवस्था का विश्लेषण वे कर लेंगे, मगर खुद बाहर निकलकर वोट देने नहीं जाएंगे. ये विलासता के प्रति उनका बढ़ता रुझान और मूल दायित्व के प्रति घटता रुझान बहुत ही चिंता का विषय है. विश्वविद्यालयों के कुछ शिक्षकों के लिए यह आत्ममंथन का विषय है.

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