विदिशा: मध्य प्रदेश के विदिशा में कई ऐतिहासिक धरोहर हैं, जो आज भी अपनी पहचान लिए खड़ी हैं. इन्हीं ऐतिहासिक धरहरों में महत्वपूर्ण विजय मंदिर भी है. यह मंदिर हिन्दूओं की आस्था का प्रतीक है. लेकिन इस मंदिर में पिछले 72 सालों से ताला लगा हुआ है. 1991 में इस पर दो संप्रदायों को अपने अधिकार जताने के चलते भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसके बारे शोध शुरू किया था. तभी से आज तक यह मंदिर ASI के ही कब्जे में है और इसमें ताला लगा हुआ है. साल में एक बार नागपंचमी के दिन लोग यहां पूजा करने आते हैं. उस दिन भी मंदिर का ताला नहीं खुलता बाहर से ही लोग पूजा करके चले जाते हैं.
विदिशा विजय के उपलक्ष्य में हुआ था निर्माण
विजय मंदिर का निर्माण परमार काल के शासक राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री चालुक्य वंशी वाचस्पति ने 11वीं सदी में विदिशा विजय के उपलक्ष्य में कराया था. मंदिर का निर्माण परमार शैली के अनुरूप भव्य विशाल पत्थरों पर अंकित परमारकालीन राजाओं की गाथाओं से किया गया है. यह मंदिर तत्कालीन समय में विश्व के सबसे विशाल और विराट मंदिरों में शामिल था. बताया जाता है कि यह मंदिर करीब डेढ़ सौ गज ऊंचा था. मुगल शासकों को मंदिर की भव्यता और लोगों की आस्था खटकती रहती थी.
इसलिए निर्माण के 2 सदी बाद ही मुगल शासक इल्तुतमिश ने 1233-34 में इस पर हमला कर दिया. जिसमें मंदिर के साथ-साथ ही विदिशा नगर को भी लूट लिया था. तत्कालीन राजा ने 1250 में इसका पुनरोद्धार कराया. लेकिन सन 1290 में एक और मुगल शासक की नजर लग गई. अलाउद्दीन खिलजी के मंत्री मलिक काफूर ने इस मंदिर और विदिशा नगर पर आक्रमण कर दिया. उसने मंदिर को छतिग्रस्त कर दिया, सारी मूर्तियों को नष्ट कर दिया और 8 फीट की एक अष्टधातु की मूर्ति लूटकर चला गया. इस मंदिर पर मुगल शासकों के आक्रमण का सिलसिला यहीं नहीं रुका इसके बाद भी कई हमले हुए.
औरंगजेब ने 11 तोपों से उड़ा दिया था
वर्ष 1459-60 में मंदिर पर तीसरा हमला हुआ. मांडू के शासक महमूद खिलजी ने मंदिर में जमकर लूटपाट की. इसके बाद भी हमलावरों की भूख शांत नहीं हुई और 1532 में मुगल शासक बहादुर शाह ने हमला किया और सब कुछ लूट ले गये. चार हमले झेलकर भी अपनी विरासत और पहचान को लिए मजबूती से खड़े इस मंदिर को आखिरकार थक हारकर मुगल शासक औरंगजेब ने 17वीं शताब्दी (करीब 1682 में) इसे 11 तोपों से उड़ा दिया और लूटपाट कर मूर्तियों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था. मंदिर के सभी भागो को खंडित-विखण्डित करके औरंगजेब ने इसको मस्जिद का स्वरूप दे दिया.
1965 में नमाज पढ़ने पर लगा बैन
भारत की स्वतंत्रता के बाद 1947 में हिन्दू महासभा ने इसके अधिकार को लेकर सत्याग्रह आंदोलन शुरु किया था. यह आंदोलन 1964 तक चला. हालांकि इस मंदिर में 1965 तक ईद की नमाज अदा की जाती रही. 1965 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ द्वारका प्रसाद मिश्र ने यहां नमाज पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया. हिन्दू महासभा ने आंदोलन तो बंद कर दिया लेकिन अपने कूटनीतिक प्रयास लगातर जारी रखा.
खुदाई में मंदिर के प्रमाण मिले थे