विदिशा।पुराने समय में बेतवा को वेत्रवती नाम से पुकारा जाता था और कहा जाता था कि इसके चरण तीर्थ घाट पर स्नान करने से कोढ़ जैसा असाध्य रोग भी ठीक हो जाता था. लेकिन अब यहां हालत ऐसे है की पानी दिखना तो बंद हो गया और पूरी नदी जलकुंभी की चपेट में है. दूर से नदी ऐसी नज़र आती है मानो कोई सब्जी का खेत हो. जबकि महाकवि कालिदास द्वारा रचित मेघदूत में भी बेत्रवती नदी का वर्णन मिलता है. आज हालत यह है कि बेतवा का जल आचमन करने योग्य भी नही रह गाया है. नियमित स्नान करने आने वाले श्रद्धालुओं में विभिन्न चर्म रोग हो रहे है तो अनेक श्रद्धालु बेतवा के घाट पर ही जेटपंप के पानी से नहा रहे हैं.
बेतवा नदी में मिल रहा नालों का पानी
दरअसल बेतवा नदी मंडीदीप के पास से निकलती है और विदिशा तक आते आते दम तोड़ देती है. क्योंकि सरकारों ने इसके संरक्षण पर कोई ध्यान नहीं दिया. न तो इसके किनारे पर वृक्षारोपण किया न ही उद्योग और किसानों को इससे सीधे पानी लेने से रोका. उल्टे इसके किनारे लगे पेड़ काट दिए गए. अतिक्रमण कर निर्माण कार्य होने दिया गया. रही सही कसर विदिशा शहर के गंदे नालों ने पूरी कर दी, जो सीधे बेतवा नदी में अपनी पूरी गंदगी उड़ेल रहे हैं.
शिवराज का गृहक्षेत्र, नदी के लिए नहीं किया कोई काम
नागरिक समय समय पर बेतवा को निर्मल और अविरल बनाने के लिए मुहिम चलाते रहे और सरकार सिर्फ आश्वासन देती रही. 18 साल तक शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे उन्होंने भी बेतवा नदी के संरक्षण के लिए कुछ नहीं किया. अब हालत यह है कि बेतवा अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. कही पूरी तरह रेगिस्तान की तरह सूख गई है तो कही गंदे नाले में तब्दील हो गई. कही किसी हरे भरे खेत की तरह नजर आ रही है. अब जब बेतवा नदी के हालात यह है तो इसके किनारे बने मंदिर और घाट श्रमदान कर रहे लोगों के भरोसे ही जीवित है.
चारों तरफ गंदगी का अंबार
बहरा बाबा घाट पर अपने पोते को बेतवा नदी दिखाने लेकर आए शहर के निवासी वीरेंद्र पितलिया से हमने बात की तो उन्होंने बताया कि ''अपने पोते को बेतवा नदी के दर्शन करने लाया था, क्योंकि हमारे धर्म ग्रंथों में यह पुण्य नदी मानी जाती है. लेकिन आज के हालात देखकर अफसोस हो रहा है. बेतवा नदी के नाम पर बहुत राजनीतिक रोटियां सेकी जाती हैं और आज तक इसका पूर्ण रूप से कोई भी जीर्णोद्धार नहीं हुआ है. विदिशा शहर का जितना भी गंदा पानी है वह इस घाट नाले से बेतवा नदी में मिल रहा है. यह बेतवा नदी तो नहीं रही है, बल्कि कोई नाला है या गंदी जगह नजर आती है. नदी के संरक्षण की इतनी मांग करने के बाद भी यहां का शासन प्रशासन आज तक कोई ऐसा ठोस कदम नहीं उठा पाया जिससे कि बेतवा नदी की गंदगी खत्म हो जाए.''
कागजों में बनती हैं योजनाएं
लोगों का कहना है कि ''योजनाएं सिर्फ कागजों में ही बनती हैं. हम लोग बेतवा नदी को बचाने के लिए मांग करते हैं, अधिकारी आकर नापा तोली करते हैं और प्रेस कॉन्फ्रेंस हो जाती है. लेकिन उस संबंध में कोई ठोस कदम आज तक उठा.'' स्थानीय निवासी कुंजीलाल तिवारी का कहना है कि ''बेतवा नदी के इस चोर नाले को तुरंत बंद किया जाए नहीं को हम आंदोलन करेंगे. हमारी बेतवा मैया स्वच्छ और पवन बनी रहे, इसमें पितृ दोष कई प्रकार की पूजन की जाती है. पिंडों का विसर्जन भी किया जाता है. लोगों की भाव भक्ति पर ठेस पहुंच रही है. इसलिए इस पर तुरंत रोक लगाई जाए.''