वाराणसी : श्रद्धया इदं श्राद्धम, यानी पितरों के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए, वह श्राद्ध है. सनातन धर्म में आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या (15 दिन तक) पूर्वजों के लिए समर्पित हैं. इस बार द्वितीया तिथि की हानि व प्रतिपदा तिथि मध्याह्न में 18 सितम्बर को मिल रहा है. श्राद्धकर्म सुबह ही किए जाते हैं. इसलिए 18 सितंबर को प्रतिपदा का श्राद्ध किया जा सकता है, लेकिन पितृपक्ष की शुरुआत 19 सितंबर से मानी जाएगी. द्वितीया तिथि के हानि की वजह से 19 सितंबर से 15 दिनों के पितृपक्ष की शुरुआत होगी.
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि शास्त्र के अनुसार श्राद्ध काल निर्णय के बारे में कहा गया है कि आठवां मुहूर्त कुतुप और नौवां रोहिणेय नामक होता है. रोहिणेय काल के बाद जिस तिथि का आरंभ हो उसमें श्राद्ध नहीं करना चाहिए. इसलिए भाद्र शुक्ल पूर्णिमा व प्रतिपदा का श्राद्ध 18 सितम्बर को किया जाएगा. हालांकि शास्त्र के अनुसार आश्विन कृष्ण प्रतिपदा उदयातिथि में 19 सितंबर को मिल रहा है, जबकि आश्विन कृष्ण प्रतिपदा तिथि 18 सितम्बर प्रात: 08:41 बजे पर लग रही है, जो 19 सितम्बर को प्रात: 06:17 बजे तक रहेगी. उदया में प्रतिपदा 19 सितम्बर को मिलने से पितृपक्ष 19 सितम्बर से प्रारंभ होगा.
पितृ विसर्जन दो अक्टूबर को :19 सितम्बर को द्वितीया का श्राद्ध किया जाएगा. पूर्णिमा व प्रतिपदा का श्राद्ध 18 सितम्बर को होगा. जबकि सर्वपितृ विसर्जन, अमावस्या तिथि पर दो अक्टूबर को होगी. इसके अगले दिन तीन अक्टूबर से शारदीय नवरात्र आरंभ होगा.
शास्त्रों में तीन ऋण का वर्णन :शास्त्रों में मनुष्यों के लिए देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण बताए गए हैं, जिन माता-पिता ने हमारी आयु-आरोग्यता और सुख-सौभाग्यादि की अभिवृद्धि के लिए अनेकानेक प्रयास किए उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म लेना निरर्थक होता है. इसीलिए धर्मशास्त्र में पितरों के प्रति श्रद्धा समर्पित करने को पितृपक्ष महालया की व्यवस्था की गई है. पितृगण अपने पुत्रादिक से श्राद्ध-तर्पण की कामना करते हैं. यदि यह उपलब्ध नहीं होता तो वे नाराज होकर श्राप देकर चले जाते हैं.