वाराणसी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर इस बार के लोकसभा चुनाव में कम रहा. 10 लाख से ज्यादा वोटों से पीएम मोदी के जीतने का दावा किया गया था, लेकिन लंबी-चौड़ी फौज होने के बावजूद यह संभव नहीं हो पाया. इससे बीजेपी की प्लानिंग सवाल के घेरे में आ गई है. भाजपा के गढ़ कहे जाने वाले बनारस में 2014, 2019 के मुकाबले जीत का अंतर काफी कम रहा. ये हालात तब बने जब प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र में 8 विधायक, 3 एमएलसी, 3 मंत्री, 1 मेयर और मिनी सदन में 65% से ज्यादा पार्षदों के अलाव 50 हजार पन्ना प्रमुख पर पार्टी को दावे को हकीकत में बदलने की जिम्मेदारी थी. पिछली बार पीएम मोदी के जीत का अंतर 479505 था, जबकि इस बार यह 152513 पर पहुंच गया.
भारतीय जनता पार्टी ने बनारस को अपना सबसे भरोसेमंद किला मानकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीसरी बार चुनाव लड़वाने का काम किया. 2014 और 2019 में मिली बड़ी जीत ने बीजेपी को गदगद किया. इस बार नारा दिया गया 10 लाख पार. माना जा रहा था पीएम मोदी इस बार पूरे देश में सबसे ज्यादा वोटों से जीतने वाले प्रत्याशी बनेंगे. इसके लिए बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत बनारस में झोंक दी थी.
एक के बाद एक प्रधानमंत्री मोदी के रोड शो से लेकर सीएम योगी, यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य, ब्रजेश पाठक, गृहमंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री रह चुकी स्मृति ईरानी, जेपी नड्डा और भाजपा संगठन से जुड़े तमाम कद्दावर नेता बनारस में ही डेरा डाले हुए थे. कोई गलियों में घूम के कचौड़ी खा रहा था तो कोई चाय की दुकान पर अड़ीबाजी कर रहा था, सबका टारगेट बस यही था 10 लाख से ज्यादा अंतर से पीएम मोदी को जिताना.
सबसे बड़ी बात यह है कि इस पूरे प्लान को धरातल पर उतारने की तैयारी बनारस से लोकल संगठन के कंधों पर थी. इसमें आठ विधानसभा के विधायक, तीन एमएलसी और मंत्रियों की लंबी चौड़ी फौज में शामिल कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर, मंत्री रविंद्र जायसवाल, राज्य मंत्री दयाशंकर मिश्र, महापौर अशोक तिवारी, विधायक और पूर्व मंत्री नीलकंठ तिवारी को भाजपा ने इस बड़ी जीत के लिए बड़ी प्लानिंग के साथ काम करने की जिम्मेदारी दी थी.