उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

अयोध्या में उत्तराखंडी हुड़के की थाप, राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दिन होगा 'मंगल ध्वनि' का वादन - Mangal Dhwani of Ram Mandir

Uttarakhand Traditional Musical Instrument Hudka in Ayodhya उत्तराखंड में परंपरागत वाद्य यंत्र की धुनें लगातार कम हो रही हैं. बदलते दौर में पारंपरिक वाद्य यंत्र हुड़का भी संकट में है, लेकिन इस वाद्य यंत्र की थाप अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दौरान 'मंगल ध्वनि' में सुनने को मिलेगा. जो प्राण प्रतिष्ठा का भी साक्षी बनेगा. जानिए क्या है हुड़का...

Mangal Dhwani in Ayodhya
अयोध्या में हुड़का

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 21, 2024, 4:20 PM IST

श्रीनगर: अयोध्या में श्री राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरे देश भर में उत्साह का माहौल है. राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दिन 'मंगल ध्वनि' का गायन होगा. जिसमें देश भर के विभिन्न दुर्लभ वाद्य यंत्रों का वादन होगा. खास बात ये है कि उत्तराखंड से पौराणिक वाद्य यंत्र हुड़का को भी शामिल किया गया है. जिसकी थाप अयोध्या में सुनाई देगी.

दरअसल, अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि पर प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. प्राण प्रतिष्ठा के दिन सुबह 10 बजे से 'मंगल ध्वनि' का भव्य वादन होगा. जिसमें विभिन्न राज्यों के 50 से ज्यादा मनोरम वाद्य यंत्रों के ताल सुनाई देंगे. इन वाद्य यंत्रों में उत्तराखंड का हुड़का भी शामिल है. जो मंगल ध्वनी में चार चांद लगाएगी. करीब 2 घंटे तक मंदिर परिसर में इन वाद्य यंत्रों की थाप गूंजेगी. अयोध्या के यतीन्द्र मिश्र इस भव्य मंगल वादन के परिकल्पनाकार और संयोजक हैं, जिसमें केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी दिल्ली ने सहयोग किया है. इसकी जानकारी श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने एक्स पर दी है.

ये भी पढ़ेंः विलुप्त के कगार पर उत्तराखंड का वाद्य यंत्र 'हुड़का', लोक कला को ऐसे बचा रहा एक छात्र

क्या होता है हुड़का? हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के लोक कला निष्पादन केंद्र के सीनियर अध्यापक डॉक्टर संजय पांडेय बताते हैं कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति में हुड़के का बड़ा महत्व है. हुड़का मूल रूप से कुमाऊं में बजाया जाने वाला वाद्य यंत्र है. जिसे कुमाऊंनी जागरों में बजाया जाता है, लेकिन अब ये वाद्य यंत्री गढ़वाल में भी सुनाई देता है. अब यहां के गीत संगीत में भी इसका उपयोग किया जाता है.

डॉक्टर पांडेय बताते हैं कि हुड़के को कुमाऊंनी जागर से लेकर न्यौली और छपौली में बजाया जाता था. इसके अलावा धान की रोपाई के दौरान हुड़किया बौल की परंपरा है. इस दौरान हुड़के की थाप पर पारंपरिक गीत गाए जाते हैं और धान की रोपाई की जाती है. हुड़का ढोल दमाऊं के साथ एकल में भी बजाया जाता है. इसके सुर से संगीत को चार चांद लगते हैं. वहीं, हुड़के को भी भगवान शिव को वाद्य यंत्र माना जाता है. जो उत्तराखंड लोक संगीत और संस्कृति का अहम हिस्सा हैं.

वाद्य यंत्र हुड़का

पारंपरिक हुड़का वादकों में द्वाराहाट के भुवन चंद लहरी और लोक गायक नरेंद्र नाथ रावल शामिल हैं. इसके अलावा कई लोग ऐसे हैं, जो इस विधा को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि यह मूलत: लकड़ी का बना होता है, जिसे नाई कहा जाता है. जो भीतर से खोखला होता है. जिसमें बकरी की खाल को डमरू पर डोरी से कसा जाता है. इसके बीच में एक पट्टा बांधा जाता है. जिसे गर्दन पर डालकर खिंचाव के हिसाब से व्यवस्थित किया जाता है. खिंचाव पर साउंड के स्तर को तय किया जाता है. उन्होंने बताया कि आज हुड़का भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है. आज बड़े-बड़े सगीतकार भी हुड़के का उपयोग संगीत रचना में करते हैं.
ये भी पढ़ेंःसदियों पुरानी परंपरा 'हुड़किया बौल' को आज भी संजोए हुए हैं ये ग्रामवासी

ABOUT THE AUTHOR

...view details