सीतापुर :'हम जिंदा बैठे हैं लेकिन हमारे अपने हमें अकेला छोड़ गए. मां पूर्णागिरी से सभी मुराद मांगने जा रहे थे. नहीं पता था मौत हमारे अपनों को हमसे दूर कर देगी. गांव की जिन गलियों से तमाम अरमान लिए वे दर्शन को निकले थे, उन्हीं रास्तों से अब उनकी शव यात्राएं निकल रहीं हैं. गांव की जिस जगह पर लोग अपना दुख-दर्द बांटते थे, उसी जगह पर अब उनकी चिताएं सज रहीं हैं. गांव के जिन लोगों ने उन पर फूल बरसा कर उन्हें हंसते-मुस्कुराते विदा किया था, वही अब उनकी अर्थियां सजा रहे हैं'.
ये अलफाज रोते-बिलखते उन परिवार के के हैं जिन्होंने हादसे में अपनों को खो दिया. जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी की दूरी पर सिधौली इलाका पड़ता है. यहां गांव जटहा पड़ता है. यहां के कई लोग शनिवार की रात प्राइवेट बस से मां पूर्णागिरि के दर्शन के लिए जा रहे थे. इस दौरान शाहजहांपुर के खुटार इलाके में गिट्ची से भरा एक ट्रक बस पर पलट गया. हादसे में 12 लोगों की मौत हो गई. जबकि 9 लोग घायल हो गए. करने वाले में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. इनमें से मीना (30) पत्नी रामदास, सुधांशु (6) पुत्र रामदास, रामगोपाल (48), उसकी पुत्री रोहिणी (20), शिव शंकर (48) पुत्र सतनू, छोटकी (45), अजीत (12) और प्रमोद (38) और सोनवती (45) पत्नी केदारी जटहा के रहने वाले थे. बाकी के 3 दूसरे गांव के थे.
रविवार को इनके शव गांव पहुंचे तो हर कोई रो पड़ा. गांव के लोग उस मनहूस घड़ी को कोसने लगे जब वे यात्रा पर निकले थे. कोई बुजुर्ग अपना सिर पीट रहा था तो कोई रो-रोकर अचेत हो जा रहा था. हमेशा शांत रहने वाली गांव की गलियों में उस वक्त और भी चीख-पुकार मच गई, जब जब एक साथ सभी शव पहुंचे. इनमें से कोई अपना पोता तलाश रहा था तो कोई अपना सुहाग. लोग लाख सांत्वना दे रहे थे लेकिन अपनों को खो चुकी आंखों में आंसुओं का सैलाब था. दर्द और गम का ये मंजर देखकर दिलासा देने वालों का भी सब्र जवाब दे गया. वह भी फकक-फकक कर रो पड़े.
जटहा के रामदास अपनी मां जगरानी से यह कहकर दर्शन के लिए निकला था कि मां पूर्णागिरी से उसकी लंबी उम्र की कामना करेंगे, लेकिन क्या पता था कि वह अपनी जिंदगी ही खोने जा रहा है. रोती बिलखती जगरानी बार-बार यही कह रहीं हैं कि रामदास घायल है. मासूम इकलौते पौत्र सुधांशु व उसकी मां मीना हमें तड़पता हुआ छोड़ गईं. पौत्री एकता रिश्तेदारी में गई थी, अन्यथा वह भी अपनी मां व पिता के साथ जरूर जाती, भगवान ने उसे बचा लिया. हादसे के शिकार अन्य परिवारों का रुदन देखकर गांव में जुटे सैकड़ों लोगों को दिल रोने को मजबूर हो गया.
सभी की अर्थियां एक साथ उठी. गांव के बाहर एक साथ 7 चिताएं तैयार की गईं जबकि रामदास के पुत्र सुधांशु को दफनाया गया. रामगोपाल व उसकी पुत्री रोहिणी के शव एक ही चिता पर जलाए गए. इसी तरह गुरेनी गांव में भी 3 चिताएं सजीं. हादसे के बाद दोनों गांवों के अधिकतर घरों में चूल्हे नहीं जलाए गए. कुछ लोगों ने अपने घरों पर खाना बनवाकर पीड़ित परिजनों के यहां भिजवाया. जिलाधिकारी के निर्देश पर तहसील प्रशासन ने पूड़ी व सब्जी के पैकेट गांव में वितरित कराने के लिए भेजा, लेकिन ग्रामीणों ने इसे लेने से मना कर दिया.