धमतरी: भारत विविधताओं का देश है.यहां पर्व त्यौहार पर कई रंग देखने को मिलते हैं. छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है जहां पर्व और त्यौहार का खुमार सभी प्रदेशवासियों पर हमेशा छाया रहता है. प्रदेश के धमतरी जिले में कई ऐसे कलाकार हैं जो मूल संस्कृति और परंपरा को जीवित रखने के लिए अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं. यहां एक ऐसी युवाओं की टीम है जो छत्तीसगढ़ में मनाए जाने वाले हर तीज त्योहार पर अपनी कला का प्रदर्शन करते नजर आते हैं. ये पुरुष महिलाओं की तरह सज धज कर छत्तीसगढ़ की पारंपरिक वेश भूषा में अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं. इन्हें जो भी दान दक्षिणा मिलती उसे आपस में बांट लेते हैं.
युवाओं ने नृत्यकला में महिलाओं को छोड़ा पीछे: धमतरी के आठ युवाओं की ये टोली नृत्यकला में महिलाओं को भी मात दे देते हैं. सुआ डांस हो या कोई और नृत्य ये ऐसे डांस करते हैं कि लोगों का दिल जीत लेते हैं. हर कोई इनकी नृत्यकला की प्रतिभा को देख दंग होने पर मजबूर हो जाते हैं. ये सभी युवा अपनी नृत्य कला से छत्तीसगढ़ की परंपरा को जीवित रखने का काम कर रहे हैं. इनके नृत्य कौशल ने इन्हें खास पहचान दी है.
महिलाओं के गेटअप में युवकों का डांस (ETV BHARAT)
बचपन से ही मंचीय और नाट्य प्रस्तुति का शौकीन रहा हूं. हमारे टीम में धमतरी और आसपास के गांव के 8 युवा जुड़े हुए हैं. मेला मड़ई, तीज त्योहार और हास्य प्रोग्राम में हम अपनी कला का प्रदर्शन करते है. अभी दीपावली का पर्व है इसलिए सुआ नृत्य करके एक तरीके से कला और संस्कृति का प्रदर्शन कर रहे है: भीमराज साहू, लोक कलाकार
क्या है सुआ नृत्य ?: छत्तीसगढ़ की परंपरा में सुआ नृत्य का विशेष महत्व है. सुआ का मतलब तोता है. इस नृत्य को लेकर अलग-अलग मान्यताएं भी हैं. इस नृत्य में महिलाओं और युवतियों की टोली एक बांस के बने टोकरी में धान रख कर उसमें मिट्टी का बना तोता रखती हैं. इस बांस की टोकरी को लेकर युवतियां और महिलाओं की टोलियां घूम-घूम कर सुआ नृत्य करती हैं. नृत्य के साथ साथ महिलाएं गाना भी गाती हैं और ताली बजाती हैं.
क्या है सुआ नृत्य की मान्यताएं?:मान्यताओं के अनुसार सुआ गीत नृत्य करने महिलाएं जब गांव में किसानों के घर-घर जाती थीं. तब उन्हें उस नृत्य के उपहार स्वरूप पैसे या अनाज दिया जाता है. इसका उपयोग गौरा-गौरी के विवाह उत्सव में करती हैं. इस नृत्य की दूसरी मान्यता यह है कि सुआ नृत्य की शुरुआत दीपावली के दिन से की जाती है. जिसका मतलब होता है कि धान की फसल कट गई है.अब खुशियों के दिन आ गए हैं.