उदयपुर: मेवाड़ पूर्व राजपरिवार के बीच चल रहा विवाद अब सड़कों पर आ गया है. पूर्व सांसद और मेवाड़ के पूर्व राज परिवार के सदस्य महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ का चित्तौड़गढ़ के किले में राजतिलक किया गया, लेकिन राजतिलक के बाद वे परम्परानुसार उदयपुर किले में एतिहासिक धूणी के दर्शन नहीं कर पाए. विश्वराज सिंह मेवाड़ के चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ ने सिटी पैलेस के दरवाजे बंद कर दिए. विवाद इतना बढ़ा कि वहां पथराव तक हो गया. ऐसे में विश्वराज सिंह को धूणी के दर्शन किए बिना ही लौटना पड़ा. अब इस इलाके को फिलहाल जिला प्रशासन ने अपने कब्जे में ले लिया है.
मेवाड़ जन संस्थान के संयोजक प्रताप सिंह झाला 'तलावदा' ने बताया कि चित्तौड़गढ़ के किले में दो बार जौहर होने के कारण तत्कालीन महाराणा उदय सिंह ने सोचा कि अब यह राजधानी सुरक्षित नहीं है. इस पर उनके मन में विचार आया कि उनको मेवाड़ की नई राजधानी बनानी होगी, जो पर्वतों से घिरी हुई हो. ऐसे में वह सुरक्षित स्थान का चयन करने के लिए लंबे समय से पहाड़ों में घूम रहे थे. इसी दौरान वर्तमान में जहां सिटी पैलेस हैं, वहां की पहाड़ियों उन्हें सही लगी. इस बीच उन्हें एक खरगोश पहाड़ियों पर चढ़ते हुए दिखाई दिया. उदय सिंह जब खरगोश का पीछा करते हुए पहाड़ी के ऊपर पहुंचे, वहां एक साधु तपस्या करते हुए नजर आए. उदय सिंह साधु के पास पहुंचे, तो साधु ने उदय सिंह से पूछा कि आप किस वजह से यहां आए हैं. उदय सिंह ने बताया कि वे नई राजधानी के लिए जगह तलाशने आए हैं.
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मेवाड़ जन संस्थान के संयोजक झाला ने बताया कि वह साधु प्रयाग गिरि महाराज थे. उन्होंने उदय सिंह को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए आशीर्वाद दिया और बोले कि इस धूणी को बीच में लेकर राजमहलों का निर्माण शुरू करो. यहां से तुम्हारी सत्ता कायम रहेगी. इसके बाद महाराणा उदय सिंह ने 1553 ईस्वी में 15 अप्रैल अक्षय तृतीया के दिन इन राजमहलों की नींव रखी, जो आज सिटी पैलेस के नाम से जाना जाता है. सिटी पैलेस के बीच में आज भी वह धूणी कायम है.