रांची: डीलिस्टिंग बिल लाने की मांग तेज हो गई है. शुक्रवार 09 फरवरी को डीलिस्टिंग के समर्थन में बड़ी संख्या में आदिवासी समाज से जुड़े लोग राजभवन पहुंचे. राजभवन के समक्ष जनजाति सुरक्षा मंच के बैनर तले आंदोलन कर रहे लोगों ने इस दौरान सरना धर्मकोड की तरह चंपाई सोरेन सरकार से डीलिस्टिंग बिल को विधानसभा से पारित कर केंद्र सरकार को भेजने की मांग की. इस दौरान लोगों ने जनजाति समाज से धर्मांतरित लोगों को जनजाति की सूची से हटाने यानी डीलिस्टिंग करने की मांग सरकार से की.
डीलिस्टिंग का विरोध करने वाले नहीं चाहते हैं आदिवासियों का हितः आंदोलन कर रहे जनजाति सुरक्षा मंच के मेघा उरांव ने कहा कि यह मांग काफी पुरानी है. दिवंगत कार्तिक उरांव ने इस संबंध में 1970 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 348 सदस्यों का हस्ताक्षरयुक्त एक आवेदन दिया था, जिसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. वहीं सनी उरांव ने कहा कि डीलिस्टिंग की मांग का विरोध करने वाले लोग कभी भी ईसाई मिशनरियों द्वारा किए जा रहे धर्मांतरण और ईसाई मिशनरियों द्वारा आदिवासियों की जमीन पर हो रहे कब्जा पर नहीं बोलते हैं. धर्मांतरित ईसाई और उनके दलाल डीलिस्टिंग के डर से आज एकता की बात कर रहे हैं, जो हास्यापद है. उन्होंने कहा कि डीलिस्टिंग का विरोध करने वाले लोग नहीं चाहते हैं कि आदिवासियों को उनका वाजिब अधिकार मिले.
डीलिस्टिंग के विरोध में रांची में निकाली गई थी महारैलीः डीलिस्टिंग के पक्ष और विरोध में आंदोलन जारी है. इस आंदोलन के जरिए अलग-अलग तर्क दिए जा रहे हैं. बीते 4 फरवरी 2024 को कांग्रेस नेता बंधु तिर्की की अगुवाई में डीलिस्टिंग के विरोध में मोरहाबादी मैदान से महारैली निकाली गई थी. इसके अलावे जनजातीय क्षेत्र में इस मुद्दे पर कई सामाजिक संगठनों की ओर से मार्च निकाले जा रहे हैं. आपको बता दें कि झारखंड में धर्मांतरण एक बड़ा मुद्दा है जो जनजातीय क्षेत्रों में होती रहती है.