लखनऊ: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट यानी ज्यादा से ज्यादा युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण देकर रोजगार के अवसर दिलाने या स्वरोजगार में मदद के लिए उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन द्वारा चलाए जा रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम को ग्रहण लगता दिखाई दे रहा है. एक तो सरकार ने अपने हालिया बजट में इस कार्यक्रम के लिए पहले से कम धनराशि आवंटित की है, वहीं दूसरी ओर प्रशिक्षणदाताओं को नए सत्र में टारगेट न देने की बात भी कही जा रही है.
यही नहीं इसी वित्तीय वर्ष में दस लाख रुपये की एफडी जमाकर न्यू स्टार्टअप पॉलिसी के तहत काम पाने वाले चौर सौ से अधिक प्रशिक्षणदाताओं के सामने अब खुद बेरोजगारी का संकट खड़ा होने वाला है. इनमें तमाम लोग ऐसे हैं, जिन्होंने बैंकों से कर्ज लेकर दस लाख की एफडी मिशन में जमा की थी.
प्रशिक्षणदाताओं को टारगेट फरवरी 2022 में ही दे दिया गया था आगामी वित्तीय वर्ष में प्रशिक्षण सहयोगियों को टारगेट मिलने की उम्मीद कम: इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि केंद्र और राज्य सरकारों का ड्रीम प्रोजेक्ट होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में कौशल विकास मिशन का प्रशिक्षण कार्यक्रम सुस्त पड़ता दिखाई दे रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने अधिकांश भाषणों में युवाओं में कौशल विकास के माध्यम से स्वावलंबी बनाने की बात कहते हैं. बावजूद इसके उत्तर प्रदेश में आगामी वित्तीय वर्ष में प्रशिक्षण सहयोगियों को नया टारगेट दिए जाने की संभावनाएं बहुत कम हैं. कुछ प्रशिक्षणदाताओं ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वर्तमान वित्तीय वर्ष 23-24 के लिए प्रशिक्षणदाताओं को टारगेट फरवरी 2022 में ही दे दिया गया था.
इससे प्रशिक्षणदाताओं को तैयारी के लिए पर्याप्त समय भी मिल गया था और जिन लोगों ने किराए आदि प्रशिक्षण केंद्र बनाएं हैं, उन्हें भी पर्याप्त समय मिल गया था. वह बताते हैं कि इस बार अभी तक किसी भी प्रशिक्षणदाता को टारगेट नहीं दिया गया है. कुछ दिन बाद लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने वाली है, जिसके बाद दो-ढाई माह चुनाव में निकल जाएंगे. मतलब जून तक वैसे भी टारगेट नहीं मिलने वाला.
ऐसे में तमाम प्रशिक्षणदाता या तो खाली सेंटर्स का किराया भरें या फिर अपनी जेब से इस प्रत्याशा में किराया देते रहें कि उन्हें भविष्य में काम मिलेगा. कुछ प्रशिक्षणदाताओं ने बताया कि प्रमुख सचिव कौशल विकास एम देवराज को मिशन के प्रशिक्षण कार्यक्रमों के विषय में बहुत ही सकारात्मक जानकारियां दी गई हैं, जिसके कारण वह उप्र कौशल विकास मिशन के तहत नया टारगेट देना नहीं चाहते. यदि यह बात सही है, तो ऐसे तमाम फ्लैक्सी ट्रेनिंग पार्ट्नर्स का करोड़ों का निवेश भी बर्बाद हो जाएगा और उन्हें केंद्र बंद करने होंगे.
कौशल विकास के माध्यम से स्वावलंबी बनाने पर सीएम योगी दे रहे जोर स्टार्टअप योजना में सूचीबद्ध प्रशिक्षणदाताओं के साथ कदम-कदम पर हुआ धोखा: कौशल विकास मिशन ने शार्ट टाइम ट्रेनिंग (एसटीटी) के तहत स्टार्टअप योजना के तहत 435 लोगों का चयन किया गया था. रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) के अनुसार तमाम मानकों को पूरा करने वाले स्टार्टअप ट्रेनिंग पार्टनर्स को दस लाख रुपये का डिमांड ड्राफ्ट मिशन के नाम जमा करना था. इसके बाद चयनित ट्रेनिंग पार्टनर को ढाई सौ युवाओं को शिक्षित करने की जिम्मेदारी दी जानी थी. इसके आए कुल आवेदनों में 435 लोगों का चयन किया गया था. प्रथम चरण में 169 चयनित लोगों दूसरे में 266 लोगों की सूची जारी की गई. इसके बाद पहले सूची में सौ प्रशिक्षण सहयोगियों को 250 का टारगेट दिया गया.
विगत 23 नवंबर को दूसरी सूची में 179 लोगों को 250 की जगह 108 का टारगेट दिया गया. साथ में यह शर्त भी लगा दी गई कि कोई भी प्रशिक्षणदाता 600 घंटे से अधिक अवधि वाला कोर्स संचालित नहीं कर सकता. जैसे-तैसे लोगों ने प्रशिक्षण आरंभ किए, लेकिन अब कुछ माह बाद ही यह खबरें उन्हें डरा रही हैं कि आगामी वित्तीय वर्ष में उन्हें टारगेट नहीं दिया जाएगा. एक स्टार्टअप प्रशिक्षणदाता ने बताया कि उसने अपनी प्रापर्टी बंधक रखकर दस लाख रुपये बैंक लोन लिया था. अब यदि नया काम नहीं मिला तो वह बर्बादी के मुहाने पर पहुंच जाएगा. ऐसे ही सभी प्रशिक्षणदाताओं की कोई न कोई कहानी है.
मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी बात रखेंगे प्रशिक्षणदाता: विभागीय सूत्र बताते हैं कि आगामी वित्तीय वर्ष के लिए मिशन का बजट 50 करोड़ रुपये पहले ही कम किया जा चुका है. स्वाभाविक है कि इससे यदि टारगेट दिए भी जाते तो पहले की अपेक्षा कम ही होते. अब चूंकि प्रमुख सचिव एम. देवराज इसके लिए इच्छुक ही नहीं हैं, ऐसे में मिशन का कार्यक्रम चल पाना कठिन है. यही कारण है कि कुछ फ्लेक्स पार्टनर्स ने मुख्यमंत्री से मिलने के लिए समय मांगा है, ताकि उनसे मिलकर वस्तुस्थिति से अवगत कराया जा सके. कुछ स्टार्टअप ट्रेनिंग पार्टनर भी प्रमुख सचिव एम देवराज से मिलकर अपनी पीड़ा उनके सामने रखने का मन बना रहे हैं. जो भी हो इन हालात में यह कहना कठिन है कि आगामी वित्तीय वर्ष में कौशल विकास मिशन का प्रशिक्षण कार्यक्रम चलेगा अथवा नहीं.
प्रमुख सचिव से पूछे इन सवालों का नहीं मिला कोई जवाब:उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन के प्रमुख सचिव एम देवराज से ईटीवी संवाददाता ने इस खबर के संबंध में मिलने का समय मांगा, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. इसके बाद उनसे वाट्सएप पर इन सवालों पर उनका पक्ष मांगा गया, लेकिन उन्होंने मैसेज तो देखा पर उसका भी जवाब नहीं दिया. संवाददाता ने उनसे पूछा था कि 'मुझे कई प्रशिक्षणदाताओं और मिशन के सूत्रों से पता चला है कि आगामी वित्तीय वर्ष में निजी प्रशिक्षणदाताओं को टारगेट नहीं दिए जाएगा? क्या यह सही है? क्या स्टार्टअप योजना के तहत दस लाख रुपये की एफडी देकर काम पाने वाले प्रशिक्षणदाताओं को भी काम नहीं दिया जाएगा?
स्टार्टअप योजना के तहत प्रशिक्षण दे रही तमाम कंपनियों को पहले ही अनुबंध का आधा टारगेट दिया गया था. अब उनका क्या होगा? तमाम प्रशिक्षणदाताओं ने प्रदेश के तमाम जिलों में जो निवेश किया है, उसका क्या होगा? मिशन आगे किस तरह काम करेगा? उपरोक्त सवालों के संबंध में मिशन निदेशक रमेश रंजन से भी मिलने का प्रयास किया गया, किंतु किसी मीटिंग में होने के कारण उनसे बातचीत नहीं हो पाई.
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