कानपुर : छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय परिसर में स्थित रानीलक्ष्मी बाई की प्रतिमा के पास परिजात का एक पौधा रोपा गया है. अब पौधा धीरे-धीरे बढ़ने भी लगा है. विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से इसकी खास देखभाल की जा रही है. सरकार की ओर से इस गुणकारी वृक्ष को हेरिटेज वृक्ष का दर्जा भी दिया गया है. इस वृक्ष का दर्शन करना काफी शुभ माना जाता है. यह कई औषधि गुणों से भी भरपूर है. दावा है कि विवि परिसर में लगाया गया यह परिजात शहर का पहला परिजात है.आइए जानते हैं इस पौधे की खासियत...
दूर-दूर तक फैलती है फूल की सुगंध : ईटीवी भारत से खास बातचीत में कानपुर विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. सुधीर अवस्थी ने बताया कि परिजात पूरी दुनिया में अपनी तरह का एकमात्र दुर्लभ वृक्ष है. हिंदू धर्म में इसे काफी शुभ और पवित्र माना जाता है. यह शंक्वाकार आकार होता है. इसमें हर साल जून और जुलाई के महीने में सफेद रंग के फूल आते हैं. ये सूखने पर सुनहले हो जाते हैं. बाकी समय में यह बिना पत्तों के रहता है. इसमें लगे फूल रात में खिलते हैं लेकिन सुबह होने पर मुरझा जाते हैं. फूलों की सुगंध दूर-दूर तक फैलती है. वृक्ष की शाखाएं सूखती नहीं है बल्कि शाखाएं पुरानी होने के बाद सिकुड़ते हुए मुख्य तने में ही गायब हो जाती हैं. जिस मिट्टी में दीमक ज्यादा होते हैं वहां पर यह पौधा विकसित नहीं हो पाता है, इसलिए जहां पर भी इसके पौधे को रोपा जाता है वहां पर इसकी काफी देखभाल करनी पड़ती है.
रायबरेली, बाराबंकी और उन्नाव में भी हैं परिजात के वृक्ष : प्रति कुलपति ने बताया कि, अब जो दौर है वह जेनेटिक इंजीनियरिंग और लाइफ साइंसेज का है. ऐसे में विचार आया कि क्यों न इसके जर्म प्लाज्म को प्रिजर्व करके रखा जाए. कभी भी इसके प्रोपेगेट (प्रचार) करने की आवश्यकता महसूस हो तो हम इसके जर्मप्लाज्म की सहायता से इसे प्रोपोगेट कर सके. परिजात के वृक्ष काफी कम हैं. यह वृक्ष हर तरह की मिट्टी में पनप नहीं सकता है. विवि पौधे की पूरी तरह से देखभाल कर रहा है. पौधे को रायबरेली से मंगाया गया है. 28 सितंबर को इसे राज्यपाल ने रोपा था.
हॉर्टिकल्चर विभाग इस पौधे को बड़ा वृक्ष बनाने की हर संभव प्रयास कर रहा है. अभी तक यह वृक्ष रायबरेली, बाराबंकी, लखनऊ, अयोध्या और उन्नाव में कुछ स्थानों पर हैं. कानपुर में यह पहला वृक्ष छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय परिसर में रोपा गया है. परिजात बॉटनिकल नेम Nyctanthes arbor-tristis (निक्टेंथस आर्बर-ट्रिस्टिस) है.
अब पढ़िए परिजात से जुड़ी पौराणिक कहानी : पौराणिक कथा के अनुसार, देवासुर संग्राम के समय समुद्र मंथन से पारिजात वृक्ष निकला था. इसे देवताओं के राजा भगवान इंद्र अपने साथ स्वर्ग ले गए थे. इसके बाद द्वापर युग में भगवान कृष्ण के आदेश के बाद कुंती पुत्र अर्जुन इसे पृथ्वी पर लाए थे. महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान माता कुंती को भगवान शिव ने स्वर्ग के समान दिखने वाले पुष्प को अर्पित करने को कहा था. कुंती ने पुष्प को भगवान शिव को अर्पित किया था. उन्होंने खुश होकर महाभारत युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद दिया था. तब से इस वृक्ष में सिर्फ एक महीने ही पुष्प आते हैं. कहा जाता है कि सावन महीने में इस वृक्ष पर पुष्प आने की संभावना सबसे ज्यादा होती है. इस वृक्ष की उम्र हजारों साल बताई जाती है.
इस वृक्ष के हैं कई फायदे, औषधि के रूप में भी कर सकते हैं इस्तेमाल : पारिजात वृक्ष औषधि गुणों से भी भरपूर है. इसकी 3 से 5 पत्ती को धोकर पानी में उबालकर खाने से दैनिक पोषण की जरूरत पूरी हो जाती है. इसकी पत्तियां एंटीऑक्सीडेंट होती है. कब्ज और एसिडिटी में सबसे कारगर साबित होती है. इतना ही नहीं इसकी पत्तियों में दवा और मलेरिया को भी समाप्त करने की शक्ति होती है. वृक्ष के बीजों से निकलने वाले तेल हृदय रोगियों के लिए काफी ज्यादा लाभकारी होता है. इसके तेल में एचडीएल यानी हाईडिसेंट्री कोलेस्ट्रॉल होता है. इसके साथ ही त्वचा रोगियों के लिए भी पारिजात की पत्तियां काफी ज्यादा उपयोगी मानी गईं हैं.
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