सागर।बुंदेलखंड में अगर मानव विकास का अध्ययन करना है, तो सागर जिले में स्थित आबचंद की गुफाएं मानव विकास के 10 हजार साल की कहानी कहते हैं. आबचंद की गुफाओं में उच्च पुरापाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक के मानव विकास के शैलचित्र पाए जाते हैं. जानकार कहते हैं कि अगर आदिमानव के विकास का अध्ययन करना है, तो बुंदेलखंड में आबचंद की गुफाएं एक तरह से आदिमानव की कर्म स्थली है, क्योंकि यहां पर रहते हुए आदिमानव ने अपने सृजनात्मक गुणों का परिचय दिया, जो मानव की क्रमिक विकास की कहानी कहता है.
आबचंल की गुफाओं और कंदराओं में शिकार, आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, पशुपालन और युद्ध के साथ कई तरह के शैलचित्र देखने मिल जाएंगे. खास बात ये है कि इस इलाके में मानव द्वारा पत्थरों से तैयार करे कई उपकरण जगह-जगह बिखरे पड़े हैं. जिसे मानव ने कहीं और से लाकर उपकरण तैयार किए थे, लेकिन जानकारी के अभाव में लोग इसका महत्व नहीं समझ पा रहे हैं.
आदिमानव की कर्म स्थली आबचंद की गुफाएं
सागर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के डॉ मशकूर अहमद कादरी बताते हैं कि आबचंद की गुफाएं आदिमानव के आवास का पुराना केंद्र या ऐसा कहना चाहिए कि उसकी कर्म स्थली है. कर्मस्थली इसलिए क्योंकि वहां रहते हुए आदिमानव ने सृजनात्मक गुणों का परिचय दिया. वहां की गुफाओं और कंदराओं में रहते हुए मानव ने अपनी सृजनशीलता के गुणों का परिचय शैलचित्र बनाकर दिया. उस समय कोई भाषा या संप्रेषण का माध्यम नहीं था. इसलिए मानव अपनी बात को समझाने के लिए शैलचित्र बनाते थे. जिससे आने वाली पीढ़ी उस चीज को समझ सके. जैसे वहां पर शिकार के दृश्य हैं. इन शैलचित्रों के माध्यम से बताया गया कि शिकार कैसे किया जाता है. ये एक तरीके से आगे की पीढ़ी को पढ़ाने का तरीका है.
सबसे पुराने शैलचित्र प्रागैतिहासिक काल के
डॉ मशकूर अहमद कादरी बताते है कि आबचंद की गुफाओं में अलग-अलग कालों के शैलचित्र देखने मिल जाएंगे. सबसे प्राचीन शैलचित्र लगभग उच्च पुरापाषाण काल के अंतिम काल से प्रारंभ होते हैं, जिनकी आयु लगभग 8 से 9 हजार साल है. उसके बाद मध्य पाषाण युग 8 से 5 हजार साल का है. हम देखते हैं कि मध्य पाषाण काल से पूरा आबचंद भरा हुआ है. ईसा के 5 हजार साल पहले आबचंद प्रागैतिहासिक मानव का निवास क्षेत्र था. अकेला आबचंद ही नहीं, सागर के आसपास ऐसे कई स्थान हैं. जहां ये गतिविधियां देखने मिलती हैं.