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उदयपुर में 'गधे की बारात' देख लोटपोट हुए दर्शक, नोकझोंक ने मोहा मन - GADHE KI BARAAT

उदयपुर में मासिक नाट्य संध्या 'रंगशाला' में हुआ हास्य व्यंग्य नाटक 'गधे की बारात' का मंचन, कहानी में किरदारों ने डाली जान.

GADHE KI BARAAT
उदयपुर में 'गधे की बारात' (ETV BHARAT Udaipur)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jan 6, 2025, 3:33 PM IST

उदयपुर :पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र उदयपुर द्वारा आयोजित मासिक नाट्य संध्या 'रंगशाला' में हास्य व्यंग्य नाटक 'गधे की बारात' का मंचन किया गया. इस नाटक के माध्यम से अमीरी-गरीबी के अंतर को दर्शाया गया. साथ ही कलाकारों की बेहतरीन प्रस्तुति ने दर्शकों का मन मोह लिया. पश्चिम क्षेत्र सास्कृतिक केंद्र उदयपुर के निदेशक फुरकान खान ने बताया कि प्रति माह आयोजित होने वाली मासिक नाट्य संध्या रंगशाला में रविवार को शिल्पग्राम उदयपुर स्थित दर्पण सभागार में 'गधे की बारात' नाटक का मंचन किया गया.

यह नाटक सप्तक कल्चरल सोसायटी रोहतक द्वारा प्रस्तुत किया गया, जिसका 345वां मंचन शिल्पग्राम में हुआ. इससे पूर्व इसका लाहौर (पाकिस्तान), लबासना मसूरी, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली में मंचन किया जा चुका है. इस हास्य व्यंग्य नाटक के जरिए दर्शाया गया कि गरीबों की बस्ती से, जो भी राजमहल की चौखट तक पहुंचता है, वो फिर कभी नहीं लौटता. वहां पहुंचकर वो अपने सगे गरीब भाइयों को भूल जाता है. इस नाटक के नाटककार हरिभाई वडगांवकर और निर्देशक विश्वदीपक त्रिखा थे.

हास्य व्यंग्य नाटक 'गधे की बारात' का मंचन (ETV BHARAT Udaipur)

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वहीं, कला प्रेमियों ने इस नाटक और उसके पात्रों के अभिनय को जमकर सराहा. अंत में सभी कलाकारों का सम्मान किया गया. इस कार्यक्रम का संचालन केंद्र के सहायक निदेशक (वित्तीय व लेखा) दुर्गेश चांदवानी ने किया. इस नाटक में कल्लू का किरदार अविनाश, गंगी-पारूल, राजा व बाबा-सुरेंद्र, दीवानजी-तरूण पुष्प त्रिखा, इंद्र-शक्ति स्वरूप त्रिखा, चित्रसेन-अमित शर्मा, द्वारपाल-अनिल, राजकुमारी-खुशी, बुआ-प्रेरणा, बाराती-नलीनाक्षि, छोटी बाई, वंशिखा ने निभाया. वहीं, हारमोनियम पर विकास रोहिला, नगाड़े पर सुभाष नगाड़ा रहे.

नाटक के किरदारों ने मोहा दर्शकों का मन (ETV BHARAT Udaipur)

नाटक की कहानी :कहानी की शुरुआत कुम्हार कल्लू और उसकी पत्नी गंगी की नोकझोंक से होती है. कल्लू की पत्नी अपने पति से गधे हांक कर लाने के लिए जिद करती है. अपनी पत्नी की बात मानकर कल्लू गधे चराने निकल पड़ता है, जहां उसकी मुलाकात देवों के गुरु बृहस्पति से होती है. कल्लू गुरु बृहस्पति से जिद कर इंद्र के दरबार में पहुंच जाता है. वहां पहुंचकर कल्लू देखता है कि राजा इंद्र के दरबार में एक गंधर्व चित्रसेन अप्सरा रंभा का हास-परिहास में हाथ पकड़ लेते हैं. इस कारण राजा इंद्र उसे पृथ्वी लोक में गधा बनकर घूमने का श्राप दे देते हैं.

शिल्पग्राम उदयपुर में हुआ 'गधे की बारात' नाटक का 345वां मंचन (ETV BHARAT Udaipur)

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चित्रसेन के माफी मांगने के बाद इंद्र उसे वरदान देते हैं कि जब उसका विवाह अंधेर नगरी के राजा चौपट सिंह की बेटी के साथ होगा, तो वो श्राप मुक्त हो जाएगा. चित्रसेन गधा बनकर पृथ्वी लोक में आ जाते हैं और कल्लू के अन्य गधों के साथ रहने लगते हैं. एक दिन अंधेर नगरी का राजा अपने नगर में मुनादी करवाता है कि जो कोई भी महल से लेकर गरीबों की बस्ती तक एक रात में पुल तैयार कर देगा, उसका विवाह राजकन्या चांदनी से किया जाएगा. अंत में कल्लू चतुराई से उसकी बेटी का विवाह चित्रसेन गधे से करा देता है.

राजकन्या जैसे ही गधे को वरमाला डालती है, गधा श्राप मुक्त होकर गंधर्व बन जाता है और कल्लू कुम्हार और गंगी को पहचानने तक से इनकार कर देता है. राजा एक गंधर्व को अपना दामाद बनते देखकर खुश हो जाते हैं और कल्लू और उसकी पत्नी को धक्के मारकर बाहर निकलवा देते हैं.

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