रांची: लंबा राजनीतिक अनुभव और सत्ता के करीब हमेशा रहने वाले मुख्यमंत्री चंपई सोरेन लगातार पूर्ववर्ती हेमंत सरकार की सराहना करते हुए अपनी सरकार को हेमंत पार्ट-2 बता रहे हैं. हेमंत पार्ट-2 बताने के पीछे मुख्यमंत्री की मंशा साफ है. एक तरफ पूर्ववर्ती सरकार में लाई गई योजना को गति देकर जनता के बीच इसे पहुंचाना और दूसरी तरफ सत्ता में शामिल दलों के बीच समन्वय बनाकर शेष बचे समय में शासन प्रशासन चलाना. मगर वर्तमान सरकार के समक्ष कई ऐसी चुनौतियां हैं जिससे मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को जूझना पड़ेगा.
चंपई सोरेन को एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री बताते हुए जाने माने पत्रकार बैजनाथ मिश्रा कहते हैं कि कांटों भरा ताज लेकर चलना मुश्किल भरा काम है. पंचम विधानसभा का कार्यकाल महज 11 महीने शेष हैं. इसमें लोकसभा चुनाव, मानसून और फेस्टिवल की वजह से कामकाज प्रभावित होना स्वभाविक है. ऐसे में इस सरकार के पास समय कहां है. लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद आचार संहिता की वजह से विकास कार्य रुकेंगे, राज्य नीतिगत निर्णय नहीं ले सकेगा फिर मानसून और फेस्टिवल का समय आ जायेगा. इन सबके बाद विधानसभा चुनाव की घोषणा नवंबर में हो जायेगा. ऐसे में सरकार के पास काम करने के लिए अंगुली पर गिनती के करीब ढाई महीने हैं.
चंपाई सरकार की 10 चुनौतियां जो डालेगा परेशानी
- शासन-प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार
- कानून व्यवस्था और नक्सल गतिविधि
- सरकार के सहयोगी दल में समन्वय
- हेमंत सरकार की कई घोषणा जो नहीं उतर पाई जमीन पर
- 1932 आधारित स्थानीय नीति
- सरकारी नियुक्ति प्रक्रिया की लचर स्थिति
- भ्रष्टाचार से जुड़े केन्द्रीय एजेंसी की कार्रवाई
- नगर निकाय चुनाव और ट्रिपल टेस्ट
- आय-व्यय में सामंजस्य स्थापित करना
- नियोजन नीति
चंपाई सरकार पर सबकी नजर
शांत और धैर्यपूर्वक सबकी बातों को सुनकर निर्णय लेने वाले मुख्यमंत्री चंपई सोरेन पर ना केवल जनजाति समाज की नजर है बल्कि झारखंड में रहने वाले सभी लोगों की उम्मीदें टिकी हैं. जनजाति समाज के जगलाल पाहन कहते हैं कि नई सरकार को जनजाति समाज के लोग एक आशा की नजर से देख रहे हैं कि जल, जंगल की समस्या जो लंबे समय से चल रहा है उसका समाधान करने में यह सरकार सफल होगी, मगर वर्तमान जो हालात हैं वैसे में चंपई सोरेन के लिए चुनौती भरा समय जरूर रहेगा.
बहरहाल इन सारी चुनौतियों के बीच मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के सामने फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती मंत्रिमंडल विस्तार और विभागों का बंटवारा है जिसको लेकर लगातार सहयोगी दलों के साथ मंथन की जा रही है.