विनोद भारद्वाज, लेखक और शोधकर्ता (ETV Bharat) शिमला: दुनिया भर को अहिंसा के बल का परिचय करवाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की स्मृतियों के साथ उनकी ही कर्मस्थली शिमला में दशकों तक छल होता रहा. इतिहास में रुचि रखने वाले शोधकर्ता विनोद भारद्वाज ने पूर्व आईएएस अधिकारी और विख्यात लेखक श्रीनिवास जोशी के सहयोग से राष्ट्रपिता की शिमला से जुड़ी यादों के साथ हुए छल को दूर करने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. अब जाकर सिस्टम ने अपनी गलती सुधारी है. ये गलती राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की शिमला यात्राओं के विवरण को लेकर थी. शिमला के रिज मैदान पर राष्ट्रपिता की प्रतिमा के पीछे अस्सी के दशक में उनकी यात्राओं का विवरण संगमरमर पर दर्ज किया गया था. ये विवरण अधूरा था. इसमें बापू की महज आठ यात्राओं का विवरण लिखा गया था, जबकि उन्होंने शिमला की दस यात्राएं की थीं.
शिमला में महात्मा गांधी की प्रतिमा (FILE) महात्मा गांधी के शिमला प्रवास पर शोधपरक पुस्तक के लेखक विनोद भारद्वाज ने इस विवरण को ठीक करवाने के लिए चार साल की लड़ाई लड़ी. अब जाकर सिस्टम ने गलती सुधारी है और सुखद बात ये है कि अब रिज पर उसी स्थान में संगमरमर पर यात्राओं का विस्तार भी दिया गया है. पहले इन यात्राओं का सरसरी तौर पर जिक्र था और संक्षिप्त जानकारी दी दर्ज थी. ये जानकारी भी अधूरी थी.
राष्ट्रपिता की शिमला यात्रा के बारे में जानकारी (FILE) पट्टिका में बापू की शिमला यात्रा के बारे में जानकारी (FILE) विनोद भारद्वाज ने ईटीवी को बताया कि इस बारे में उन्होंने पूर्व आईएएस अधिकारी और इतिहास के गंभीर अध्येता श्रीनिवास जोशी के सहयोग से सिस्टम को जगाया. मुख्य सचिव से भी पत्राचार किया गया. चार साल के संघर्ष के बाद अब बापू की शिमला यात्राओं का विवरण सही से दर्ज हुआ है. उल्लेखनीय है कि विनोद भारद्वाज ने राष्ट्रपिता की शिमला यात्राओं पर किताब भी लिखी है. गहन शोध के बाद आई ये किताब इस समय चर्चित हो रही है. किताब का शीर्षक-गांधी इन शिमला 1921-1946 है. इस किताब में गांधी की शिमला यात्राओं सहित अन्य पहलुओं पर रोचक व तथ्यात्मक शोध पूर्ण जानकारी है. इतिहास के इच्छुक लोगों के लिए ये किताब महत्वपूर्ण है.
राष्ट्रपिता की स्मृति पर उनके दौरे की जानकारी (FILE) वर्ष 1921 में पहली बार शिमला आए थे बापू:ब्रिटिश हुकूमत के समय शिमला समर कैपिटल थी. यहां अंग्रेज शासकों ने वायसराय के लिए आलीशान भवन का निर्माण किया. वर्ष 1884 से 1888 के बीच वायसराय रीगल लॉज बना और वायसराय ने यहां निवास करना शुरू किया. अंग्रेज हुकूमत के साथ वार्ता के लिए बड़े नेता शिमला आते थे. महात्मा गांधी ने 1921 से लेकर 1946 तक शिमला की दस यात्राएं कीं. दिलचस्प बात ये है कि आजादी के बाद महात्मा गांधी एक बार भी शिमला नहीं आए. खैर, महात्मा गांधी की पहली शिमला यात्रा 1921 में हुई थी.
बापू की यात्राएं और उद्देश्य:महात्मा गांधी ने पहली यात्रा 12 मई 1921 को की थी. उनका शिमला प्रवास 17 मई 1921 तक रहा. इस दौरान उनकी वायसराय लार्ड रीडिंग से मुलाकात हुई. बापू ने 14 मई को आर्य समाज शिमला में महिला सम्मेलन को संबोधित किया. फिर 15 मई को ईदगाह मैदान शिमला में जनसभा की. इस दौरान वे उपनगर चक्कर की शांति कुटीर में निवासरत रहे. फिर महात्मा गांधी दस साल बाद मई महीने में ही शिमला आए. तब वे 13 मई से 17 मई तक शिमला में रहे. इस अवधि में वे वायसराय लार्ड विलिंगडन सहित अन्य अफसरों से गांधी इरविन पैक्ट पर पैदा हुए गतिरोध पर चर्चा कर रहे थे. उन्होंने फिर 14 मई को रिज पर जनसभा भी की थी. वे जाखू हिल के फरग्रोव में लाला मोहनलाल के निवास में ठहरे थे.
जुलाई महीने में वर्ष 1931 को बापू ने शिमला की तीसरी यात्रा की. कुल 8 दिन का प्रवास रहा और गांधी इरविन पैक्ट पर नए सिरे से चर्चा हुई. इस बार भी वे फरग्रोव में ठहरे थे. इसी साल अगस्त में चौथी यात्रा की. 25 से 27 अगस्त के बीच शिमला प्रवास के दौरान गांधी इरविन पैक्ट के नए समझौते पर साइन हुए. फिर गांधी 1939 में शिमला आए. ये सितंबर महीने का समय था. दो दिन की यात्रा में वे 4 सितंबर को शिमला आए. तब दूसरे विश्व युद्ध का समय था और वायसराय लिनलिथगो से इस युद्ध में भारत को शामिल करने से जुड़े पहलुओं पर उनकी चर्चा हुई थी.
स्मारक पर लगी पट्टिकाओं में गांधी जी की यात्रा की जानकारी (FILE) इसी कड़ी में 26 व 27 सितंबर को फिर से लॉर्ड लिनलिथगो के साथ दूसरे विश्व युद्ध की स्थितियों पर बातचीत हुई. फिर 29 जून 1940 की यात्रा में महात्मा गांधी ने वायसराय को अवगत करवाया कि युद्ध भारतवासियों पर थोपा गया है. इसी साल 24 जून से 16 जुलाई के बीच गांधी ने शिमला में सबसे लंबा प्रवास किया. कुल 23 दिनों के प्रवास में वेवल प्लान पर चर्चा के अलावा बड़े नेताओं से मुलाकात की. तब मेनरविला में ठहराव के दौरान गांधी की प्रार्थना सभाएं भी होती थीं. गांधी की अंतिम शिमला यात्रा 2 मई से 14 मई 1946 को हुई. कैबिनेट मिशन के दौरान क्रिप्स प्रस्तावना पर चर्चा हुई.
चार साल तक सिस्टम से संघर्ष:विनोद भारद्वाज का कहना है कि शिमला ऐतिहासिक शहर है. अंग्रेज हुकूमत के दौरान पूरी दुनिया की नजरें शिमला पर रहती थीं. ये शहर आजादी की हलचल का गवाह है. साथ ही शिमला राष्ट्रपिता की कर्मस्थली भी रही है. इसी शिमला में बापू के पदचिन्ह खामोशी से अंकित हैं. यदि ऐसे स्थान में राष्ट्रपिता से जुड़ी सही जानकारी ही न हो तो ये राष्ट्र की कृतज्ञा नहीं हो सकती. शोध के दौरान उनके ध्यान में ये तथ्य आया था. फिर उनकी रिटायर्ड आईएएस श्रीनिवास जोशी से लंबी चर्चाएं हुई. नगर निगम आयुक्त, भाषा विभाग और राज्य सरकार के मुख्य सचिव तक बात पहुंचाई गई और विवरण को ठीक करने के लिए कहा गया. इस दौरान गेयटी में बापू पर आधारित उनकी पुस्तक का विमोचन हुआ और तत्कालीन राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर की मौजूदगी में भी ये बात ध्यान में लाई गई कि बापू की शिमला यात्राओं का विवरण गलत है. तत्कालीन मुख्य सचिव रामसुभग सिंह को भी सारे तथ्यों से अवगत करवाया गया. अब जाकर रिज मैदान पर महात्मा गांधी की यात्राओं का विवरण सही किया गया है. विनोद भारद्वाज ने इसके लिए मुख्य सचिव, निगम आयुक्त व भाषा विभाग के निदेशक का आभार जताया है.
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