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"लंबित विभागीय जांच के आधार पर कैसे कर दिया निलंबन" एमपी हाईकोर्ट ने सहकारी बैंक के CEO को दी राहत - MP High Court

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 4, 2024, 4:51 PM IST

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने लंबित विभागीय जांच के आधार पर निलंबन को गलत माना है. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि निलंबन करने के लिए अभियोजन की अनुमति क्यों नहीं ली गई.

MP High Court
लंबित विभागीय जांच के आधार पर कैसे कर दिया निलंबन (ETV BHARAT)

जबलपुर।10 साल से लंबित विभागीय जांच के आधार पर निलंबित किये जाने को हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट जस्टिस विवेक जैन की एकलपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता को इस आधार पर निलंबित करने का निर्णय लिया है कि न्यायालय ने उसके खिलाफ धारा 319 के तहत प्रथम दृष्टिया सामग्री पाई है. निलंबित करने के लिए सेवा नियम के अनुसार अभियोजन की अनुमति नहीं ली गयी है. एकलपीठ ने याचिकाकर्ता को राहत प्रदान करते हुए निलंबन आदेश को निरस्त कर दिया.

याचिकाकर्ता के वकील ने ये तर्क दिए

याचिकाकर्ता पीएस धनवाल की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि वह खरगोन जिले में सीईओ जिला केंद्रीय कोऑपरेटिव बैंक में पद था. प्रभारी प्रबंधक निर्देशक के आदेशानुसार उसे निलंबित कर दिया. याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि साल 2013 में वह रायसेन में पदस्थ था. इस दौरान उसके खिलाफ विभागीय जांच प्रारंभ हुई थी. न्यायालय ने साल 2016 में उसके खिलाफ आरोप तय किये थे. न्यायालय द्वारा आरोप तय किये जाने के आधार पर उसे निलंबित कर दिया गया.

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10 साल से विभागीय जांच का सामना कर रहा फरियादी

याचिकाकर्ता वर्ष 2014 से यानी पिछले 10 वर्षों से इसी मामले में विभागीय जांच का सामना कर रहा है. जांच के लंबित रहने के 10 वर्षों के बाद अचानक याचिकाकर्ता का निलंबन पूरी तरह से अतार्किक लगता है. न्यायालय ने ने अपने आदेश में याचिकाकर्ता को निलंबित करने के लिए अभियोजन की अनुमति नहीं ली. एकलपीठ ने न्यायालय के आदेश के साथ निलंबन आदेश को निरस्त कर दिया.

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