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मेरा सूरज तो बहुत तेज था.. सरकार की लापरवाही ने ले ली उसकी जान - Excise constable recruitment

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 3, 2024, 10:27 PM IST

Death of Suraj of Giridih. उत्पाद सिपाही की बहाली के दरमियान एक दर्जन से अधिक अभ्यर्थियों की जान चली गई है. जिनकी जान गई है उनमें से ज्यादातर का परिवार गरीब है. गिरिडीह के सूरज की भी जान हजारीबाग में चली गई. यह घटना काफी दुखद है और परिवार वालों का अभी भी रो-रोकर बुरा हाल बना हुआ है. घर के सदस्य एक ही बात कहते हैं कि सरकार की लापरवाही ने सूरज को मार डाला.

Death of Suraj of Giridih
रोते-बिलखते सूरज के परिजन (ईटीवी भारत)

गिरिडीह: सूरज तो होनहार था, जेपीएससी मेंस की परीक्षा दे चुका था फिर भी घर की माली हालात को सुधारने के लिए वह उत्पाद सिपाही की बहाली में शामिल हो गया. घरवाले कहते रहे कि बेटा जब जेपीएससी की तैयारी कर रहे हो तो फिर क्यूं सिपाही की दौड़ में शामिल हो रहे हो, लेकिन सूरज को लग रहा था कि जितनी जल्दी हो उसे नौकरी मिल जाए, जितनी जल्दी हो उसके घर की माली हालात में सुधार आए, कितनी जल्दी हो कि उसके पिता का कष्ट दूर हो लेकिन ऐसा हो ना सका. इस बहाली की कष्टप्रद दौड़ ने सूरज को मौत की आगोश में भेज दिया, सूरज की मौत से उसके गरीब माता पिता के सपने टूट गए.

उत्पाद सिपाही दौड़ परीक्षा के दौरान गिरिडीह के सूरज की मौत (ईटीवी भारत)
दरअसल, गिरिडीह जिले के देवरी प्रखंड के ग्राम मनिकबाद टोला बको के रहने वाले सूरज कुमार (पिता- प्रभु वर्मा) उत्पाद सिपाही में बहाली के लिए दौड़ में शामिल होने हजारीबाग के पदमा गया था. सूरज ने दौड़ कम्प्लीट भी कर लिया लेकिन इसके बाद वह बेहोश हो गया, जमीन पर गिरा तो उसे पदमा से हजारीबाग लाया गया. जहां इलाज के क्रम में सूरज ने दम तोड़ दिया था.

सूरज अपने घर का एक चिराग था, सूरज के पिता प्रभु वर्मा एक छोटे से किसान है और मजदूरी करके सूरज को पढ़ाया-लिखाया. सूरज भी काफी होनहार छात्र था, वह देवघर में रहकर पढ़ाई करता था और उसने जेपीएससी पीटी की परीक्षा भी निकाल ली थी और मेंस के रिजल्ट का इंतजार कर रहा था. सूरज की मौत के बाद पूरे गांव में मातम पसर गया है.

मेरा बेटा ला दो..

सूरज के घर में गम का माहौल हैं. माता, पिता, भाई, बहन, मामी हर कोई रो रहा है. हरेक की आंख के सामने सूरज का मुस्कुराता चेहरा है. सामने सूरज का चेहरा तैरता तो उसकी मां मंजू कुमारी फफक पड़ती. हाय बेटा-हाय बेटा कहकर चीखने लगती. महिलाएं उसकी आंख के आंसू को पोंछती. फिर भी मंजू एक ही बात कहती कहां गया मेरा जिगर का टुकड़ा, कोई ला दो मेरे सूरज को. मंजू के ये वाक्य शायद हर किसी को झझकोर देता. हर किसी की आंखें नम हो जाती. फिर मंजू व्यवस्था पर सवाल उठाती और कहती अब क्या होगा हमारा?

रात 9 बजे कतार में लगा था सूरज, दौड़ कम्प्लीट होने तक था भूखा

मंजू की तरह सूरज की मामी रुक्मिणी कुमारी बोलते-बोलते रो पड़ती हैं. कहती हैं कि मेरा सूरज बहुत ही तेज था. जेपीएससी मेंस की परीक्षा भी दे चुका था. उत्पाद सिपाही की बहाली का जब उसने फॉर्म भरा तो मैं उससे मिली, कहा कि जब जेपीएससी की तैयारी में हो तो आखिर सिपाही की दौड़ में क्यूं शामिल हो रहे हो. इस पर सूरज ने कहा था कि मैं अब बच्चा नहीं हूं, एक बार दौड़ कर देखने दीजिये, नहीं होगा तो छोड़ देंगे.

घटना के दिन उसका दौड़ पूरा हो चुका था, दौड़ पूरा करने के बाद वह गिरा. गिरने के बाद उसे चालीस किमी दूर हजारीबाग लाया गया. कहा कि सरकार की लापरवाही ने जान ली है. रात नौ बजे लाइन में लगाना फिर दौड़ कम्प्लीट होने तक खाली पेट रखना. दौड़ स्थल पर मेडिकल की पर्याप्त व्यवस्था नहीं रहना इसे क्या कहेंगे. सरकार ने तो जानबूझकर सूरज की जान ली है.

मूली बेचकर पिता ने सूरज को भेजा था एक हजार

रुक्मिणी बताती हैं कि सूरज का परिवार काफी गरीब है. पिता मजदूरी और खेती करते हैं. जिस दिन सूरज हजारीबाग गया था उस दिन उसके पास पैसा नहीं था. ऐसे में पिता ने खेत की मूली बेची फिर सूरज को एक हजार रुपया भिजवाया गया. अब सूरज के परिवार को सरकार ही मदद करे. इसी तरह गांव के प्रतिनिधि के साथ-साथ स्थानीय लोग भी सूरज के परिवार की मदद करने की मांग कर रहे हैं.

सूरज के साथ-साथ उसके माता पिता ने कई सपने संजोये थे. घर के हालात को सुधारने की सोच भी सूरज की थी. सूरज को लगा था कि अबकी बार सब ठीक कर दूंगा लेकिन शायद उपरवाले को यह मंजूर नहीं था. अब हेमंत पर ही इस परिवार की आस टिकी है.

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