गया:बिहार के गया के जिस इलाके में कभी लाल आतंक का साया था. यहां बड़े पैमाने पर अफीम की खेती होती थी. आज वहां के किसानों के द्वारा पिछले 2 साल से बडे स्तर पर गन्ना की खेती की जा रही है. इमामगंज प्रखंड के सुहैल गांव में 25 किसानों ने एक समूह का गठन कर अपनी परंपरागत खेतीको छोड़कर 50 एकड़ में गन्ने की खेती शुरू की है. इससे पहले सुविधा के अभाव में कुर्थी, अरहर की खेती होती थी. वहां आज गन्ने के पौधे लहलहा रहे हैं. गांव के किसान अब काफी खुशहाल हैं.
25 किसानों ने बदलाव लाया:सुहैल थाना क्षेत्र में गन्ने की खेती की शुरुआत विजय अग्रवाल ने की थी. विजय अग्रवाल सुहैल गांव के निवासी हैं और इस से पहले रांची में गिफ्ट आइटम के बड़े कारोबारी थे. लेकिन वह अब अपने कारोबार को छोड़ कर गन्ने की खेती कर रहे हैं. 25 किसानों के साथ एक समूह का गठन कर इसकी शुरुआत की थी. अपनी परंपरागत खेती को छोड़कर इन लोगों ने पहले 50 एकड़ जमीन में गन्ने की खेती शुरू की. पहले अरहर, मसूर, धान,गेहूं की खेती करते थे.
यहां होती थी अफीम की खेती: किसान विजय कुमार अग्रवाल बताते हैं की यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित था. इस कारण अवैध खेती, अवैध काम के काफी सोर्सेज थे. इसी कड़ी में एक अफीम की खेती भी थी."अफीम की खेती कर रहे लोगों को हमने समझाया कि वह इस खेती को छोड़ दें. प्रोत्साहन के रूप में वह खुद गन्ने की खेती की. गांव के लोग अफीम की खेती ना करते हुए दूसरी खेती करें. इसके लिए काफी प्रयास किया. लोगों को गन्ने की खेती करने के लिए जागरूक और प्रेरित किया."
100 एकड़ जमीन पर गन्ने की खेती:आज उसका परिणाम है कि विराज पंचायत के लगभग चार गांव में 100 एकड़ जमीन पर गन्ने की खेती हो रही है , इस में कुछ लोग हैं जो पहले अफीम खेती की तरफ बढ़े थे, गन्ने की खेती करने का उद्देश्य था कि ग्रामीण अवैध खेती की तरफ ना जाएं, लोग अगर अफीम की खेती करेंगे तो गांव का नाम खराब होगा, युवा भी ऐसे कामों के लिए आगे बढ़ेंगे और फिर उनका भविष्य बर्बाद होगा, इस कारण किसानों ने एक बैठक कर समूह बनाया और इसके बाद सभी को प्रेरित किया.
गन्ना विभाग के सहयोग नहीं मिला:विजय कुमार अग्रवाल ने कहा कि अफीम की खेती से लोगों को हटा कर गन्ने की खेती करने में बड़ी समस्या भी हुई, गन्ना विभाग से संपर्क कर सहयोग भी मांगा गया. गन्ना विभाग के अधिकारी शुरू में गांव भी आए और उन्हों ने आश्वासन भी दिया कि यहां गुड योजना के तहत लाभ दिया जाएगा. गन्ना विभाग की ओर से गुड यूनिट लगाने का भी भरोसा दिया गया था लेकिन आज तक गन्ना विभाग से ज्यादा कुछ सहयोग नहीं मिला.
"यह सच है कि यहां कुछ वर्षों पहले यहां अफीम की खेती होती थी. अब वह खुद अपने परिवार के साथ मिलकर गन्ने की खेती कर रही हैं. कुछ दिन मजदूरी किया है लेकिन अब वह गन्ने की खेती पर निर्भर हैं. पिछले वर्ष 20 हजार की आमदनी हुई थी, लेकिन वह साथ गन्ना विभाग से नाराज़ भी हैं.अगर गन्ना विभाग सहयोग दे तो और लोग इस से जुड़ेंगे. गन्ना विभाग के अधिकारियों ने यहां आकर सहयोग करने का भरोसा भी दिया था. गन्ने की पेराई के लिए मशीन देने की बात कही गई थी किसान को नहीं मिला."-शीला देवी, किसान
तैयारी की थी अफीम की खेती करने की: सुहैल गांव के अशोक साव ने कहा कि वह भी अफीम की खेती के लिए कदम बढ़ा दिया था. सारी तैयारी करली थी, लेकिन बाद में पता चला कि वह अवैध है. कुछ किसानों ने उन्हें गन्ने की खेती करने के लिए प्रेरित किया. इस वर्ष उन्हों ने दो एकड़ से अधिक भूमि पर गन्ने की खेती कर चुके हैं. पिछले वर्ष प्रति बीघा 40 हजार रुपये की बचत हुई थी, जबकि गांव के युगेश भुइयां ने बताया कि वह भी गन्ने की खेती कर रहे हैं. अब दो एकड़ में गन्ने की खेती कर रहे हैं. इससे उन्हें आर्थिक फायदा हो रहा है.