मेरठ की सोनिका ने रची सफलता की नई कहानी. (video credit: etv bharat) success story in hindi: मेरठ- ये कहानी है मेरठ के एक गांव की उस महिला की जिसने अपनी मेहनत के बूते महज 25 हजार की पूंजी को 1.5 साल में 12 लाख में बदल दिया. आखिर यह सब हुआ कैसे, चलिए आगे जानते हैं उनके संघर्ष की कहानी के बारे में.
गांव में झाड़ू तैयार करतीं सोनिका. (photo credit: etv bharat) मेरठ के राली चौहान गांव की रहने वाली सोनिका आज पूरे गांव के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गईं हैं. वह न केवल खुद आत्मनिर्भर हुईं बल्कि उन्होंने गांव की कई महिलाओं को भी स्वावलंबी बनाया है. यहीं नहीं उन्होंने अपने पति को भी पार्टनर बना लिया है.
सोनिका बताती हैं कि पहले उनके पति घरों में पेटिंग का काम करते थे. आमदनी बेहद कम थी. एक वक्त तो ऐसा आया जब घर में अगले दिन के भोजन की व्यवस्था के लिए सोचना पड़ता था. पति को तनाव में देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने सोंचा कि कुछ करना पड़ेगा.
सोनिका की टीम द्वारा तैयार की गई झाड़ू. (photo credit: etv bharat) 25 हजार रुपए की पूंजी से शुरू किया काम
इस बीच पता चला कि मेरठ में जेल चुंगी के पास में एक केंद्र संचालित है जहां कई कामों का निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है. उन्होंने बताया कि पति पेंटिंग करने का काम करते थे. वहां उन्होंने झाड़ू बनाना सीखा ताकि परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में कुछ मदद मिल सके. सोनिका बताती हैं कि ट्रेनिंग के बाद 25 हजार रुपए की पूंजी का इंतजाम जैसे-तैसे किया और मेरठ से कच्चा माल ले आए. इसके बाद पूरे परिवार ने बैठकर घर में झाड़ू तैयार की. बेचने के लिए स्थानीय बाजारों में संपर्क किया.
सोनिका की टीम द्वारा तैयार की गई झाड़ू. (photo credit: etv bharat) दुकानदारों को झाड़ू बेहद पसंद आई
दुकानदारों को हमारी झाड़ू काफी पसंद आई और उन्होंने इसे खरीदना शुरू कर दिया. आर्डर बढ़ने लगा तो पति को काम में साथ लगा लिया. इसके बाद आर्डर और बढ़ गए तो महिलाओं को साथ में जोड़ना शुरू कर दिया. हमारे झाड़ू के काम को देखकर कई बार लोग हंसते भी थे लेकिन हमने ध्यान नहीं दिया और हम अपने काम में जुटे रहे.
सोनिका की टीम द्वारा तैयार की गई झाड़ू. (photo credit: etv bharat) अब तो ट्रक भर माल सप्लाई होता है
धीरे-धीरे हमारा काम इतना बढ़ गया कि गांव की चार महिलाओं को रोजगार दे दिया. साथ अप्रत्यक्ष रूप से भी कई लोगों को जोड़ लिया. दीवाली से पहले इतनी डिमांड मिली की माल पूरा नहीं कर पा रहे थे. पहले जहां कुछ झाड़ू लेकर बाजार में बेचने जाते थे तो वहीं अब ट्रक भरकर माल सप्लाई करते हैं. दिल्ली में ट्रक भर माल सप्लाई होता है. पति अब मार्केटिंग का काम देखते हैं.
खर्चे हटाने के बाद महीने में 50 हजार बचा लेतीं
सोनिका बतातीं हैं कि मौजूदा समय में वह करीब 50 हजार रुपए बचा लेती हैं सभी खर्चे और मजदूरी निकालने के बाद. उनका कारोबार करीब 10 से 12 लाख रुपए का हो चुका है. उन्होंने बताया कि हमारे यहां जो प्रशिक्षित महिलाएं काम करतीं हैं उन्हें रोज करीब 800 से 1000 रुपए मिल जाते हैं वहीं अप्रिशिक्षत महिलाओं व युवतियां चार सौ से पांच सौ रुपए तक कमा लेतीं हैं. इसके अलावा सोनिका मेरठ के आसपास के जिलों में प्रशिक्षण देने जातीं हैं.
पति को समाज के ताने भी सुनने पड़े
सोनिका के पति सोनू कुमार बताते हैं कि त्यौहार के आसपास में ही रंगाई पुताई का काम मिलता था. वहीं, हमेशा उनका काम नहीं चलता था ऐसे में वह अपनी पत्नि के साथ ही उनका हाथ बंटाने लगे. सोनू बताते हैं कि उन्होंने समाज के बहुत से ताने भी सुने. ऐसा भी वक़्त आया ज़ब लोग उनको झाडू बनाते देखकर उनपर हंसा करते थे लेकिन उन्होंने इन सभी बातों को गंभीरता से नहीं लिया और पति पत्नि दोनों मेहनत करते रहे.
जज्बा और मेहनत वाकई काबिले तारीफ
वहीं, ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान की कॉर्डिंनेटर माधुरी बताती हैं कि सोनिका में कुछ करने का जज्बा इस कदर था कि वह 6 दिन के प्रशिक्षण के बाद एक वर्ष से मेरठ के साथ ही आसपास के जनपदों में भी झाडू बनाने का प्रशिक्षण देने जा रही है. वाकई उसकी मेहनत और जज्बा काबिले तारीफ है.
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