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हिम्मत की दाद देनी होगी! जिस शहर में 40 साल लगाया झाड़ू.. ढोया मैला, वहां बनीं डिप्टी मेयर - Success Story

Deputy Mayor of Gaya Chinta Devi: जिस शहर में 40 सालों तक कूड़ा उठाया, अब वहीं की डिप्टी मेयर बनीं. यह कहानी बिहार के गया के चिंता देवी की है. चिंता देवी वर्तमान में गया की डिप्टी मेयर हैं. यह वही, चिंता देवी हैं, जो कभी गया शहर की सड़कों पर झाड़ू लगाया करती थीं. तकरीबन 40 वर्षों तक सफाई कर्मी के रूप में झाड़ू लगाया, कूड़े उठाए, ठेला चलाया, मैला ढोया, अब वह वहीं पर डिप्टी मेयर हैं. आगे पढ़ें पूरी खबर-

Deputy Mayor of Gaya Chinta Devi
गया की डिप्टी मेयर चिंता देवी (ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 25, 2024, 7:07 AM IST

डिप्टी मेयर चिंता देवी की कहानी (ETV Bharat)

गया: गया की अंगूठा छाप चिंता देवी अब हस्ताक्षर बनाने लगी हैं. किसी तरह से वह दस्तखत कर लेती हैं, लेकिन उनकी जिंदगी आज भी संघर्ष से भरी हुई है. आज हम जानते हैं, चिंता देवी के कूड़ा उठाने के सफर से लेकर गया की डिप्टी मेयर बनने तक की कहानी. डिप्टी मेयर बनने के बाद भी उनके संघर्ष जारी है.

40 साल सड़कों पर लगाया झाड़ू: गया की डिप्टी मेयर चिंता देवी शुरुआत से ही बुलंद हौसलों वाली महिलाओं में से एक रही है. उन्होंने 40 साल गया शहर की सड़कों पर झाड़ू लगाया, कूड़ा उठाया, ठेला चलाया, मैला ढोया लेकिन अपने काम में कभी कोताही ही नहीं बरती. अब जनता ने उन्हें 40 वर्षों की सेवा का इनाम दिया और कहा कि इतने साल सेवा की है, अब डिप्टी मेयर बन जाइए.

घर काम करती डिप्टी मेयर (ETV Bharat)

रिकॉर्ड मत से बनी डिप्टी मेयर:चिंता देवी की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं थी, लेकिन जनता ने उन्हें हौसला दिया. मदद करने की बात कही. इसके बाद वह चुनाव में खड़ी हो गई. फिर चिंता देवी के पक्ष में गोलबंदी हुई और वह करीब 30 हजार के रिकॉर्ड मत से डिप्टी मेयर निर्वाचित हुई. इस तरह गया शहर की जनता ने सफाई कर्मी के रूप में 40 वर्षों तक सेवा देने वाली चिंता देवी को डिप्टी मेयर के पद पर सुशोभित कर दिया.

नगर निगम से हटने के बाद बेची सब्जी: ईटीवी भारत से बातचीत में चिंता देवी ने अपने शुरुआती जीवन से लेकर अब तक के सफर की पूरी कहानी बताई. चिंता देवी ने बताया कि गया की सड़कों पर उन्होंने झाड़ू लगाया और जीवन में काफी संघर्ष किया है. नगर निगम में 40 वर्ष तक सेवा देने के बाद रिटायर हुई, तो सब्जी बेचना शुरू कर दिया. उनकी आर्थिक स्थिति कभी मजबूत नहीं रही.

आज भी 250-300 की ही पहनती साड़ी (ETV Bharat)

जनता ने दिया पूरा साथ:गया में जब अनुसूचित जाति के लिए डिप्टी मेयर का पद हुआ, तो जनता चिंता देवी से कहने लगी की आप खड़े हो जाइए, सभी मिलकर उन्हें जीता देंगे. जिस पर चिंता देवी ने कहा कि उनके पास पैसा नहीं है, तो वो कैसे खड़ा होंगी. इस पर जनता ने कहा कि वो पैसे देने को तैयार हैं, सभी मिलकर मदद करेंगे. इसके बाद अन्य लोग भी साथ आए और फिर चिंता देवी चुनाव जीतकर डिप्टी मेयर बन गईं.

नहीं देका पिता का चेहरा: गया के माड़नपुर मोहल्ले की रहने वाली डिप्टी मेयर चिंता देवी बताती हैं कि उनके जीवन में शुरू से संघर्ष रहा है. मां-बाप बचपन में मर गए. उन्होंने अपने पिता का चेहरा तक नहीं देखा. मां की नौकरी उनके मरने के बाद मिली. जब निगम में 36 महीने काम किया, तो दो बहनों की शादी की चिंता सताने लगी. इसके लिए उन्होंने राजमिस्त्री का काम करना शुरू कर दिया.

आज भी लकड़ी के चूल्हे पर बनाती हैं खाना (ETV Bharat)

निगम के बाद करती थी राजमिस्त्री का काम:चिंता देवीजब नगर निगम के लिए सड़कों पर सफाई करने का काम सुबह में पूरा कर लेती, तो उसके बाद तुरंत राजमिस्त्री का काम करने के लिए निकल जाती थीं. अतिरिक्त राजमिस्त्री का काम करने से कुछ पैसे बचे, जिसके बाद दो बहनों की उन्होंने शादी की. दोनों काम करके भाई-बहन को बड़ा किया. अपने बच्चों को भी इसी तरह से पाल-पोसकर बड़ा किया. उसे समय मजदूरी 12 रुपये मिलाती थी. ढाई रुपये किलो चावल हुआ करता था. वह गया कि डिप्टी मेयर हैं लेकिन अभी भी उनका कोई सहारा नहीं है.

डिप्टी मेयर बनने के बाद भी नहीं मिली सुविधा:डिप्टी मेयर चिंता देवी बताती हैं कि वह करीब 30 हजार से अधिक वोटो से जीती लेकिन उसके बाद भी कुछ नहीं बदला. एक विधायक जब विधानसभा से जीतता है, तो उसे सुविधा दी जाती है. कई तरह से सरकारी मदद होती है. उनका क्षेत्र तीन विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत पड़ता है. डिप्टी मेयर के पद वाले क्षेत्र को जोड़ें, तो गया नगर, बेलागंज और वजीरगंज विधानसभा क्षेत्र इसके अंतर्गत आ जाता है, लेकिन तीन विधानसभा क्षेत्र से जुड़ी डिप्टी मेयर को कोई सुविधा नहीं दी जा रही है.

मीटिंग में डिप्टी मेयर चिंता देवी (ETV Bharat)

चिंता देवी ने उठाए कई सवाल:डिप्टी मेयर को कोई सुविधा नहीं मिलने पर चिंता देवी ने कहा कि सरकार को इस पर कुछ करना चाहिए, ताकि उनके जैसी महिलाएं, जो जमीन से उठकर ऊपर आती है, वह अपने लिए ही नहीं बल्कि जनता के लिए भी कुछ कर सकें. उन्होंने कहा कि अभी तक उनके दस्तखत नहीं चलते हैं. जब निगम में मीटिंग होती है, तो सिर्फ कोरम पूरा करते हुए उपस्थिति के लिए सिग्नेचर लिया जाता है. कहीं दस्तखत का उपयोग नहीं होता है तो क्या डिप्टी मेयर का पद मुखौटे के लिए होता है. उन्होंने आरोप लगाया कि नगर निगम की एक अधिकारी कोउनसे ईर्ष्या है. वह नहीं चाहती है, कि वो डिप्टी मेयर रहे.

बेहतर समाज के लिए कर रही काम (ETV Bharat)

आज भी पहनती हैं 250-300 रुपये की साड़ी: डिप्टी मेयर चिंता देवी बताती हैं कि आज तक उनके जीवन में कुछ नहीं बदला. सरकार को चाहिए था, कि कुछ दे लेकिन कुछ नहीं दिया तो स्थिति जस की तस है. पहले भी उनके घर में कुछ नहीं था. चूल्हे पर खाना बनता था, आज भी चूल्हे पर खाना बन रही हैं. पहले सिलौटे पर मसाला पिसती थी, आज भी वही स्थिति है. मिक्सी खरीदने के लिए भी पैसे नहीं है. घर में सप्लाई वाला पानी ही होता है और आज भी वह 250- 300 रुपये वाली ही साड़ी पहनती हैं.

"जैसे पहले पैदल चलते थे, अब ही वही हाल है. डिप्टी मेयर बनने के बाद भी कोई गाड़ी नहीं मिली है. पैदल ही कार्यालय जाती हूं. ज्यादा पैर में दर्द होने लगे तो टोटो का सहारा लेती हूं. भाड़े पर टोटो लेकर अपने क्षेत्र में जाती हूं. डिप्टी मेयर बनने के बाद वह कभी सुस्त नहीं रही. अपने क्षेत्र के लिए चाहती हूं कि काफी कुछ करूं पर शायद हाथ बंधे हैं, लेकिन जहां तक अपनी शक्ति होती है, उसके अनुसार गया नगर निगम के 53 वार्डों में जाती हूं. जनता को कोई दिक्कत है, उसे दूर करने की कोशिश करती हूं."-चिंता देवी, डिप्टी मेयर, गया

ईमानदारी और संघर्ष की लंबी दास्तां (ETV Bharat)

दो बेटे टोटो चालक, एक बेटा सफाई कर्मी:चिंता देवी बताती हैं कि बाल बच्चे सब कमाते हैं. एक बेटा टोटो चलता है, दूसरा बेटा भी यही काम करता है, तीसरा बेटा नगर निगम में सफाईकर्मी है. अभी भी उनकी बहनें झाड़ू लगाती हैं. परिवार के कई लोग झाड़ू लगाकर ही कमा रहे हैं. वो चाहती हैं कि उनके बच्चे तरक्की करें लेकिन डिप्टी मेयर होने के बावजूद ऐसा संभव होते नहीं लगता है. सरकार से वो यही मांग करती हैं कि उनके जैसी कोई डिप्टी मेयर बनती है, तो उसके लिए मदद के रास्ते खोले जाए.

बंद हो गई पेंशन, बेटे से मांगती हैं पैसे: गया की डिप्टी मेयर चिंता देवी बताती है कि आज भी वह अपने बच्चों से 50 रुपये मांगने को मजबूर है. उसके हाथ हमेशा खाली रहते हैं. पहले पेंशन मिल रहा था, इधर वह भी बंद है. उनका कहना है कि आशा लगाकर सफाईकर्मी काम करते हैं, पर पैसे उन्हें नहीं मिलते हैं. नगर निगम आयुक्त अफसरशाही कर रहे हैं. 20 सफाई जमादार का वेतन भी रोक रखा है.

जमीनी लड़ाई में काफी बुलंद हैं चिंता देवी:वैसे आर्थिक तौर पर जो स्थिति चिंता देवी की है, वह निश्चित तौर पर कहीं न कहीं अपेक्षित नहीं है. वैसे जमीनी लड़ाई में देखा जाए तो चिंता देवी के हौसले बुलंद है. डिप्टी मेयर ने हाल ही में बिहार सरकार के मंत्री डॉ प्रेम कुमार के खिलाफ एक कड़ा बयान दिया था. नगर पालिका संशोधन विधेयक 2024 के मामले को लेकर कहा था कि 'यदि मंत्री हमें मिल जाएं, तो उन्हें लहरा देगें.' गया शहर की सड़कों पर 40 वर्ष तक झाड़ू लगाने और फिर डिप्टी मेयर बनने के बाद चिंता देवी काफी मुखर हुई है.

केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की बेटी को दी टक्कर:2022 में गया नगर निगम के लिए डिप्टी मेयर का चुनाव हो रहा था, तो उस चुनाव की रेस में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की पुत्री सुनैना देवी भी लड़ाई में थी. लड़ाई में बुरी तरह से वह काफी नीचे रही. वहीं इसके बीच चिंता देवी ने भारी मतों के अंतर से रिकॉर्ड जीत दर्ज की. इस तरह चिंता देवी का पहले से जो संघर्ष का सफर था, वह आज भी जारी है. बदलाव यह हुआ है, कि अब झाड़ू देने वाली चिंता देवी को लोग सम्मान से देखते हैं और उनसे विकसित गया शहर की अपेक्षा रखते हैं.

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