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विलुप्त होते शिकारी पक्षियों पर अध्ययन शुरू, पहली बार रेड हेडेड वल्चर को लगाया गया सैटेलाइट टैग - Study on birds of prey started

Study on Birds of Prey Begins उत्तराखंड में विलुप्त होते शिकारी पक्षियों पर अध्ययन का काम शुरू हो गया है. उत्तराखंड के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब इतने बड़े स्तर पर शिकारी पक्षियों को लेकर अध्ययन किया जा रहा है. इस कड़ी में राजाजी टाइगर रिजर्व क्षेत्र में रेड हेडेड वल्चर (लाल सिर वाला गिद्ध) को सैटेलाइट टैग लगाकर छोड़ गया.

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फोटो-ईटीवी भारत

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Mar 28, 2024, 10:23 PM IST

देहरादूनःउत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी टाइगर रिजर्व में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके पांच प्रजाति के शिकारी पक्षियों पर अध्ययन किया जा रहा है. इसी कड़ी में राजाजी टाइगर रिजर्व में लाल सिर वाले गिद्ध को पकड़कर उस पर सैटेलाइट टैग लगाया गया. इसके बाद शिकारी पक्षी के स्वास्थ्य की जांच और जरूरी सैंपल इकट्ठा करने के बाद उसे राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक साकेत बडोला और एक्सपर्ट की मौजूदगी में चीला रेंज में सुरक्षित छोड़ दिया गया.

दुनिया भर में शिकारी पक्षियों की कई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन्हें बचाए जाने के लिए तमाम कार्यक्रम भी चल रहे हैं. कुछ प्रजातियों के गिद्ध की संख्या तो 90 फीसदी तक कम हो चुकी है. गिद्धों की जनसंख्या में कमी के लिए जिम्मेदार मानी जाने वाली डाइक्लोफिनेक दवा को भी घरेलू पशुओं के उपयोग के लिए बैन किया गया है.

WWF इंडिया के सहयोग से शिकारी पक्षियों पर वैज्ञानिक विधि के माध्यम से अध्ययन शुरू किया गया है और इसी के तहत सैटेलाइट टैग लगाने की शुरुआत की गई है. इसमें भारत सरकार से पांच प्रजातियों के शिकारी पक्षियों पर सैटेलाइट टैग लगाने की अनुमति दी गई है. इसके जरिए शिकारी पक्षियों के क्षेत्र और तमाम संसाधनों के अलावा दूसरी जानकारियां जुटाई जाएगी और इन्हें बेहतर बनाने का प्रयास किया जाएगा.

प्रदेश में पहली बार लाल सिर वाले गिद्ध पर सैटेलाइट टैग लगाया गया है. प्रोजेक्ट के तहत व्हाइट रम्प्ड वल्चर (White Rumped Vulture), इजिप्टियन वल्चर (Egyptian vulture) और पलाश फिश ईगल (Pallas's fish Eagle) पर भी सैटेलाइट टैग लगाए जाएंगे.

मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक उत्तराखंड डॉ. समीर सिन्हा की देखरेख में इस पूरी परियोजना को आगे बढ़ाया जा रहा है. इस परियोजना के पूरा होने के बाद विलुप्त होते शिकारी पक्षियों के संवर्धन को लेकर काम किया जा सकेगा.

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