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Rajasthan: महिला के पति को दिया जीवनदान, तब से शुरू हुआ करवा चौथ का व्रत, पढ़ें राजस्थान के चौथ माता मंदिर से जुड़ी कहानी

चौथ का बरवाड़ा में स्थित चौथ माता मंदिर को लेकर एक किवदंती प्रचलित है. कहते हैं इसके बाद ही चौथ का व्रत शुरू हुआ.

Story Of Karwa Chauth Celebration
चौथ माता मंदिर में उमड़ा आस्था का सैलाब (ETV Bharat Sawai Madhopur)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 20, 2024, 5:49 PM IST

सवाई माधोपुर:सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाडा कस्बे में मां अम्बे का एक ऐसा मंदिर है जिसे लोग चौथ माता के रुप में पूजते हैं. आज करवा चौथ पर चौथ माता मंदिर में आस्था का सैलाब उमड़ा. सुहागिन महिलाएं चौथ माता के दर्शन कर अपनी पति की लंबी उम्र की कामना करती नजर आई. यह मंदिर पहाड़ियों पर करीब एक हजार फिट की उंचाई पर विराजमान है. एक किवदंती के अनुसार चौथ माता ने एक महिला के पति को जीवनदान दिया था. तब से महिलाएं चौथ माता की पूजा कर अपने पति की लम्बी आयु की प्रार्थना करती हैं.

चौथ माता मंदिर को लेकर ये हैं प्रचलित कहानियां (ETV Bharat Sawai Madhopur)

यहां आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि चौथ माता भक्तों की हर मुराद पूरी करती है. कोई भी भक्त माता के दरबार से खाली हाथ नहीं लौटता. माता सबकी झोली भरती है. महीने की हर चौथ और विशेष कर करवा चौथ को महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए माता का उपवास रखती हैं. दिनभर व्रत रखने के बाद महिलाएं चांद देखकर और माता को अर्क देकर अपने पति का चेहरा देखती हैं. पति के चेहरे में माता के रुप को देखकर ही व्रत खोलती हैं. साल भर यहां माता के दरबार में भक्तों को तांता लगा रहता है.

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स्थापना को लेकर अलग-अलग मत:चौथ माता मंदिर को लेकर कई किवदंतियां प्रचलित हैं. साथ ही चौथ माता के मंदिर की स्थापना को लेकर भी लोगों के अलग अलग मत हैं. अधिकतर लोगों का मानना है कि चौथ माता मंदिर की स्थापना 1451 में यहां के तत्कालीन शासक भीमसिंह ने की थी. 1463 में मंदिर मार्ग पर बिजल की छतरी तथा पहाड़ी की तलहटी में तालाब का निर्माण करवाया गया था. सौलहवीं शताब्दी में यह कस्बा चौहान वंश से मुक्त होकर राठौड़ वंश के अधीन आ गया था. इस वंश के शासकों में भी माता के प्रति गहरी आस्था थी.

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बूंदी राजघराने की कुल देवी: कहा जाता है कि राठौड़ वंश के शासक तेजसिंह राठौड़ ने 1671 में मुख्य मंदिर के दक्षिण हिस्से में एक तिबारा बनवाया था. हाड़ौती क्षेत्र के लोग हर शुभ कार्य करने से पहले आज भी माता को निमंत्रण देने आते हैं. प्रगाढ़ आस्था के कारण बूंदी राजघराने के समय से ही चौथ माता को कुल देवी के रुप में पूजा जाता है. माता के नाम पर कोटा में चौथ माता बाजार भी है. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि चौथ माता मंदिर की स्थापना जयपुर राजघराने के द्वारा कराई गई थी. जब राव माधोसिंह ने सवाई माधोपुर बसाया था. उसी दौरान यहां मंदिर भी बनवाया गया था. राव माधोसिंह माता को कुलदेवी के रुप में पूजते थे.

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ये है चौथ के व्रत की कहानी:कहा जाता है कि एक बार लड़ाई के दौरान मातेश्री नामक एक महिला के पति की मौत हो गई थी. इस पर महिला ने अपने पति के साथ सती होने की जिद की, तो राव माधोसिंह ने सती प्रथा पर रोक लगा दी और महिला को सती नहीं होने दिया गया. इस पर महिला ने माता के दरबार में गुहार लगाई कि हे माता या तो मुझे मौत दे दो, या फिर मेरे पति को जीवनदान दो. इस पर माता ने महिला के पति को जीवनदान देकर जीवित किया. तभी से पूरे राजस्थान में महिलाएं माता के नाम से चौथ माता का व्रत करती हैं. तभी से महिलाएं करवा चौथ का उपवास रखती हैं और अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती हैं. राव माधोसिंह ने ही इस कस्बे को माली समाज के लोगों को गद्दी के रुप में भेट कर दिया था. तभी से यहां माता की पूजा माली समाज के द्वारा ही की जाती है.

करोड़ों का आता है चढ़ावा: भादवा की चौथ पर माता के मंदिर में मेला लगता है. इसमें लाखों की संख्या में भक्तों का सैलाब उमड़ता है. लाखों श्रद्धालुओं के आने से माता के दरबार में करोड़ों रुपयों का चढ़ावा आता है. इसके चलते स्थानीय लोगों द्वारा मंदिर ट्रस्ट बनाया गया है, जो मंदिर में आने वाले चढ़ावे का हिसाब रखता है. साथ ही मंदिर में विकास कार्य करवाया जाता है. भक्तों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए ट्रस्ट के द्वारा कटरा स्थित वैष्णों देवी मंदिर की तर्ज पर माता के मंदिर तक एक हजार फीट लम्बा और उंचाई वाले मार्ग को छायादार बनाया गया. इससे बारिश और गर्मी में श्रद्धालुओं को परेशानी नहीं होती है. मंदिर की सुरक्षा को लेकर भी ट्रस्ट के द्वारा पुख्ता इन्तजाम किया गया है. मंदिर में हर तरफ सुरक्षा गार्ड तैनात रहते हैं. साथ ही सीसीटीवी कैमरों से मंदिर के कोने-कोने पर नजर रखी जाती है.

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