शनि प्रदोष व्रत पर कर लें ये खास काम, भोलेनाथ के साथ बनी रहेगी शनिदेव की कृपा - Shani Pradosh Vrat
शनि प्रदोष व्रत के दिन भगवान भोलेनाथ के साथ शनिदेव की खास विधि से पूजा करने से मनुष्य की हर परेशानी दूर हो जाती है. आइए जानते हैं पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि.
शनि प्रदोष व्रत के दिन कर लें ये खास काम (ETV Bharat)
रायपुर:17 अगस्त शनिवार के दिन शनि प्रदोष व्रत है. सावन महीना भगवान भोलेनाथ की पूजा आराधना के लिए उत्तम समय माना गया है. इस बार प्रदोष व्रत शनिवार के दिन पड़ रहा है. ऐसे में यह शनि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है. शनि प्रदोष व्रत के दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा आराधना करने के साथ ही न्याय के देवता शनि देव महाराज की भी पूजा आराधना की जाती है.
जानिए क्या कहते हैं पुजारी ?: शनि प्रदोष व्रत के बारे में रायपुर के काली मंदिर के पंडित धनेंद्र कुमार दुबे ने बताया कि, "प्रदोष की जो तिथि है, हर महीने कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को पड़ती है. शनिवार का दिन पड़ने के कारण इसे शनि प्रदोष व्रत कहा गया है. त्रयोदशी तिथि में भगवान भोलेनाथ के नाम से व्रत उपवास किया जाता है. शनि एक ग्रह होने के कारण उसे अशुभ फल कारक माना जाता है, लेकिन वह न्याय के देवता भी हैं. ऐसे में भगवान भोलेनाथ के साथ ही भगवान शनि की भी आज के दिन पूजा आराधना की जानी चाहिए.
"शनि देवता के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए इस दिन शनि भगवान की विधि-विधान से पूजा की जानी चाहिए. प्रदोष व्रत के दिन भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक, काला तिल, उड़द, शक्कर, सरसों का तेल और शमी पत्र से पूजा करनी चाहिए. ऐसे में शंकर जी तो प्रसन्न होते ही हैं. साथ ही शनि देवता भी प्रसन्न होते हैं. क्योंकि शनि देवता के गुरु शंकर जी हैं. इसके साथ ही जातक की कुंडली में शनि के अशुभ प्रभाव है उससे भी मुक्ति मिलती है." -पंडित धनेंद्र कुमार दुबे, काली मंदिर के पुजारी
जानिए शुभ मुहूर्त:हिंदू पंचांग के अनुसार सावन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का आरंभ शनिवार 17 अगस्त 2024 की सुबह 8:05 पर होगा. इसका समापन 18 अगस्त रविवार 2024 की सुबह 5:51 पर होगा. उदया तिथि के मुताबिक 17 अगस्त शनिवार के दिन ही शनि प्रदोष का व्रत रखा जाएगा. शनिवार का दिन पड़ने के कारण इसे शनि प्रदोष व्रत कहा गया है. इस दिन प्रीति योग और आयुष्मान योग का भी निर्माण हो रहा है.
ऐसे करें शनि प्रदोष की पूजा:
शनि प्रदोष व्रत के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें.
स्नान ध्यान से निवृत होकर साफ स्वच्छ कपड़े धारण करें.
मंदिर की सफाई करें.
इसके बाद शिवजी की पूजा की तैयारी करें.
पूजा सामग्री एकत्रित कर एक छोटी चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं.
उस पर शिव परिवार की प्रतिमा स्थापित करें.
शिवजी को फल फूल दीप और नैवेद्य अर्पित करें.
इसके बाद शिव परिवार सहित सभी देवी देवता की आरती उतारें.
शिवलिंग पर जल अर्पित करें और संभव हो तो दिनभर फलाहारी रहकर व्रत रखें.
इसके बाद शाम के समय में प्रदोष काल में शिव पूजा आरंभ करें.
शिवलिंग पर गंगाजल, कच्चा दूध, आक के फूल, बेलपत्र, शमी पत्र, भांग, धतूरा आदि भगवान को अभिषेक करें.
भगवान शिव के बीज मंत्र ओम नमः शिवाय का मन ही मन उच्चारण करें.
इसके बाद आखिर में शनि प्रदोष की कथा पढ़ें.
शिव आरती के बाद लोगों के बीच प्रसाद बांटे.
इस दिन शिव मंदिर के साथ ही शनि मंदिर जाकर भी शनि देवता की पूजा करें.
नोट: यहां प्रकाशित सारी बातें पंडित जी द्वारा कही गई बातें है. ईटीवी भारत इसकी पुष्टि नहीं करता.