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सिंगरौली जिले का एक ऐसा आदिवासी गांव, जहां न बिजली न सड़क और न पानी - Singrauli story of tribal village - SINGRAULI STORY OF TRIBAL VILLAGE

ऊर्जाधानी सिंगरौली जिले में एक ऐसा गांव भी है, जहां आजादी के बाद से अब तक बिजली-पानी और सड़क नहीं है. आदिवासी इलाके उतानी पाठ गांव को देखकर लगता ही नहीं कि ये गांव अपने देश में स्थित है.

Singrauli district story of tribal village
सिंगरौली जिले का आदिवासी गांव सुविधाओं को मोहताज (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : May 21, 2024, 12:37 PM IST

सिंगरौली जिले के आदिवासी गांवों में बिजली नहीं (ETV BHARAT)

सिंगरौली।मध्य प्रदेश का सिंगरौली जिला ऊर्जाधानी के नाम से पहचाना जाता है. कोयल, खान और खनिज संपदाओं की वजह से देशभर में सिंगरौली का नाम विख्यात है. सिंगरौली जिला पावर हब के लिए प्रसिद्ध है. इसी जिले के एक गांव की तस्वीर आपको हैरान कर देगी. जहां आजादी के 75 वर्षों बाद भी बिजली, पानी और सड़क की सुविधाओं से लोग मोहताज हैं. इन समस्याओं के बीच अपना गुजारा करने के लिए आदिवासी लोग मजबूर हैं. इस गांव से सड़क पर पहुंचने के लिए लोगों को दो-तीन किलोमीटर पैदल चक्कर जाना पड़ता है.

आदिवासी गांवों में पानी की समस्या बहुत बड़ी (ETV BHARAT)

इस गांव में 400 बैगा आदिवासी रहते हैं

जिला मुख्यालय से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर बसा उतानी पाठ गांव में करीब 400 बैगा आदिवासी रहते हैं. ये गांव नादों ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है, लेकिन आज भी ये गांव विकास की मुख्यधारा में आने के लिए जद्दोदहद कर रहा है. इस गांव के रहवासियों के सामने सबसे बड़ी समस्या पानी की है. लोगों को अपनी प्यास बुझाने के लिए 3 से 4 किलोमीटर का सफर तय करके नदी से पानी लाना पड़ता है. यहां के लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. गांव के लोगों ने बताया कि पानी लाने के लिए 3 से 4 किलोमीटर दूर नदी में जाते हैं. गांव मे न तो सड़क है और न बिजली है.

आदिवासी गांवों में सड़क भी नहीं (ETV BHARAT)

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सड़क नहीं होने से खाट पर ले जाते हैं मरीज

जब कोई बीमार होता है तो खाट पर लेकर जाते है क्योंकि यहां कोई भी वाहन नहीं आ सकता. बच्चों को पढ़ने के लिए एक प्राथमिक विद्यालय है लेकिन वह भी खंडहर में तब्दील हो चुका है. शिक्षक यहां के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक महीने में चार से पांच दिन ही आते हैं. रात के अंधेरे में महिलाएं चूहे पर खाना बनाती हैं. अंधेरे में ही जिंदगी गुजर रही है. किसी भी सरकारी योजनाओं का लाभ नही मिला है. बिजली न होने के कारण बच्चों को रात के अंधेरे में अपनी पढ़ाई करने के लिए टॉर्च का सहारा लेना पड़ता है.

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