होलाष्टक लगते ही श्रीनाथजी मंदिर में जमी होली की रंगत राजसमंद. नाथद्वारा में बसंत पंचमी पर श्रीजी बावा को विशेष शृंगार धराया जाता है. इस दिन से ही ठाकुरजी के राजभोग की झांकी के समय से गुलाल-अबीर की सेवा प्रारंभ हो जाती है जो दिन प्रतिदिन बढ़ती रहती है. इसमें श्रीजी बावा के श्रीअंग वस्त्रों पर मुखियाजी द्वारा गुलाल व अबीर की सेवा धराई जाती है. वहीं, राजभोग के समय धराई जाने वाली धवल पिछवाई पर गुलाल अबीर से विभिन्न भाव लीलाएं अंकित होती हैं, जिसमें चीरहरण, कालिया नाग सहित कई अलौकिक लीलाओं का गुलाल अबीर से चित्रांकन किया जाता है.
होलाष्टक लगते ही प्रभु श्रीनाथजी मंदिर में होली के रसिया की धूम मची है. राजभोग की झांकी के समय ग्वाल-बालों द्वारा मंदिर के रतन चौक एवं उसके बाद श्रीजी के सम्मुख डोल तिबारी में खड़े रहकर रसिया का गान किया जा रहा है और होलाष्टक के दिन से मंदिर में गार गायन भी शुरू हो गया है. निधि स्वरूप लाड़ले लालन के संमुख इस दिन से डोलोत्सव तक शयन की झांकी के खुलने से ठीक पहले गार गायन होता है.
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पूरे मास रहेगी अलौकिक रंगत: फाल्गुन मास की शुरुआत होते ही प्रभु श्रीनाथजी मंदिर में विशेष धमार प्रारंभ हो जाती है, जिसमें विशेष रूप से रसिया गायन के साथ ही प्रतिदिन स्वांग भी रचे जाते हैं, जो सायंकाल व भोग आरती के दर्शनोंपरांत ठाकुरजी के संमुख नृत्य करते हैं. वहीं, कीर्तनकारों के साथ कीर्तन गान के साज में ढफ भी शामिल हो जाता है. श्रीनाथजी के पाटोत्सव से कीर्तनकारों के साथ वाद्य यंत्र किन्नरी एवं उपंग आदि भी बजने प्रारंभ हो जाएंगे.
कीर्तन में भी होगा विशेष बखान: श्रीजी बावा के कीर्तन गान के दौरान कीर्तनकारों के द्वारा भी विशेष कीर्तन गान किया जाता है. इसमें प्रथम दिन ही विशेष कीर्तन - ऋतु बसंत सुख खेलिये आयो फाल्गुन मास, होरी डांडो रोपियो सब बृज जन मन उल्लास, का गान किया गया. वहीं, ग्वाल बालों द्वारा छेड़छाड़ व फाग की मस्ती के रंग में रंगे होली गीतों का गायन किया जा रहा है. होलीकाष्टक में गार गायन होता है, जिसमें कीर्तनकारों द्वारा मंदिर के मुखिया सहित प्रमुख सेवादारों व अपने साथियों को गालियां गाकर दी जाती है.