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शिमला के सेब का अब गोरखपुर में लीजिए आनंद, इस किसान ने नामुमकिन को किया मुमकिन - shimla apples farming in Gorakhpur

शिमला के सेब का आनंद अब गोरखपुर में भी मिलेगा. जी हां! ठंडे और ऊंचे पहाड़ों से शिमला के सेब को गोरखपुर के तराई में लाने की पहल हो चुकी है. यह पहल कृषि विज्ञान केंद्र ने की है.

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शिमला के सेब अब गोरखपुर में (photo credit- Etv Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 12, 2024, 2:05 PM IST

गोरखपुर:तराई और ऊसर की भूमि पर भी सेब की पैदावार हो सकती है. इसे सच साबित कर दिखाया है गोरखपुर के कुछ अग्रणी किसानों ने. उनके इस हौस`ले को देखकर कवि ' 'दुष्यंत कुमार' की वह लाइन याद आ जाती है और सटीक बैठती है कि "कौन कहता है आसमान में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो". शिमला का सेब अब गोरखपुर की माटी में उपज रहा है. वह भी तराई वाले क्षेत्र में. है न चौंकाने वाली बात! पर चौंकिए मत. यह बिल्कुल सच है. ठंडे और ऊंचे पहाड़ों से शिमला के सेब को तराई में लाने की पहल हो चुकी है. यह पहल की है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जिले के बेलीपार स्थित कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) ने.

तीन साल पहले (2021) केंद्र ने सेब की कुछ प्रजातियां हिमाचल से मंगाकर लगाई. 2023 में इनमें फल आने लगे. इससे प्रेरित होकर जिले के पिपराइच स्थित उनौला गांव के प्रगतिशील किसान धर्मेंद्र सिंह ने, 2022 में हिमाचल से मंगाकर सेब के 50 पौधे लगाए. इस साल उनके भी पौधों में फल आए. इससे उत्साहित होकर वह इस साल एक एकड़ में सेब के बाग लगाने की तैयारी कर रहे हैं.

धर्मेंद्र सिंह के मुताबिक 2022 में उन्होंने हिमाचल से लाकर सेब के 50 पौधे लगाए. प्रजातियां थीं अन्ना और हरमन 99. इस साल उनमें फल भी आए. उनसे जब सेब की खेती के बारे में यह सवाल हुआ, कि इस असंभव कार्य को कैसे सोचे? तो जवाब में उन्होंने कहा, कि कुछ नया करना मेरा जुनून है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में खेतीबाड़ी पर खासा फोकस है. आसानी से पारदर्शी तरीके से तय अनुदान मिल जाता है. साथ ही कृषि विज्ञान केंद्र से जरूरी सलाह भी. इन सबकी वजह से सेब की खेती शुरू की. अब इसे विस्तार देने की तैयारी है. पौधों का ऑर्डर दे चुका हूं. रोपण के लिए हिमाचल से उनके आने की प्रतीक्षा है.

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अन्ना, हरमन-99, डोरसेट गोल्डन प्रजातियां तराई क्षेत्र के अनुकूल:कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार गोरखपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह के अनुसार जनवरी 2021 में सेब की तीन प्रजातियों अन्ना, हरमन- 99, डोरसेट गोल्डन को हिमाचल प्रदेश से मंगाकर केंद्र पर पौधरोपण कराया गया. 2 वर्ष बाद ही इनमें फल आ गए. यही तीनों प्रजातियां पूर्वांचल के कृषि जलवायु क्षेत्र के भी अनुकूल हैं.

कैसे करें सेब की खेती:संस्तुत प्रजातियों का ही चयन करें. अन्ना, हरमन - 99, डोरसेट गोल्डन आदि का ही प्रयोग करें. बाग में कम से कम दो प्रजातियां का पौध रोपण करें. इससे परागण अच्छी प्रकार से होता है. एवं फलों की संख्या अच्छी मिलती है. फल अमूमन 4/4 के गुच्छे में आते हैं. शुरुआत में ही कुछ फलों को निकाल देने से शेष फलों की साइज और गुणवत्ता बेहतर हो जाती है.

नवंबर से फरवरी रोपण का उचित समय:पौधों के रोपण का उचित समय नवंबर से फरवरी है. जनवरी-फरवरी में पौध लगाना सर्वोत्तम होता है.

लाइन से लाइन और पौध से पौध की दूरी 10 से 12 फीट रखें:पौधों का रोपण लाइन से लाइन और पौधे से पौधा, 10 से 12 फीट की दूरी पर करें. इस प्रकार प्रति एकड़ लगभग 400 पौधे का रोपण किया जा सकेगा.

तीन-चार वर्ष में ही 80 फीसद पौधों में आने लगते फल:रोपाई के तीन से चार वर्ष में 80 फीसद पौधों में फल आने शुरू हो जाते हैं. 6 वर्ष में पूरी फसल आने लगती है. इस तरह कम समय की बागवानी के लिए भी सेब अनुकूल है.

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