वाराणसी:महाशक्ति मां दुर्गा के आराधना उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्र आ गए हैं. आज घर-घर घट स्थापना हो रही है. आइए जानते हैं, नवरात्र में मां जगदंबा की पूजा के महत्व, तिथि और विधि के बारे में.
क्या है कथा:मार्कण्डेय पुराण में जो देवी का महात्म्य देवी सप्तशती के द्वारा प्रकट बताया गया है, उसमें वर्णित है कि शुंभ-निशुंभ और महिषासुरादि तामसिक स्वभाव वाले असुरों के जन्म होने से देवगण दुखी हो गए. सभी देवगणों ने मिलकर महामाया भगवती की स्तुति प्रार्थना की, तब देवी ने प्रसन्न होकर देवगणों को वरदान दिया कि, डरो मत मैं अचीर काल में प्रकट होकर अतुल पराक्रमी असुरों का संहार करूंगी और सभी के दुखों को दूर करूंगी. मेरी प्रसन्नता के लिए तुम लोगों को आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से घट स्थापन पूर्वक नौ दिनों तक मेरी आराधना करनी चाहिए. इसी आधार पर यह देवी नवरात्र का महोत्सव अनादि काल से आज तक चला आ रहा है. नवरात्रियों तक व्रत-पूजन करने से इस व्रत का नाम नवरात्र पड़ा.
कलश स्थापन का मुहूर्त:इस बार नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा आज से शुरू हो चुके हैं. नवरात्र की महानवमी 11 अक्टूबर को है. वहीं, 12 अक्टूबर को दशमी मिलने से विजयादशमी मनाया जाएगा. देखा जाए तो इस बार नवरात्र में चतुर्थी तिथि की वृद्धि और नवमी तिथि का क्षय है. अत: 11 अक्टूबर को ही महाष्टमी व्रत व महानवमी व्रत दोनों किया जाएगा. पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, अर्थात तीन अक्टूबर को कलश स्थापन का मुहूर्त प्रात: 06 बजकर 07 मिनट से सुबह नौ बजकर 30 मिनट तक, उसके बाद अभिजीत मुहूर्त दिन में 11.37 से 12.23 दिन तक अतिशुभ रहेगा. हालांकि प्रात: से शाम तक में कभी भी घट स्थापन किया जा सकता है. शास्त्रानुसार प्रात: घट स्थापन की विशेष महत्ता बताई गई है.
यह लेना चाहिए संकल्प:नवरात्र के आरंभ तीन अक्टूबर, आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को प्रात:काल तैलाभंग स्नानादि कर मन में संकल्पादि लेना चाहिए. संकल्प में तिथि, वार, नक्षत्र, गोत्र, नामादि लेकर दीर्घायु, विपुल लक्ष्मी, धन, पुत्र-पौत्रादि, स्थिर लक्ष्मी, कीर्तिलाभ, शत्रु पराजय, सभी तरह के कार्यों के सिद्धर्थ, शारदीय नवरात्र में कलश स्थापन, दुर्गा पूजा, कुमारी पूजा करेंगे या करूंगी, इस प्रकार संकल्प करना चाहिए. इसके उपरांत गणपति पूजन, नवग्रह पूजन, पुर्णायाचन, नांदीश्राद्ध, मात्रिका पूजन इत्यादि करना चाहिए. तदुपरांत मां दुर्गा का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करना चाहिए.