शहडोल:कहते हैं जहां चाह वहां राह कुछ ऐसी ही कहानी युवा केदारनाथ साहू की है. केदारनाथ साहू की कहानी कई लोगों के लिए एक मिसाल है. खासकर उन लोगों के लिए जो अपना कुछ अलग करना चाहते हैं. अपनी पहचान खुद के काम से बनाना चाहते हैं. केदारनाथ साहू ने पहले पढ़ाई में खुद को साबित किया, फिर प्राइवेट नौकरी भी हासिल की. कुछ साल तक नौकरी भी की, लेकिन जब मन नहीं लगा तो फिर काष्ठ की कलाकारी करने लगे और इसमें ऐसा काम किया कि अब उनके इस काम का हर जगह सम्मान हो रहा है.
पुणे में मिला सम्मान
अभी हाल ही में महाराष्ट्र में देश स्तर का एक सम्मान समारोह आयोजित किया गया. यहां 18वें अखिल भारतीय प्रतिभा महासम्मेलन का आयोजन था. जहां शहडोल के काष्ठ शिल्पकार केदार साहू को मध्य प्रदेश की ओर से बुलाया गया था. 29 सितंबर को आयोजित इस सम्मेलन में देश से विभिन्न क्षेत्रों के अलग-अलग प्रतिभाओं को बुलाया गया था, जिसमें शहडोल के केदार साहू भी शामिल थे. इस सम्मान समारोह में केदार साहू को नेशनल लेवल का अवार्ड दिया गया. जिसे वंडर-7 टैलेंट अवार्ड के नाम से भी जाना जाता है. ये अवार्ड उन्हें वुड क्राफ्ट एंड कल्चर में लगातार बेहतर काम के लिए दिया गया.
काष्ठ के कलाकार हैं केदार
केदार साहू शहडोल जिले के गोहपारू ब्लॉक के देवरी नंबर दो गांव के रहने वाले हैं और इन्हें काष्ठ में कलाकारी में महारत हासिल है. मतलब लकड़ियों में ये तरह-तरह की कलाकारी करते हैं. वुडन क्राफ्ट और कल्चर में ये अपना एक अलग नाम बना रहे हैं. इसी क्षेत्र में इनका करियर फोकस भी है. केदार साहू लगातार इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं. अपने इस काम से जगह-जगह एक सम्मान भी हासिल कर रहे हैं. साथ ही इससे जो आय होती है, उसी से वो अपना घर चला रहे हैं.
छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा को सबने सराहा
केदार साहू बताते हैं कि 29 सितंबर को जो सम्मेलन आयोजित किया गया था. उसमें उन्होंने छत्रपति शिवाजी की लकड़ी से बनी 3 फीट की प्रतिमा को लेकर गए थे. इस प्रतिमा को उस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि को भेंट किया. जिसके बाद सभी ने उसे बहुत सराहा, बहुत तारीफ की. केदार साहू बताते हैं कि इस कार्यक्रम में छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज, शहीद भगत सिंह के वंशज और कई बड़ी हस्तियां थीं. सभी ने उनके इस कला की जमकर तारीफ की.
कंप्यूटर की पढ़ाई, लेकिन विरासत काम आई
केदार साहू ने हार्डवेयर एंड नेटवर्क इंजीनियरिंग का कोर्स करके कंप्यूटर की पढ़ाई की. 1 साल जबलपुर में प्राइवेट नौकरी की. इसके बाद नोएडा में भी 1 साल तक प्राइवेट नौकरी की, लेकिन उनका मन इसमें बिल्कुल भी नहीं लग रहा था. जब उन्होंने देखा कि इतनी दूर जाकर काम करने के बाद भी इतने कम पैसे मिल रहे हैं और सटिस्फेक्शन नहीं है, तो उन्होंने एक झटके में ही अपनी नौकरी छोड़ दी. अपने गांव वापस आ गए और फिर अपने पिता के विरासत को आगे बढ़ाने का सोचा. आज उनका यही टैलेंट देश दुनिया में अलग पहचान बना रहा है.
खुद की सुनी, इसीलिए पहचान बनी
केदार साहू बताते हैं कि जब वो नौकरी छोड़कर गांव वापस लौटे तो लोग यही बोलते थे, कि इतना पढ़े लिखे, नौकरी भी करते थे, लेकिन वही लकड़ी का काम करने वापस आ गए, लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी, सिर्फ और सिर्फ खुद की सुनी, इसीलिए अब उनको एक अलग पहचान मिल रही है. अब वह अलग दिशा में ही आगे बढ़ चुके हैं. अपने पिता के ही विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. जिसे लेकर केदार साहू भी कहते हैं कि वह बहुत खुश हैं कि पिता ने जिस काम की शुरुआत की थी. आज उसे वह अलग ही अंदाज में आगे लेकर जा रहे हैं.