PADORA VEGETABLE FARMING : प्रदेश का शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है, जो प्राकृतिक संसाधनों से हरा भरा है. नदी, जंगल, पहाड़ यहां सब कुछ पाए जाते हैं. इन जंगलों में कई ऐसी चीजें पाई जाती हैं, जो आज के समय में लोगों के लिए बहुत उपयोगी और औषधीय महत्व की है. बाजार में उनकी अच्छी खासी डिमांड भी है, इन्हीं में से एक पड़ोरा का फल है, जिसकी सब्जी खाई जाती है. अब कई किसान इसकी खेती भी करने लगे हैं. बाजार में काफी अच्छे महंगे दामों में बिकता है और इसकी अच्छी खासी डिमांड भी है.
पड़ोरा क्या है और कहां पाया जाता है ?
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बीके प्रजापतिबताते हैं 'हमारे यहां लोकल भाषा में इसे पड़ोरा नाम से जाना जाता है. बाकी कई जगहों पर इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है. कुछ जगहों पर इसे काकोड़ा के नाम से भी जाना जाता है. पड़ोरा प्राचीन काल में जिले में आदिवासी अंचल में 60 से 70 साल पहले जंगलों में काफी तादाद में पाया जाता था, लेकिन इसका जो जड़ होता है, उसकी पत्तियां होती हैं. कई अलग-अलग बीमारियों के आयुर्वेद उपचार में इस्तेमाल होती थी. जैसे कि डायरिया, बुखार, छाती दर्द इन सभी के रोकथाम में मदद करता था, तो इस पौधे के पत्तियों और गांठ का काफी तादाद में उपयोग किया गया. जिसकी वजह से ये पौधा धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर पहुंच गया है.
अब इसकी कमर्शियल खेती शुरू
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बीके प्रजापति बताते हैं कि पड़ोरा जिसे काकोडा के नाम से भी जाना जाता है. वर्तमान में देखेंगे तो इसकी काफी अच्छी डिमांड है और बाजार मूल्य भी बहुत अच्छा है. यह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा इन राज्यों में प्राकृतिक रूप से होता था. अब वर्तमान में इसकी कमर्शियल व्यापारिक व्यवसाय के रूप में किसानों ने इसकी खेती भी शुरू कर दी है. इसकी खेती जून और जुलाई के महीने में की जाती है.
ऐसे करें पड़ोरा की खेती
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बीके प्रजापति बताते हैं कि इसकी खेती में नर और मादा पौधे का विशेष ख्याल रखा जाता है. नर और मादा पौधे अलग-अलग होते हैं. जब इसकी खेती करें तो इसे लगाते समय इस बात का ख्याल रखें कि 8 फीमेल पौधे के साथ में एक मेल पौधा अवश्य लगाया जाता है. 8 फीमेल पौधे जो हैं, एक मेल पौधे के चारों ओर लगाए जाते हैं, चौकोर रूप से लगता है. ये सितंबर अक्टूबर में फल देना शुरू कर देता है. उसके बाद ठंड के दिनों में अपने आप सुसुप्ता अवस्था में हो जाता है. मतलब पूरी पत्तियां और पौधे ऊपर से खत्म हो जाते हैं, फिर जैसे ही मई और जून के महीने में जब पहली बारिश होती है, तो इसके कंद से पौधा फिर से निकलना शुरू हो जाता है, मतलब आपको साल दर साल पौधा नहीं लगाना होगा.
आप अगर इसको एक बार लगाते हैं तो 8 से 10 साल आपको लगातार सब्जी का उत्पादन ये देता रहेगा. एक हेक्टेयर, ढाई एकड़ रकबे से लगभग 40 से 50 क्विंटल पड़ोरा का उत्पादन आपको मिलेगा.
बाजार में अच्छी डिमांड
पड़ोरा की खेती की बात करें तो बाजार में इसकी अच्छी खासी डिमांड है. सबसे अच्छी बात ये है कि स्वास्थ्य के लिए इसका सेवन बहुत फायदेमंद है. इसमें कई पोषक तत्व पाए जाते हैं. न्यूट्रिएंट्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, इसीलिए काफी महंगे दामों में बिकने के बाद भी इसकी डिमांड बहुत अच्छी है. बाजार में आते ही लोग इसे खरीदना शुरू कर देते हैं. ये बाजार में अलग-अलग जगह पर अलग-अलग दामों में उपलब्धता के आधार पर बिकता है. कहीं पर 200 से ₹300 किलो तो कहीं 400 से ₹500 किलो तक भी लोगों को मिल जाते हैं. ऐसे में अगर किसान इसकी खेती करता है तो काफी फायदा होगा और वो बहुत कम जमीन में आसान तरीके से इसकी खेती करके लखपति बन सकता है.