आदिवासी जिले शहडोल में दगना कुप्रथा को खत्म करने हो रहे प्रयास, महिलाओं को इस तरह किया जा रहा अवेयर
Shahdol Dagna Kupratha: आदिवासी जिले शहडोल में दगना एक दंश है. इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग लगातार प्रयास कर रहा है. महिलाओं को गांव-गांव में पहुंचकर समझाइश दी जा रही है.
शहडोल। शहडोल जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है और इस जिले में दगना कुप्रथा बहुत ज्यादा हावी है. आए दिन दगना के केस सामने आते हैं और अब इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए जिले में तरह-तरह के जतन किए जा रहे हैं जिसमें स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन पूरी तरह से जुटा हुआ है. इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए कहीं लोकगीत के माध्यम से लोगों को अवेयर किया जा रहा है तो कहीं पर महिलाओं को संकल्प दिलाया जा रहा है. कहीं पर समझाइश दी जा रही है, तो कहीं सर्वे किया जा रहा है. हर संभव कोशिश हो रही है कि इस कुप्रथा को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए.
दगना बन गया एक दंश
जरा सोचिए गर्म सलाखों से महज कुछ ही दिनों के मासूम को अगर जगह-जगह पर दाग दिया जाए तो सोचिए कितनी तकलीफ होती होगी. उस तकलीफ को आप सिर्फ एहसास ही कर सकते हैं, वो मासूम तो बोलकर बयां भी नहीं कर सकता है. अपनी जिंदगी जीने से पहले ही दगना के इस दंश की वजह से कई मासूम बच्चे इस दुनिया को अलविदा भी कह चुके हैं. फिर भी लोग हैं कि मानते नहीं, बीमारी को ठीक करने के नाम पर अपने मासूम बच्चों को दगना कुप्रथा का शिकार बना देते हैं. ये दगना कुप्रथा इन मासूम बच्चों के लिए एक दंश बन चुका है.
दगना बच्चों के लिए बड़ा खतरा
आदिवासी बाहुल्य इलाके में कई ऐसे केस सामने आए हैं, जहां महज कुछ ही दिनों के या कुछ महीनो के मासूम बच्चों को बीमारी ठीक करने के नाम पर दाग दिया जाता है. दगना के बाद यह बच्चे और सीरियस हो जाते हैं, जिसमें कई बच्चों को तो अपनी जान भी गंवानी पड़ती है. सीएमएचओ डॉक्टर एके लाल कहते हैं कि दगना से बच्चों को बहुत नुकसान होता है क्योंकि वो बच्चे बहुत छोटे होते हैं, उनकी इम्यूनिटी बहुत कम होती है, और ऐसे समय में ऐसे बच्चों को दाग देना और बड़ा खतरा पैदा कर देता है. उनको मवाद आने लगता है, वो और गंभीर हो जाते हैं, मरीज को कुछ भी हो सकता है, क्योंकि छोटा बच्चा होता है.
दगना कुप्रथा को खत्म करने महिलाओं को दिलाया जा रहा संकल्प
दगना को खत्म करने की कोशिश जारी
शहडोल सीएमएचओ डॉक्टर एके लाल कहते हैं कि अभी हाल ही में एक बैठक के दौरान कलेक्टर ने निर्देश जारी किए थे की आशा और महिला बाल विकास के माध्यम से हर घर में जाकर ऐसे लोगों को चिन्हित किया जाए और उनकी सूची बनाई जाए. उस सूची सर्वे के लिए उन्होंने तीन दिन का समय दिया था उस तीन दिन में ही 11 हजार के लगभग बच्चों का सर्वे किया गया, हालांकि उसमें एक भी दगना के केस नहीं मिले हैं. इस कुप्रथा को खत्म करने की चुनौती अभी बरकरार है, जिसके लिए प्रयास लगातार जारी हैं.
स्वास्थ्य विभाग स्कूलों में भी कर रहा जागरुक
बीमारी होने पर इलाज करवाएं
सीएमएचओ डॉक्टर एके लाल कहते हैं कि "यहां ज्यादातर केस ऐसे देखने को मिल रहे हैं कि जब बच्चे को निमोनिया होता है या फिर सर्दी जुकाम होता है तो वो लोग अपने मासूम बच्चों को ले जाकर बीमारी ठीक करने के नाम पर दगवा देते हैं. लेकिन ऐसा बिल्कुल भी ना करें, इसके लिए हम लोगों को लगातार समझा भी रहे हैं, अगर आपका बच्चा बीमार होता है तो उसका इलाज करवाएं, इलाज करने से वो जल्द ही ठीक हो जाएगा, जितनी जल्दी आप डॉक्टर के पास बच्चे ले जाएंगे आपका बच्चा उतना ही जल्दी स्वस्थ होगा."
गांव की महिलाएं दगना कुप्रथा को रोकने का ले रहीं संकल्प
दगना कुप्रथा को लेकर पूरा जिला प्रशासन खत्म करने में लगा हुआ है. इसके लिए तरह-तरह के जतन भी किये जा रहे हैं. आदिवासी इलाकों में लोकगीत के माध्यम से लोगों को अवेयर किया जा रहा है, तो वहीं दगना कुप्रथा को रोकने के लिए प्रसव के दौरान महिलाओं को संकल्प पत्र भी कलेक्टर के निर्देश पर भरवाये जा रहे हैं. महिलाओं से इस आशय का संकल्प पत्र भरवाया जा रहा है कि वो बीमार होने पर बच्चों को दागेंगे नहीं और किसी को दगवाने भी नहीं देंगे. उस बच्चे का स्वास्थ्य केंद्र में उपचार करवाएंगे.