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भाड़ में जाओ नहीं, भाड़ में आओ.. क्योंकि ये है सतना का एक गांव

Village named Bhad exists : एमपी के सतना जिले की रघुराजनगर तहसील के गांव भाड़ में कुल 186 परिवार बसते हैं.

Village named Bhad exists
भाड़ में जाओ नहीं, भाड़ में आओ

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 18, 2024, 7:54 PM IST

भोपाल. गुस्से में कई बार लोग एक दूसरे को कह देते हैं कि भाड़ में जाओ, लेकिन कोई कह दे कि भाई हम तो भाड़ में ही रहते हैं तब आपका क्या जवाब होगा? दिमाग पर जोर मत लगाइए. क्योंकि वाकई भाड़ एक जगह है. मध्यप्रदेश के सतना जिले में एक ऐसा गांव है जिसका नाम ही है 'भाड़'. सतना जिले की रघुराजनगर तहसील में आने वाले इस भाड़ गांव की खासियत ये है कि यहां का लिंगानुपात एमपी के औसत लिंगानुपात 918 से ज्यादा है. यहां का लिंगानुपात करीब 1160 है.

भाड़ गांव में रहते हैं इतने परिवार

तो ये मान लीजिए कि नाम में क्या रखा है. नाम से आगे होती है पहचान और पहचान की वजहें फिर दूसरी ही होती है. चाहे फिर वो कोई इंसान हो या गांव. तो एमपी के सतना जिले की रघुराजनगर तहसील के गांव भाड़ में कुल 186 परिवार बसते हैं. जिनमें 2011 की जनगणना के अनुसार 459 पुरुष और 424 महिलाएं हैं. इस गांव में बच्चों की आबादी खास तौर पर शून्य से 6 वर्ष तक के बच्चों की करीब 108 है जो गांव की कुल आबादी का 12.23 प्रतिशत है.

भाड़ गांव में 76 फीसदी साक्षरता

भाड़ गांव की साक्षरता दर काफी अच्छी है. 2011 की जनगणना के अनुसार इस गांव की साक्षरता दर 76.90 है. जो एमपी की साक्षरता दर 69.32 प्रतिशत की तुलना में ज्यादा है. जिसमें पुरुषों की साक्षरता दर 83 फीसदी के करीब है जबकि महिलाओं का प्रतिशत 69 फीसदी के आसपास है.

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नाम का मनोवैज्ञानिक असर तो होता ही होगा

पूर्व ब्यूरोक्रेट और भाषा के जानकार मनोज श्रीवास्तव कहते हैं, ' जिस तरह सतना का ये गांव है भाड़, ऐसे ही उज्जैन में एक तहसील है घटिया. मुझे लगता है कि इस तरह के नाम वाली जो जगह होती हैं. यह बात वहां के निवासियों की आत्म-छवि को प्रभावित तो करती होंगी. उन्हें अपना निवास स्थान बताते हुए थोड़ी तो संकोच होता होगा, वह एक मनोविज्ञान तो निर्मित करता ही होगा. जब मैं पशुपालन विभाग में था तो संयुक्त राज्य अमेरिका गया था. वहां मैंने देखा कि एक डिपार्टमेंट ऑफ इंटीरियर विभाग है, जिसके अंतर्गत एक 'द बोर्ड ऑन ज्याग्रफिक नेम्स' नामक मंडल है. वह छह सौ से ज्यादा ऐसे नामों को बदलने की जद्दोजहद कर रहा है जो अपमानजनक हैं. भारत में हमारे भीतर वो चेतना ही नहीं कि ऐसा कोई बोर्ड बनाने की हम सोचें भी'

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