नई दिल्ली:''पहचानिए मुझे, जिसे उसके जन्मदाता पिता ने नहीं पहचाना, जन्मदात्री मां ने नहीं पहचाना, रियासतदारों ने नहीं पहचाना. हां, मैं अलोक मंजरी हूं, राजा राममोहन राय की भाभी, जिसे उनके पति जगनमोहन बनर्जी की मौत पर मार-पीट कर सती बनाया गया था, '' यह अंश हिंदी भाषा के मशहूर साहित्यकार राम सजीवन प्रसाद 'संजीव' के उपन्यास ‘मुझे पहचानो’ के हैं. 2020 में इस पुस्तक को सेतु प्रकाशन ने सर्वप्रथम प्रकाशित किया था.
खास बात है कि देश के बहुमुख साहित्यिक पुरस्कारों में शुमार साहित्य अकादमी पुरस्कार 2023 ने हिंदी के लिए संजीव की 'मुझे पहचानों' को चुना. 12 मार्च को दिल्ली के कमानी सभागार में संजीव को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस दौरान 'ETV भारत' को संजीव से विशेष बातचीत करने का मौका मिला.
सवाल: पुस्तक का शीर्षक 'मुझे पहचानो' क्यों चुना?
जवाब: 'मुझे पहचानो' तत्पर है कि मैं हूं कौन, ये पहचानो. यह एक आदमी की पहचान से जुड़ा मामला है. इस उपन्यास में धर्म की आवेशन अंधविश्वास में लिप्त समाज को दर्शाया गया है. परंपरा के मन प्रताड़ना. वह भी ऐसी जिसका समर्थन केवल पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाएं भी ताली बजा कर करती हैं. उस समय उन्हें यह अनुमान भी नहीं था कि वह कितना बड़ा अपराध कर रही हैं? इतना ही नहीं वह अन्य महिलाओं को ऐसा करने के उकसाती भी थी. उपन्यास में जिस महिला को चिता पर जला दिया जाता है वह 5 वर्ष बाद एक रक्षंदा सती बनकर आती है. उसको उसके माता-पिता, भाई-बहन और रिश्तेदार भी पहचाने से मना कर देते हैं. उपन्यास में सबसे बड़ा जोर उसकी पहचान को दिया गया है, इसलिए इसका नाम 'मुझे पहचानो' रखा.
सवाल: 'मुझे पहचानो' जैसे उपन्यास लिखने की भावना कहां से जागृत हुई?
जवाब: रूप कंवर का नाम आपने सुना होगा. यह देश में सती होने की आखिरी घटना की कहानी थी. इसका विरोध पूरे देश में हुआ था. इसी बीच उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में आयोजित सभा में हिस्सा लिया. मैंने सभा में मौजूद लोगों से पूछा कि रूप कंवर को क्यों जलाया जाना चाहिए? इस पर किसी के पास कोई जवाब नहीं था. उल्टा मुझे यह बोल कर चुप करा दिया गया कि आप यहां केवल साहित्य संबंधी ही बात करें.
बता दें, मार्च 1985 में हरिदेव जोशी राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे. उसी दौरान अशोक गहलोत कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने थे. सत्ता और संगठन में संघर्ष तेज हो गया. साथ ही उस दौरान प्रदेश के सीकर जिले में दीरावली सती कांड हो गया. इस रूप कंवर सती कांड ने देश को हिला कर रख दिया. इस मामले को लेकर विपक्ष हमलावर हो गया. विरोध अधिक बढ़ने पर हरिदेव जोशी ने अपना इस्तीफा राजीव गांधी को सौंप दिया. इसके बाद शिवचरण माथुर को राज्य की कमान सौंप दी गई. 28 मार्च 1995 को पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी का निधन हो गया था.